किसी इंसान के प्रति भावनाओं की मिठास को अक्सर प्रेम कहा जाता है, लेकिन कभी-कभी हमें यह भी लगता है कि हम व्यर्थ ही मोह में फंस गए हैं। हम यह कैसे पता लगा सकते हैं कि हमारे भीतर सच्चा प्रेम है या फिर हम मोह से घिरे हुए हैं?

 

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लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि प्रेम में इतना ज्यादा कष्ट क्यों होता है? देखिए, एक चीज होती है प्रेम। और एक दूसरी चीज है, जिसे आसक्ति या मोह कहते हैं।

योग में ‘ध्यान’ के पीछे भी यही विचार है, स्थूल शरीर की सीमाओं को तोडना। जब आप भौतिक शरीर की सीमाओं और बंधनो को तोड़ देते हैं, तो संभव है कि आपके शरीर में स्पंदन होने लगे, आपकी आंखों में आंसू भर आएं।
आजकल जिसे लोग प्रेम कहते हैं, वह किसी दूसरे के साथ खुद को बांधने का, खुद की पहचान बनाने का एक तरीका है। लेकिन यह प्रेम नहीं है, यह मोह है, आसक्ति है। हम हमेशा आसक्ति को ही प्रेम समझ बैठते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि आसक्ति का प्रेम से कोई लेना-देना नहीं है।

एक मिसाल के तौर पर हम कह सकते हैं कि प्रेम एक फूल की तरह है। एक बार जब फूल आपके जीवन में जगह बनाता है, तो आपको इसकी देखभाल करनी पड़ती है। इसको पोषण देना होता है, इसे खिलने के लिए सही माहौल बनाने की जरूरत होती है। जब आप फूल को हाथ में लेते हैं, तो आपको उसे सावधानी से सम्हालना होता है। इस वजह से आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है, पर वो फूल आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

जबकि मोह प्लास्टिक के फूल की तरह है। यह बेहद सुविधाजनक है, लेकिन जब यह आपके जीवन में आता है, तो चिंता और बेचैनी भी साथ लाता है। अगर बेचैनी आ गई तो डर भी आएगा। अगर डर आ गया, तो अगला नंबर पागलपन का होगा। इसे इस मिसाल से समझते हैं। मान लीजिए, आपका बच्चा स्कूल गया। उसे पांच बजे तक घर आ जाना था, लेकिन छह बजे तक भी वह नहीं लौटा। ऐसे में आपको बेचैनी शुरू हो जाएगी। सात बजे तक वह नहीं लौटा, तो आपके मन में डर पैदा हो जाएगा। अगर वह आठ बजे तक भी नहीं लौटता, तो आप पर पागलपन सवार हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि अचानक आप पागल हो जाएंगे, लेकिन परिस्थिति ने इस प्रक्रिया को तेज जरूर कर दिया। यानी जिस पल आप मोह में फंसते हैं, आप पागलपन के रास्ते चल पड़ते हैं। ऐसे में आपको कष्ट होना लाजिमी है।

प्रेम के मामले में ऐसा नहीं है। प्रेम कोई निजी फायदे के लिए नहीं है। प्रेम कोई सुख हासिल करने का साधन नहीं है। सच्चा प्रेम खुद को मिटाने का तरीका है। इसमें आपको अपने खुद के एक हिस्से को, अपने इस ‘मैं’ को छोड़ना होगा, विसर्जित करना होता है। लेकिन यह जीवन है। अब चुनाव आपको करना है। क्या आप जीवन को चुनेंगे या किसी ऐसी चीज को, जो जीवन के जैसी नजर आती है? अभी ज्यादातर लोग उस चीज को चुन रहे हैं, जो जीवन के जैसी नजर आती है, क्योंकि लोग जीवन से होकर गुजर ही नहीं रहे हैं, वे तो बस विचारों में उलझे हुए हैं। नब्बे फीसदी मामलों में ऐसा होता है कि लोग जीवन के बारे में बस सोचते रहते हैं। ये विचार जीवन के बारे में हो सकते हैं, लेकिन ये जीवन नहीं हैं। जीवन एक ऐसी चीज है, जिसे आप अनुभव करते हैं। विचार सिर्फ आपके दिमाग की उपज हैं।

तो प्रेम कष्ट नहीं है।

जबकि मोह प्लास्टिक के फूल की तरह है। यह बेहद सुविधाजनक है, लेकिन जब यह आपके जीवन में आता है, तो चिंता और बेचैनी भी साथ लाता है।
अगर आप किसी इंसान से या किसी चीज से प्रेम करते हैं, तो जब वे आपके साथ हैं तो आप उनकी मौजूदगी का आनंद ले सकते हैं और जब वे आपके साथ नहीं हैं, तो आप उनकी गैरमौजूदगी का आनंद ले सकते हैं। प्रेम के नाम पर आप जो कर रहे हैं, वह यह है कि आप चाहते हैं कि उस इंसान के साथ एक हो जाएं, जिसे आप प्रेम करते हैं। आप पूरे जगत के साथ एक हो जाना चाहते हैं। आप अनन्त, असीमित हो जाना चाहते है। क्या आप शारीरिक तौर पर किसी के साथ एक हो सकते हैं? एक पल के लिए एकत्व हो सकता है, लेकिन अगले ही पल आप अपने आप को अलग पाते हैं। तो अगर आप एकाकार होना चाहते हैं, तो आपको भौतिकता से परे जाना होगा।

योग में ‘ध्यान’ के पीछे भी यही विचार है, स्थूल शरीर की सीमाओं को तोडना। जब आप भौतिक शरीर की सीमाओं और बंधनो को तोड़ देते हैं, तो संभव है कि आपके शरीर में स्पंदन होने लगे, आपकी आंखों में आंसू भर आएं। एकत्व का परम आनंद आपको रूपांतरित करता है और सभी सीमाओं और बंधनों से परे आपको संपूर्ण बना देता है।