अक्टूबर महिने को दुनिया भर में स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। पूरे महीने अभियान चलाकर जागरूकता फैलाई जाती है और साथ ही कैंसर के शोध, रोकथाम और उपचार के लिए धनराशि जमा की जाती है। इस लेख में  सद्‌गुरु बता रहे हैं कि यौगिक प्रणाली में कैंसर को किस रूप में देखा जाता है और इस रोग से बचने के लिए क्या किया जा सकता है।

कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाएं, जिन्हें ‘कैंसरस सेल’ कहा जाता है, हमारे पूरे शरीर में मौजूद होती हैं। यौगिकसिस्टम में कैंसरस सेल को कुछ ऐसे ही समझते हैं जैसे समाज में अपराधियों को। अगर कुछ लोग इधर-उधर छिटपुट अपराध करते हैं, तो उससे समाज को कोई खास फर्क नहीं पड़ता। मगर परेशानी तब होती है, जब वे एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं, गैंग बना लेते हैं। इसी तरह, आपके शरीर में थोड़ी-बहुत कैंसर वाली कोशिकाएं आपकी जिंदगी या तंदुरुस्ती पर असर नहीं डालतीं।

इन कोशिकाओं को सामान्य कोशिका से करीब 30 गुना ज्यादा भोजन की जरूरत होती है। कुछ खास दिनों में अपने शरीर को भोजन से वंचित रखकर आप कैंसर की कोशिकाओं को काबू में रख सकते हैं।
आम तौर पर योग में इसे इस तरह देखा जाता है: जब किसी व्यक्ति के रवैये, खान-पान, जीवनशैली या किसी और कारण से उसके उर्जा शरीर में कहीं किसी तरह की शून्यता या खालीपन पैदा होने लगता है, और उसके कारण ऊर्जा शरीर पर असर पड़ता है, तो कैंसरस सेल के बढ़ने के लिए अनुकूल माहौल तैयार हो जाता है। इसलिए अगर शरीर के किसी एक हिस्से में ऊर्जा का प्रवाह ठीक नहीं है, तो कैंसरस सेल उस जगह छिपकर पनपने लगते हैं।

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स्तन कैंसर आज, खासकर पश्चिमी देशों में बहुत तेजी से फैल रहा है। इसकी वजह यह है कि बहुत सी महिलाएं गर्भधारण नहीं करतीं। मेरा कहने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए। दुनिया में पहले से इतनी जनसंख्या है कि कम बच्चे पैदा करके वे एक अच्छा काम कर रही हैं। बात सिर्फ इतनी है कि स्तन, जिसका मुख्य काम बच्चे को दूध पिलाना होता है, उसका इस्तेमाल नहीं हो पाता या सिर्फ एक खास समय पर इस्तेमाल किया जाता है।

रोजाना नीम और हल्दी के पेस्ट का सेवन करना भी फायदेमंद होता है। यह शरीर में कैंसर की कोशिकाओं की संख्या को सीमित रखता है और वे शरीर के खिलाफ इकट्ठा नहीं हो पातीं।
पहले अगर कोई महिला गर्भधारण की कुदरती प्रक्रिया से गुजरती थी, तो करीब 16 या 18 की उम्र से करीब 45 की उम्र तक वह समय-समय पर गर्भधारण करती रहती थी जिससे उसकी पूरी प्रणाली, गर्भाशय और स्तन कई रूपों में सक्रिय रहते थे। इससे इन अंगों में ऊर्जा का प्रवाह भी बना रहता था। आज, ज्यादातर महिलाएं 30 साल की उम्र से पहले ही बच्चा पैदा करने का काम खत्म कर लेती हैं। इसके बाद भी 15 से 20 साल तक उनके शरीर में गर्भधारण के लिए जरूरी हारमोन और एंजाइम पैदा होते रहते हैं लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं हो पाता। उन्हें जिस तरह से इस्तेमाल होना चाहिए, उस तरह इस्तेमाल न होने पर शरीर के उस हिस्से में ऊर्जा कम हो जाती है, जिससे कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं को बढ़ावा मिलता है और वे उस जगह जमा होने लगती हैं।

तो क्या इसका मतलब यह है कि हमें ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए? कृपया ऐसा बिल्कुल मत कीजिए। इसका हल खोजने के और भी तरीके हैं।

उपवास के फायदे

शरीर में कैंसर वाली कोशिकाओं को नियंत्रित करने का एक सबसे सरल तरीका समय-समय पर उपवास करना है। इन कोशिकाओं का एक पहलू यह है कि उन्हें एक सामान्य कोशिका से काफी ज्यादा, करीब 30 गुना ज्यादा भोजन की जरूरत होती है। कुछ खास दिनों में अपने शरीर को भोजन से वंचित रखकर आप कैंसर की कोशिकाओं को काबू में रख सकते हैं।

योग साधना

कुछ ऐसी साधनाएं हैं जिनसे किसी के हारमोन स्रावों को नियंत्रित किया जा सकता है। शक्ति चालन क्रिया और कुछ आसन शरीर को सही और संतुलित करने में मदद करते हैं। हमने देखा है कि गर्भाशय की समस्याओं, जैसे पोलिसिस्टिक ओवरीज, वाली बहुत सी महिलाएं केवल कुछ आसनों और क्रियाओं से ही पूरी तरह ठीक हो गईं। आपके हारमोंस तब केवल भोजन और आपके माहौल से ही तय नहीं होते, बल्कि पूरी तरह आपके काबू में रहते हैं।

इन अभ्यासों ने कैंसर के मरीजों की किस हद तक मदद की है, इसका कोई प्रमाण तो हम नहीं दे सकते। लेकिन हमने देखा है कि वे तेजी से ठीक होने लगे। जो डॉक्टर इन कैंसर मरीजों का उपचार कर रहे थे, वे ऐसे मरीजों में कीमोथैरेपी का असर देखकर हैरान रह गए। कुछ लोग योग करने के बाद कीमोथैरेपी से बहुत तेजी से ठीक हुए। यह कहने सही नहीं होगा कि उनका कैंसर योग की वजह से ठीक हुआ। लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि इलाज के साथ योग करना निश्चित रूप से मरीज के लिए फायदेमंद होगा।

 नीम और हल्दी

रोजाना नीम और हल्दी के पेस्ट का सेवन करना भी फायदेमंद होता है। यह शरीर में कैंसर की कोशिकाओं की संख्या को सीमित रखता है और वे शरीर के खिलाफ इकट्ठा नहीं हो पातीं। जब शरीर में निष्क्रियता का स्तर बढ़ता है, कोशिका के भीतर ऊर्जा घुस नहीं पाती है। जैसा कि हमने पहले देखा कि शरीर के जिन हिस्सों में ऊर्जा का प्रवाह सहज नहीं होता, वहां कैंसर की कोशिकाएं पनप सकती हैं। नीम और हल्दी का मेल ऊर्जा को प्रवेश का मार्ग चौड़ा कर देने का काम करता है।

उदाहरण के लिए, अगर आपका नेत्र विशेषज्ञ आपकी आंखों में देखना चाहता है, तो वह सिर्फ देखकर जांच नहीं कर सकता। डायलेटर (विस्तारक) के प्रयोग से आपकी पुतलियां फैल जाती हैं जिससे वह आपकी आंखों की जांच कर सकता है। नीम और हल्दी शरीर को इस तरह फैला देते हैं कि उसमें ऊर्जा का प्रवेश आसान हो जाता है और अंदर की हर दरार ऊर्जा से भर जाती है। यह पहले से कैंसर के मरीज बन चुके इंसान को भले ही न ठीक कर पाए, मगर पारंपरिक रूप से हमेशा यह माना जाता है कि नियमित तौर पर नीम और हल्दी का सेवन करने से शरीर में कैंसरस सेल को आसानी से काबू किया जा सकता है।