जब भी मैं किसी को मिट्टी को ‘डर्ट’ या गंदगी कहते सुनता हूं, तो मैं उससे सहमत नहीं हो पाता। खासकर अमेरिका में मैं बहुत से लोगों को इसे डर्ट कहते सुनता हूं। हो सकता है कि यह महज़ एक शब्द हो, मगर हम मन में धूल का मतलब समझते हैं - कचरा, यानी ऐसी चीज जो आप नहीं चाहते। मैं इस शब्द को हजारों बार सुन चुका हूं, मगर फिर भी हर बार इसे सुनकर मुझे परेशानी होती है।

जिसे आप अपना शरीर कहते हैं, वह बस धरती का एक अंश है। यह उस भोजन का एक ढेर है जिसे आपने खाया है। आप बस इस धरती का एक छोटा सा अंश हैं, न उससे अधिक, न उससे कम। अभी आप उसका एक ऐसा हिस्सा हैं, जो इधर-उधर डोल रहा है। कुछ समय के बाद आप एक छोटा सा ढेर बन कर रह जाएंगे। तो अगर आप कच्चे माल को गंदगी कहेंगे तो उससे बना उत्पाद भी गंदगी ही तो हुआ।

धरती पर एक पात्र भर हैं आप

भारत में, मसलन तमिलनाडु में हम पारंपरिक तौर पर मिट्टी को ‘थाईमन्नु’ यानी धरती मां कहते हैं। हमारी संस्कृति में हर चीज को जीवन बनाने वाले तत्व के रूप में देखा जाता है। यही वजह है कि हम भोजन, जल, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, पत्थर, पेड़ – हर चीज के आगे सिर झुकाते हैं। हम किसी चीज को वस्तु नहीं मानते, जिसे आप इस्तेमाल करके फेंक सकते हैं। इस अस्तित्व में आप किसी चीज को इस्तेमाल करके फेंक नहीं सकते। वह आपसे होकर गुजरती है, वह एक खास समय तक आपका एक हिस्सा रहती है, उसके बाद वह कुछ और बन जाती है। आप सिर्फ रिले धावक हैं, आप इस धरती के इकलौते धावक नहीं हैं।

अभी आप जिस शरीर को धारण किए हुए हैं, वह अतीत में लाखों शरीर बन चुका है। यह कीड़ा, पशु, सांप, गाय, बंदर, इंसान रहा है, मैं विकास की क्रमिक प्रक्रिया की बात नहीं कर रहा हूं, मैं मिट्टी द्वारा जीवन के अनेक रूप लेने की बात कर रहा हूं। इसलिए यह कोई वस्तु नहीं है। यह आपसे बड़ी, आपसे समझदार, आपसे कहीं ज्यादा बुद्धिमान और ज्यादा काबिल है। आप एक इंसान के रूप में जिस प्रक्रिया से गुजरते हैं, यह उससे कहीं बड़ी प्रक्रिया है। पृथ्वी पर जो खेल हो रहा है, आप उसमें एक छोटे से पात्र भर हैं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

जीवन के बुनियादी तत्वों के प्रति आदर

आधुनिक शिक्षा और संस्कृतियों का पूरा ज़ोर इस पर है कि हमारे भौतिक वातावरण का - हर प्राणी और हर चीज़ का, कैसे इस्तेमाल और शोषण करें। जीवन के हमारे अनुभव को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं सिखाया जाता। 

अगर आपके नंगे हाथ-पांव, खास तौर पर हथेलियां और तलवे रोजाना मिट्टी के संपर्क में आएं, तो इससे आपकी शारीरिक क्रिया में संतुलन आएगा। 
हमने अपने आस-पास की हर चीज का इस्तेमाल करना सीख लिया है मगर उससे खुशहाली नहीं आई है। आज दुनिया में हम इस तरह से चिकित्सा का ढांचा तैयार कर रहे हैं मानो हम किसी न किसी दिन हर किसी के गंभीर रूप से बीमार होने की उम्मीद कर रहे हैं। एक समय ऐसा था जब शहर भर में सिर्फ एक डॉक्टर होता था और वह भी काफी होता था। आज कल हर गली में पांच डॉक्टर हैं और वे भी काफी नहीं हैं। यह दर्शाता है कि हम किस तरह से जी रहे हैं।

अगर हम अच्छा जीवन चाहते हैं, तो जिस धरती पर आप चलते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं, जिस पानी को पीते हैं, जिस भोजन को खाते हैं, जिन लोगों के संपर्क में आते हैं और हर वह चीज जिसे आप इस्तेमाल करते हैं, जिसमें आपका शरीर और मन भी शामिल है, के लिए आदर का भाव रखना चाहिए। यह हमें जीवन की एक अलग संभावना की ओर ले जा सकता है।

धरती से जुड़ने के लिए सरल अभ्यास

आप जिस धरती पर चलते हैं, उसमें बुद्धि और याद्दाश्त होती है। बेशक आप कंक्रीट के जंगल में रहते हों, लेकिन मिट्टी के संपर्क में रहना बहुत महत्वपूर्ण है। किसी न किसी तरह ऐसा करने के तरीके खोजिए।

बुनियादी तत्वों को रोज अपने अनुभव में लाने के लिए एक अभ्यास हम सिखाते हैं, जिसे ‘भूतशुद्धि’ कहा जाता है। 
अगर आपके नंगे हाथ-पांव, खास तौर पर हथेलियां और तलवे रोजाना मिट्टी के संपर्क में आएं, तो इससे आपकी शारीरिक क्रिया में संतुलन आएगा। रोज कम से कम चंद मिनट बगीचे में नंगे पांव बिताएं, पौधों या पेड़ों को छुएं क्योंकि धरती जीवन का आधार है। यह धरती के साथ जुड़ने का एक आसान तरीका है।

प्रदोषम यानी अमावस्या से दो दिन पहले से लेकर अमावस्या तक का समय इस अनुभव के लिए खास तौर पर अनुकूल होता है। इन दिनों चंद्रमा जड़ता का एक खास स्तर पैदा करता है और आपका शरीर व उसकी ऊर्जा दूसरे दिनों के मुकाबले धरती से अधिक जुड़ी होती हैं। अगर आप रोज ऐसा नहीं कर सकते, तो कम से कम प्रदोषम से अमावस्या तक जरूर कीजिए। अगर बाहर संभव न हो, तो कम से कम घर में कीजिए। फर्श पर नंगे पांव चलिए  और बैठिए, खास तौर पर पालथी मारकर। इन दोनों से एक गहन ऊर्जा संपर्क पैदा होता है और धरती का अंश होने का अनुभव मिलता है। लेटने से आपको इस तरह का चेतन अनुभव नहीं मिलेगा। हम जानते हैं कि लेटकर आप किस तरह का ध्यान करेंगे! इसके अलावा, जब आप नीचे लेटते हैं, तो ऊर्जा जिस तरह से काम करती है, वह एक चेतन अनुभव के लिए अनुकूल नहीं होता।

भूतशुद्धि क्रिया और चेतनता का अभ्यास

हमारी संस्कृति में धरती से जुड़ाव महसूस करने के लिए बहुत सी दूसरी प्रथाएं भी हैं। इसके लिए साल के कुछ खास दिनों में लोग थोड़ी सी मिट्टी भी खाते हैं, आम तौर पर दीमक के ढेर या ऐसी ही जगहों से। बुनियादी तत्वों को रोज अपने अनुभव में लाने के लिए एक अभ्यास हम सिखाते हैं, जिसे ‘भूतशुद्धि’ कहा जाता है।

अगर आप अपनी हर सांस के प्रति चेतन हो सकें, तो यह सबसे अच्छा होगा। जब आप सांस लेते हैं, तो देखें कि आप इस धरती के एक ख़ास हिस्से को सांस से अपने भीतर ले रहे हैं। जब आप कुछ खाते हैं, तो महसूस करें कि आप इस धरती के एक हिस्से को खा रहे हैं। जब आप पानी पीते हैं, तो महसूस करें कि आप इस धरती का एक अंश पी रहे हैं। आपको इस जुड़ाव को समझना चाहिए और इसके प्रति चेतन होना चाहिए मगर सिर्फ उससे अनुभव के स्तर पर जुड़ाव नहीं आएगा। अनुभव के स्तर पर एक असली जुड़ाव का मतलब है कि आप धरती को अपने हिस्से के रूप में इस तरह अनुभव करें, जिस तरह आप अपनी उंगली को अपना हिस्सा मानते हैं।

नंगे पांव चलें, जमीन पर पालथी मार कर बैठें, भूतशुद्धि क्रिया करें। जब आप खाएं, सांस लें या कुछ पिएं, तो जागरूक रहें कि आप इस धरती के एक हिस्से को अपने भीतर ले रहे हैं। आप जो कुछ भी करते हैं, उसे जितना संभव हो उतना चेतन बनाएं। इससे जीवन का आपका अनुभव बहुत ही अलग हो जाएगा।