पसंद और नापसंद - दोनों ही बांधते हैं हमें
हर किसी की चाह होती है सारे बन्धनों से मुक्त होने की। कौन-सी बुनियाद है जिन पर हमारे बंधन टिक कर खड़े हैं? हमारी पसंद और पसंद ही वोह बुनियाद है....
हर किसी की चाह होती है सारे बन्धनों से मुक्त होने की। कौन-सी बुनियाद है जिन पर हमारे बंधन टिक कर खड़े हैं? हमारी पसंद और पसंद ही वो बुनियाद है....आइये जानते हैं इस महीने के ईशा लहर सम्पादकीय स्तंभ के माध्यम से
आजादी किसे अच्छी नहीं लगती? पिंजड़े में कैद पक्षी हो या रस्सी से बंधा हुआ पशु, हर प्राणी आजादी चाहता है। फि र इंसान, जिसकी चेतना इन पशु-पक्षियों से कहीं श्रेष्ठ है, भला वह क्यों नहीं चाहेगा आजाद होना? इसीलिए हर सभ्यता में इंसान ने आजादी के लिए हमेशा संघर्ष किया है। तो क्या आज मानव जाति आजाद है?
शायद आप कहेंगे-हां। लेकिन अगर गौर से देखें तो आपको समझ आ जाएगा कि दुर्भाग्य से आज बहुत बड़े स्तर पर मानव जाति गुलाम है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम अपनी गुलामी को ही आजादी समझने लगे हैं, क्योंकि आजादी की हमारी सोच बेहद बचकानी हो गई है।
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गुलामी दो तरह की होती है- बाहरी और भीतरी। बाहरी गुलामी से आजाद होना फि र भी आसान है, लेकिन भीतरी गुलामी से आजादी . . .? हमें तो अपनी इस भीतरी गुलामी का अहसास तक नहीं है, फि र आजादी की कोशिश कैसे होगी? हम आज भी गुलाम हैं - कई स्तरों पर, कई रूपों में। तो क्या है ये भीतरी गुलामी? किसके गुलाम हैं हम?
जब हमारी सोच का दायरा बहुत सीमित होता है, हम कई तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो जाते हैं, फिर हमारे ऊपर पसंद और नापसंद की सनक सवार हो जाती है। तब हम उसे नहीं देख पाते जिसकी जरुरत है। हम वही करते हैं जिसे हम पसंद करते हैं, वह नहीं जिसे किए जाने की जरुरत है। फि र शुरू होता है अविराम झंझटों व विवादों का सिलसिला और उसी में उलझकर रह जाता है हमारा लघु-जीवन।
योग परंपरा में भीतरी आयाम को बहुत गहराई से देखा गया और भीतरी गुलामी से मुक्त होने की कई तकनीकें ईजाद की गईं, क्योंकि जो भीतरी गुलामी का शिकार नहीं है, उसे कोई बाहरी शक्ति गुलाम नहीं बना सकती। पसंदों और नापसंदों की सनक से मुक्त होने के लिए हमें अपनी चेतना पर काम करना होगा। एक जागरूक इंसान ही यह देख पाने में सक्षम होता है कि किसी खास परिस्थिति में क्या आवश्यक है और क्या किया जाना चाहिए।
आप भी अपनी इस भीतरी गुलामी से मुक्त हो सकें और असली आजादी को पा सकें, इस सुकामना के साथ इस बार के अंक में हमने कोशिश की है इस विषय से जुड़े पहलुओं को समेटने की। हमें पूरा विश्वास है कि त्यौहारों के इस मौसम में, दीपोत्सव के उजास में, आप अपने अंतर में पूर्ण आजादी का प्रकाश फैला पाएंगे। शुभम् भवेत।