अध्यात्म : क्यों दी जाती हैै दीक्षा ?
अध्यात्म जगत में दीक्षा शब्द अक्सर सुनने को मिलता है। अध्यात्म की प्रक्रया की शुरुआत दीक्षा से की जाती है।क्या दीक्षा के बिना भी प्रगति की जा सकती है? क्यों होती है दीक्षा की जरूरत , और क्या है इसका महत्व?
अध्यात्म जगत में दीक्षा शब्द अक्सर सुनने को मिलता है। अध्यात्म की प्रक्रया की शुरुआत दीक्षा से की जाती है।क्या दीक्षा के बिना भी प्रगति की जा सकती है? क्यों होती है दीक्षा की जरूरत , और क्या है इसका महत्व?
प्रश्न : सद्गुरु, आपने कहा था कि इनर इंजीनियरिंग के साथ आपने दीक्षित करने की प्रक्रिया स्थापित की है और यह भी कहा था कि ध्यानलिंग में बैठने से कोई भी आदमी आध्यात्मिक प्रक्रिया में दीक्षित हो सकता है। तो ये किस तरह की दीक्षाएं हैं और दीक्षा का मतलब क्या होता है?
सद्गुरु: दीक्षित करने के लाखों तरीके हैं। जीवन के हर पहलू का इस्तेमाल किसी व्यक्ति के जीवन को प्रेरित करने के लिए, उसे रूपांतरित करने के लिए किया जा सकता है। बात सिर्फ इतनी है कि कुछ लोगों के साथ यह औपचारिक तौर पर किया जाता है और बाकियों के साथ यह कई अलग-अलग तरीकों से होता है। अब जैसे आश्रम में शाम के समय ‘दर्शन’ होता है।
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दीक्षा एक किक की तरह है
इसे समझने के लिए एक इंडक्शन मोटर का उदाहरण लेते हैं। एक इंडक्शन मोटर में अगर सभी जरूरी पाट्र्स हों और आप उसमें बिजली देते हैं, फि र भी वह काम नहीं करता। दरअसल, उसे काम करने के लिए इंडक्शन, जिसे बाहरी प्रेरक कह सकते हैं, की जरूरत होती है। दरअसल, हम जिसे इंडक्शन कहते हैं (जिसे बाह्य प्रेरणा कह सकते हैं), उसकी कोई आदर्श वैज्ञानिक व्याख्या नहीं है। यह एक खास तरह की किक है, खास तरह की प्रेरणा है जिससे कोई चीज काम करना अचानक शुरू कर देती है।
अगर जीवन लाखों साल लंबा होता तो हम इस काम को बेहद कलात्मक तरीके से कर सकते थे। लेकिन जीवन बेहद छोटा है। इससे पहले कि आप समझ पाएं कि क्या हुआ, जीवन खत्म हो जाता है। इसलिए इसे लेकर एक जल्दबाजी है। चूंकि इसे लेकर एक जल्दीबाजी है, इसलिए हम इसे इस तरीके से करते हैं कि आप मुख्य बात से चूकें नहीं। लेकिन फिर भी कुछ लोग बेहद मोटी खाल के होते हैं, उनके लिए कड़े व कठोर तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। लेकिन आप अगर वाकई पूरी तरह से खुले हुए और ग्रहणशील हैं तो चुपचाप बैठना ही दीक्षित होने के लिए काफी है। लेकिन यह तरीका हर किसी पर काम नहीं करेगा। कुछ लोगों को किश्तों में काम करने की आदत होती है, इसलिए ऐसे लोगों को हम किश्तों में दीक्षा देते हैं। यही वजह है कि हमारे पास इसके तमाम कार्यक्रम हैं - इनर इंजीनियरिंग, भाव स्पंदन, सम्यमा व दूसरी तरह की दीक्षा के कार्यक्रम भी हैं। दरअसल मैं तरह-तरह के लोगों के साथ काम करता हूं।
दीक्षा के अलग-अलग तरीके
अगर आप पहले इनर इंजीनियरिंग के लिए आएंगे तो मैं आपको एक तरीके से दीक्षित करूंगा। अगर आप भाव स्पंदन के लिए आएंगे तो आपको लगातार तीन दिन तक बिना रुके दीक्षित किया जाएगा, ताकि आप इससे चूकें नहीं। अगर आप सम्यमा के लिए आते है तो एक अलग लेकिन बेहद शक्तिशाली दीक्षाओं की पूरी प्रक्रिया होती है।
आप में से कई लोग जो मेरे साथ अलग-अलग सत्संगों में बैठे होंगे, उन्हें हर बार कुछ अलग अनुभव हुआ होगा। यह इस पर निर्भर करता है कि हम उस दिन क्या कर रहे हैं, वह साल का कौन सा समय है, वह आपके जीवन का कौन सा दौर है और उस समय विशेष में क्या जरूरी है, उसी के हिसाब से मैं कुछ अलग करता हूं। जिस तरह से यहां जीवन के अलग-अलग रूप मौजूद हैं, उसी तरह से हम अलग-अलग रूप में दीक्षित करते हैं। जब हमने पहली बार लोगों तक आध्यात्मिक प्रक्रिया को पहुंचाने के लिए कुछ लोगों को प्रशिक्षित किया तब हमने औपचारिक दीक्षा की शुरुआत की। अगर यह काम सिर्फ मुझे ही करना होता तो मैंने कोई औपचारिक दीक्षा शुरु नहीं की होती। लेकिन दीक्षा को एक औपचारिक रूप इसलिए देना पड़ा ताकि उसे हर किसी के लिए संभालना सहज हो पाए और उसे सही तरह से बार-बार दोहराया जा सके। ऐसा इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि हम अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना चाहते हैं।