प्रश्न: मैं विश्वास और स्पष्टता में अंतर जानना चाहता हूँ। विश्वास नहीं, स्पष्टता जरुरी है

सद्‌गुरु : मान लेते हैं कि मेरी नज़र ठीक नहीं है - मैं साफ़ तौर पर नहीं देख सकता - और मुझे लोगों के एक दल के बीच से निकलना है। पर मैं पूरी तरह से आश्वस्त(कॉंफिडेंट) हूँ।

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अगर आप हमेशा पचास प्रतिशत तक ही सही होना चाहते हैं तो आप केवल दो ही काम कर सकते हैं - आप मौसमविज्ञानी या ज्योतिषी हो सकते हैं।
अगर मैं उनके बीच से निकलूँगा तो क्या होगा? बहुत से लोग इसी तरह अपने जीवन से गुज़र रहे हैं क्योंकि वे विश्वास(कॉन्फिडेंस) से भरपूर हैं। उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता पर उन्हें इससे कोई अंतर नहीं पड़ता; वे अपने विश्वास में भरपूर हैं। यह आपके और आसपास के लोगों के लिए विनाशक हो सकता है। अगर मेरी नज़र ठीक होगी, तो मैं पूरे दल को छुए बिना आराम से गुज़र सकता हूँ। अगर मेरी नज़र साफ न हो और मेरे पास यह मानने का विनय(विनम्रता) हो कि मैं स्पष्ट नहीं देख सकता, तो मैं किसी की मदद ले कर, थोड़ी धीरे चलूँगा। हो सकता है कि तेज़ नजर वाले की तरह न चल सकूँ पर किसी की मदद ले कर धीरे-धीरे तो जा ही सकूँगा।

लोग विश्वास को स्पष्टता का विकल्प मानते हैं - ऐसा नहीं है। जब भी आप जीवन में कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहें; चाहे वह पेशेवर हो या परिवार से संबंधित, बस आप यही करते हैं, ‘अगर सिक्का उछालने पर हैड आया तो यह करेंगे, अगर टेल आया तो वह करेंगे।’ यह तरीका केवल पचास प्रतिशत ही काम करेगा। अगर आप हमेशा पचास प्रतिशत तक ही सही होना चाहते हैं तो आप केवल दो ही काम कर सकते हैं - आप मौसमविज्ञानी या ज्योतिषी हो सकते हैं। अगर आप किसी दूसरी नौकरी में हैं तो आपको काम से निकाला जा सकता है।

नब्बे प्रतिशत नहीं, काम पूरा होना चाहिए

भारत के पश्चिमी तट पर मंगलौर नामक शहर है। यह एक सुंदर, शांत और प्यारा सा शहर है और मैं कुछ अरसे तक इससे जुड़ा भी रहा हूँ।

देखिए, नब्बे प्रतिशत भारतीय सर्प हानिरहित होते हैं और ये विषनाशक दवा नब्बे प्रतिशत तक काम करती है।
पिछले चार-पाँच वर्ष से उस ओर जाना नहीं हुआ था, फिर एक दिन मैं उस ओर गया। उस जगह एक होम्योपैथिक डॉक्टर थे, जिनकी आयु पचहत्तर वर्ष थी, पर वे फिर भी छोटा सा क्लीनिक चला रहे थे। मैं उनसे एक मरीज नहीं, जानकार के तौर पर भेंट करने गया। यह क्लीनिक मलाबार प्रांत में है - जिसे किंग कोबरा की धरती कहते हैं - वहाँ सर्प दंश(साँपों द्वारा काटे जाना) एक आम बात है। क्लीनिक के बाहर एक विज्ञापन में लिखा था - ‘सभी प्रकार के सांप के काटे की एक सामान्य विषनाशक दवा ।’ मैं सांपों के बारे में बहुत कुछ जानता हूँ। मैं उनके साथ रहा हूँ, वे मेरे आसपास रहते थे, उन्होंने मुझे कई बार काटा है और मेरा व सर्पों का लंबे अरसे तक गहरा संबंध रहा है इसलिए मैं उनसे बचने के सारे उपाय अच्छी तरह जानता हूँ।

मैंने अंदर जा कर डॉक्टर से बात की। मैंने उनसे पूछा, ‘आपने अपने क्लीनिक में यह बोर्ड क्यों लगाया? यह सही नहीं है। यह दावा कैसे कर सकते हैं कि सभी सर्पों के काटने की एक विषनाशक दवा है।’ वे एक समझदार डाॅक्टर थे। उन्होंने जवाब दिया, ‘देखिए, नब्बे प्रतिशत भारतीय सर्प हानिरहित होते हैं और ये विषनाशक दवा नब्बे प्रतिशत तक काम करती है। यह मूर्खों की तरह, बने रहने का एक उपाय है। है न? आपको आत्मविश्वास नहीं, स्पष्टता चाहिए।

एक सरल अभ्यास जो दूर तक ले जा सकता है

अगर हम जीवन को किसी ख़ास रूप में घटने देना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको इस बारे में स्पष्ट करना होगा कि हम सही मायनों में क्या चाहते हैं।

अगर किसी को गुरु से सही तरह से दीक्षा मिले तो यह प्रक्रिया एक नए आयाम तक जा सकती है।
इसे रचने में सादे अभ्यास भी लंबी दूरी तक जा सकते हैं। हर सुबह, जब आप सो कर उठें, तो बिस्तर पर आलथी-पालथी लगा कर बैठें, अपने हाथ खोल लें, आँखें बंद हों और उन सब चीज़ों को देखें जो आप नहीं हैं। आपने जो भी संग्रह किया है, उसे सराहें - आपका घर, आपका परिवार, आपके संबंध, आपकी शिक्षा, आपका शरीर, आपके कपड़े - सब कुछ। उनके लिए आभार प्रकट करें। इसके साथ ही उन बातों को पहचानें जो आप नहीं हैं, ‘यह वह सब है जो मैंने जमा किया है।’ फिर उसे मानसिक तौर पर एक ओर रख दें। जो आपने संग्रह किया, वह आपका हो सकता है, पर कभी आप नहीं हो सकते। हर रोज सुबह और शाम को दस मिनट का समय दें। इस तरह आपको स्पष्टता मिलेगी। अगर किसी को गुरु से सही तरह से दीक्षा मिले तो यह प्रक्रिया एक नए आयाम तक जा सकती है। पर जब तक आपके जीवन में ऐसा कोई अवसर नहीं आता, तब तक आप स्वयं इसे कर सकते है। यह निश्चित तौर पर आपकी स्पष्टता पर गहरा असर डालेगी।