लगभग पूरी दुनिया में जब भी कोई किसी को शांत या चुप कराना चाहता है तो वह ‘श्श्श्श’ ध्वनि का इस्तेमाल करता है। क्या ‘श्श्श्श’ का मतलब मौन व स्थिरता है?

प्रश्न कर्ता: एक मां के तौर पर मुझे अपनी कई ऐसी रातें याद हैं जो मैंने अपनी आंखों में काटी हैं। जब मैं अपने रोते हुए नवजात बच्चे को लेकर लगातार घुमाती थी, उसे थपकी देती हुई लगातार कहती जाती थी- ‘श्श्श्श’, जिससे वह शांत हो कर सो सके। ऐसा लगता था कि मेरी वह तरकीब लगभग तुरंत काम कर जाती थी। यहां तक कि बच्चे थोड़े बड़े भी हो गए तो भी मुझे लगता है कि यह आवाज उन पर काम करती है, उन्हें शांत करती है। जब भी वे थोड़े परेशान या दुखी होते हैं या किसी खास मौके पर काफी उग्र और बेकाबू होने लगते हैं तो मैं ‘श्श्श्श’ ध्वनि की मदद से उन्हें शांत व स्थिर करने की कोशिश करती हूं। मुझे इस ध्वनि का असर व महत्व देखकर हैरानी होती है। सद्‌गुरु, क्या आप इस ध्वनि के महत्व पर कुछ रोशनी डाल सकते हैं, क्या इस ध्वनि की कोई सार्वभौतिक प्रकृति है, जो सचेतन रूप से स्थिरता या शांति के लिए इस्तेमाल की जाती है?

सद्‌गुरुसद्‌गुरु : यह बहुत अच्छी बात है कि आपने इस चीज पर गौर किया। लगभग पूरी दुनिया में जब भी कोई किसी को शांत या चुप कराना चाहता है तो वह ‘श्श्श्श’ ध्वनि का इस्तेमाल करता है। ‘श्श्श्श’ का मतलब है मौन व स्थिरता। ‘श्श्श्श’ का मतलब है परम, क्योंकि जो चीज स्थिर है वही अपने अस्तित्व की प्रकृति में परम अवस्था पर है। जो ध्वनि की स्थिति में है, वह स्पंदन है। स्पंदन या गूंज में एक शुरुआत होती है और एक अंत। आापने देखा होगा कि जब एक ही संस्कृति में अलग-अलग गतिविधियों में लगे लोग स्वभाविक तौर पर अलग-अलग संगीत के प्रति आकर्षित होंगे। अगर ध्यान में बैठना और मुक्ति की कामना आपका लक्ष्य है तो फि र आपको अलग तरह का संगीत अच्छा लगेगा। अगर आपका मकसद प्रेम है तो आप अलग तरह का संगीत सुनना चाहेंगे।

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आप किसी ट्यूनिंग फोर्क पर थपकी देते हैं या किसी तार को छेड़ते हैं तो उसमें से स्पंदन की एक शुरुआत होती है और अंत भी होता है। ‘श्श्श्श’ का मतलब शांति, चुप्पी, मौन व स्थिरता है। एक मां के तौर जब आप बच्चे को ‘श्श्श्श’ कहती हैं तो उसका आशय होता है कि वह चुप हो जाए, वह शांत हो जाए और शायद वह सो जाए। लगभग पूरी दुनिया में जब भी लोग किसी भी वजह से रोते हुए बच्चे को शांत कराना चाहते हैं और सुलाना चाहते हैं तो उसे ‘श्श्श्श’ कह कर चुप कराते हैं। रोते हुए बच्चे से किसी और शब्द को बोलकर, मसलन ‘धम, धूम, धड़ाक’ बोलकर कोई नहीं कहता, जाओ सो जाओ। ऐसा कभी नहीं हुआ।

अस्तित्व की मूल ध्वनियाँ शांति पैदा करती हैं

अगर आप सहज बुद्धि या समझ को काम करने दे रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप योग से जुड़े हैं। यूं तो हम इसे विज्ञान के तौर पर देख सकते हैं। विज्ञान कोई इंसान की बनाई हुई चीज नहीं है। जबकि समाज इंसान द्वारा बनाई गई चीज है। समाज की तमाम चीजें बनाई गई है, समाज बनाया गया है, लेकिन विज्ञान बनाया गया नहीं है, बल्कि यह खोजा गया है। खोज का मतलब है कि यह पहले ही मौजूद था, बस आपने उसे देखा। तो लोगों ने जब इसे देखा तब इसे अनुभव किया। अब हम इसकी एक व्यवस्थित प्रस्तुतिकरण के जरिए विज्ञान को एक नया रूप देते हैं। योग विज्ञान में ‘श्श्श्श’ की ध्वनि मूलभूत ध्वनि मानी गई है, क्योंकि शांति या मौन से पहले यही आती है। ‘श्श्श्श’ की ध्वनि जहां से आती है, वह मूल रूप से ‘म्म्म्म’ है। अगर आप मुंह बंद कर के सांस छोडि़ए तो ‘म्म्म्म’ की ध्वनि निकलती है। सांस छोड़ते हुए थोड़ा सा मुंह खोलिए तो ‘श्श्श्श’ निकलता है। थोड़ा और मुंह खोलिए तो यह ‘ओऽऽऽ’ हो जाता है। फि र मुंह और खोलने पर यह ध्वनि ‘आऽऽऽ’ में बदल जाती है। तो ‘श्श्श्श’ की ध्वनि वो है, जिसके जरिए आप शोर को शांत कराने की कोशिश करते हैं।

शांत, चुप, मौन, निद्रा, स्थिरता, ध्यानावस्था- यानी शिव। तो यह अच्छी बात है कि आपने इस पर गौर किया। यह हर संस्कृति में कई अलग-अलग रूपों में मौजूद है। चाहे कोई इंसान हो या फि र किसी खास मकसद से इकट्ठे हुए लोगों से उपजी व विकसित हुई कोई संस्कृति, ये हमेशा अपने आसपास कुछ खास तरह की ध्वनियां रचने की कोशिश करते हैं।

भौतिक प्रकृति वाले संगीत हलचल पैदा करते हैं

मेरे घर में ध्वनि को लेकर कुछ नाटकीय ढंग से चीजें घटित हुईं। बचपन में मुझे और मेरे भाई को रॉक एंड रोल के अलावा कोई और संगीत पसंद ही नहीं आता था। दरअसल, यह संगीत पूरी दुनिया के बच्चों और युवाओं को रोमांचित करता है, क्योंकि यह काफी भौतिकता व शारीरिक गतिविधियों से जुड़ा है। मेरी मां अपनी ही दुनिया में मगन रहतीं, इसलिए उन्हें रॉक एंड रोल परेशान नहीं करता था। लेकिन मेरे पिता को इससे बड़ी दिक्कत होती थी। कम से कम वह दिखाते तो यही थे कि उन्हें इससे नफ रत है और वह इसे सहन नहीं कर सकते। दरअसल, वह शास्त्रीय संगीत सुनना चाहते थे और हम बच्चे उस दौरान शास्त्रीय संगीत को झेल भी नहीं सकते थे। जैसा कि आप जानते हैं कि रॉक एंड रोल को धीमी आवाज में सुना ही नहीं जा सकता। इसका आनंद लेने के लिए इसके ध्वनि को एक खास स्तर तक रखना जरूरी है। जैसे ही हम अपनी पिच बढ़ाते थे, पिताजी सहन नहीं कर पाते थे। पिताजी जब व्यस्त होते और अपने काम में डूबे होते तो हम लोग धीरे से रॉक एंड रोल की आवाज बढ़ा देते। उधर काम में डूबे पिताजी के पैर अनजाने में ही धीरे-धीरे खुद ब खुद हिलने लगते। और तब हम उन्हें घेर कर कहते, ‘देखा, आपको भी हमारा संगीत अच्छा लगता है। हालांकि आप अभी इसे लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं, इसलिए आप कहते हैं कि आपको यह अच्छा नहीं लगता। आप अपने पैरों को देखिए, यह अभी भी थपकी दे रहे हैं।’

मैं यह सब इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि पसंद और नापसंद आपके भीतर की प्रतिक्रियाएं हैं। लेकिन अगर आप संगीत को सहज रूप से सुनें तो आप गौर करेंगे कि सारे लोक-संगीत कुदरती तौर पर आपके शरीर में गति पैदा करते हैं, आपमें शारीरिक तौर पर हलचल मचाते हैं। यहां तक कि रॉक एंड रोल भी लोक संगीत का आधुनिक स्वरूप है। हालांकि आज लोक संगीत के बहुत सारी विधाओं में भारी विकृति आ गई है, फि र भी यह आपमें हलचल मचाता है। दरअसल जो भी संगीत आपके शरीर में गति ला दे, जो उसमें थिरकन ला दे, उस संगीत की प्रकृति बुनियादी रूप से भौतिक होती है।

सृष्टि में जितनी भी तरह की गूंज है, अचलता से भौतिकता तक, परम शांति से भौतिक प्रकटीकरण तक, उनमें से भौतिक अभिव्यक्ति सबसे स्थूल स्वरूप है। तो जब आप उस तरह की ध्वनि पैदा करते हैं, तो स्वाभाविक तौर पर आपका शरीर थिरकने लगता है, इसीलिए इसे रॉक एंड रोल कहा जाता है। अब मुझे यह तो नहीं पता कि इसने कभी आपको लुढक़ने या रोल करने पर मजबूर किया है या नहीं, लेकिन इसने आपको थिरकने पर यानी ‘रॉक’ करने के लिए जरूर मजबूर किया होगा। हां, अगर किसी और तरह का संगीत सुनें, अगर आप भारतीय शास्त्रीय संगीत की कुछ खास रागें सुने तो आप देखेंगे कि लोग बिल्कुल शांत व स्थिर होकर उन्हें सुन रहे हैं।