शिक्षा-व्यवस्था कभी 'परफेक्ट' नहीं हो सकती
शिक्षा-व्यवस्था की कमियां तो हम सब देख और समझ पाते हैं, लेकिन यह नहीं सोच पाते कि आखिर इसका उपाय क्या है? क्या वाकई कोई 'परफेक्ट' व्यवस्था नहीं हो सकती ताकि सबको समान अवसर भी मिले और किसी के साथ अन्याय भी न हो?
ArticleApr 24, 2015
शिक्षा-व्यवस्था की कमियां तो हम सब देख और समझ पाते हैं, लेकिन यह नहीं सोच पाते कि आखिर इसका उपाय क्या है? क्या वाकई कोई 'परफेक्ट' व्यवस्था नहीं हो सकती ताकि सबको समान अवसर भी मिले और किसी के साथ अन्याय भी न हो?
इंसान के अंदर जानने की एक बुनियादी चाहत होती है। आज जिसे हम शिक्षा कहते हैं, वह महज एक व्यवस्थित उपाय है, जानने की अपनी चाहत पूरी करने का और अज्ञानता से निजात पाने का। एक बार कभी कहीं इंसान के मन में यह चेतना उपजी कि अब वह अज्ञानी नहीं रहना चाहता। वह चीजों को जानना और समझना चाहता है।
आप पाएंगे कि आप जैसी भी पुख्ता व्यवस्था क्यों न बनाएं, बच्चे उसमें सुराख ढूंढ ही लेते हैं। मेरे ख्याल से ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं, जो व्यव्स्था में कमियां ढूंढ निकालते हैं इसका मतलब कि वे बच्चे वाकई अच्छे हैं!
शिक्षा की मूल प्रकृति है ‘जानना’। हमने अपने आवासी विद्यालय ‘ईशा होम स्कूल’ में इस बात का खास खयाल रखा है कि शिक्षा की इस प्रकृति को बनाए रखा जाए। दरअसल, जैसे ही हम कुछ व्यवस्थित करने के लिए किसी चीज को संगठन का रूप देने लगते हैं, तो होता यह है कि हम न चाहते हुए भी उस खूबसूरती को ही बिगाड़ बैठते हैं जिसे हम सवांरने चले थे । यही सब जगह होता है। किसी भी चीज को ज्यादा व्यवस्थित और उत्पादक बनाने की कोशिश में हम कुछ ऐसा तैयार कर देते हैं, जो वास्तव में हम चाहते ही नहीं थे। यह एक दुखदाई स्थिति है लेकिन अफसोस कि जीवन के हर पहलू में हमारा इससे सामना होता है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी यह बात बिल्कुल सही है। फिर भी एक सही संगठन या संस्था के बिना बहुत सारे लोग शिक्षा से वंचित रह जाएंगे और गिने चुने लोग ही शिक्षित हो सकेंगे। दुनिया में एक समय था, जब धारणा ऐसी थी - कि कुछ खास लोगों को ही शिक्षा पाने का अधिकार है, जबकि बाकी सारे लोग छोटे-मोटे कामों के लिए बने हैं और वे उसी में खुश रहें। उस दौर में कोई एक सुकरात या कोई एकाध व्यक्ति होता था, जो काफी पढ़ा-लिखा और विद्वान होता था, बाकियों का शिक्षा से कोई वास्ता नहीं होता था। मजे की बात कि वे लोग बस कुछ उन गिने-चुने लोगों के ज्ञान और शिक्षा से अभिभूत रहते थे। उन दिनों दुनियाभर में यही चलन था। अब हम दोबारा उस रास्ते पर नहीं चलना चाहते। हम चाहते हैं कि हर कोई एक स्तर तक जरूर पहुंच सके, क्योंकि सबकी मंजिल एक नहीं हो सकती। आध्यात्मिक रूप से शायद यह संभव हो भी सकता है, लेकिन बौद्धिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से सभी एक ही जगह नहीं पहुंच सकते। लेकिन हम चाहते हैं कि हर कोई अपनी योग्यता के मुताबिक अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर तक तो पहुंच ही जाए। और इसी के लिए संगठन महत्वपूर्ण हो जाता है।
अब तक आपने संगठन के नकारात्मक पहलुओं के बारे में जाना। लेकिन आपको यह भी समझना चाहिए कि संगठन की अद्भुत प्रकृति होती है और इससे हर इंसान को अवसर मिल पाता है, जो इसके बिना संभव नहीं हो पाता।
इसलिए इसकी नाजुकता को समझते हुए और इसके साथ आगे बढ़ते हुए हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि संगठन सुदृढ़ भी रहे और कभी निर्मम या बेहद कठोर भी न बन जाए। और ऐसा करने के लिए हर दिन, हर पल आपको समझौता करना होगा। हालांकि इसे करने का कोई तयशुदा तरीका नहीं है।
किसी व्यक्ति की ज्ञान की दिशा कौन-सी होगी, यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है, लेकिन मूल रूप से हर व्यक्ति अपने आसपास घिरी अज्ञानता से बाहर निकलना चाहता है।
अगर सिर्फ एक ही छात्र हो और सारे अध्यापकों का पूरा ध्यान उसी एक छात्र पर टिका हुआ हो, तो संभव है हम सर्वश्रेष्ठ या कहें 'परफेक्ट' शिक्षा दे पाएंगे। लेकिन जब हम सभी को शिक्षित करने की कोशिश करते हैं, तो उस स्थिति में कोई सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संभव नहीं हो सकती। लेकिन इसके साथ ही यह भी बेहद महत्वपूर्ण है कि दुनिया भर में लोकतंत्र के नाम पर, सब को साथ लेकर चलने के नाम पर, हर व्यक्ति को शामिल करने के नाम पर प्रतिभाशाली संभावनाओं को दबाया नहीं जाना चाहिए।
मुझे ऐसी कोई शिक्षा व्यवस्था नजर नहीं आ रही, जिसे हम एक आदर्श ढांचा कह सकें, हरेक में तमाम कमियां हैं। आप चाहे जैसा ढांचा तैयार कर लें, उसमें आप भले ही कमियां न ढूंढ पाएं, लेकिन बच्चे जरूर उसमें कमियां निकाल लेंगे। आप पाएंगे कि आप जैसी भी पुख्ता व्यवस्था क्यों न बनाएं, बच्चे उसमें सुराख ढूंढ ही लेते हैं। मेरे ख्याल से ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं, जो व्यव्स्था में कमियां ढूंढ निकालते हैं इसका मतलब कि वे बच्चे वाकई अच्छे हैं!
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