सद्‌गुरुसद्‌गुरु से प्रश्न पूछा गया कि अगर परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई नज़दीकी व्यक्ति नशे की गिरफ्त में आ जाए तो हमें क्या करना चाहिए। सद्‌गुरु हमें नशा मुक्ति के बारे में बता रहे हैं...

प्रश्न : सद्‌गुरु, अगर परिवार का कोई सदस्य या नजदीकी व्यक्ति नशे की गिरफ्त में आ जाए तो क्या करना चाहिए?

बड़े शहरों में तेज़ी से बढ़ रहा है चलन

सद्‌गुरु : बहुत मुश्किल है। यह निर्भर करता है कि वह नशा किस तरह का है। अगर कोई केमिकल नशे के चंगुल में फंस गया है तो उससे उबरना आसान नहीं है। मैंने कई परिवारों को बहुत ही दुखद स्थितियों में देखा है। कई बार इंसान के अंदर इन चीजों से बाहर आने की इच्छा भी होती है, पर वह आ नहीं पाता। कई बार उसके भीतर इच्छा ही नहीं होती। उसे लगता है कि वह कुछ भी गलत नहीं कर रहा है। ऐसे में कोई रास्ता नहीं है। पश्चिमी देशों में तो यह सब इतना ज्यादा है कि वहां की संस्कृति में रच-बस गया है। ऐसा कोई नहीं है, जो यह कह सके कि उसने कभी इन पदार्थों का सेवन नहीं किया। सौ फीसदी न सही, लेकिन अस्सी से पच्चासी फीसदी लोगों ने तो कभी-न-कभी इसका स्वाद लिया ही है। भारतीय संस्कृति में अभी हाल उतना बुरा नहीं है, लेकिन बड़े शहरों में यह तेजी से बढ़ रहा है। कुछ हिस्सों में तो इसका चलन बहुत ज्यादा है।

तार्किक बुद्धि के बढ़ने का परिणाम है ये

जैसे-जैसे धरती पर तार्किक ज्ञान बढ़ता है, यही स्वाभाविक परिणाम होता है, क्योंकि कुछ और है ही नहीं, जिसकी खातिर जिया जाए।

आप आकाश में नहीं देखना चाहते, आप वन्य जीवन नहीं देखना चाहते, क्योंकि वह सब आप नैशनल ज्यॉग्रफिक चैनल पर देख चुके हैं।
कुछ पीढिय़ों पहले अगर किसी को प्यार हो जाता था तो अगले तीस-चालीस साल तो वह उसी प्यार में निकाल देता था, लेकिन आज ऐसे भाव आपको तीन दिन भी ठीक से नहीं बांध पाते। बस केमिकल ही हैं, जो आपको बांधते हैं। इसके अलावा, आपको कोई चीज पकडक़र नहीं रख सकती, क्योंकि अपने फोन की स्क्रीन पर आप पूरा ब्रह्माण्ड तो वैसे भी देख चुके हैं। आप आकाश में नहीं देखना चाहते, आप वन्य जीवन नहीं देखना चाहते, क्योंकि वह सब आप नैशनल ज्यॉग्रफिक चैनल पर देख चुके हैं। ऐसी ही कई दिलचस्प चीजें आपको डिस्कवरी पर देखने को मिल जाती हैं। फिल्मों में आपने देखा ही है। ऐसे में केमिकल ही एक ऐसी चीज है, जो आपको अपने से बांधती है। इसलिए अगर कोई इस जंजाल में फंस जाए तो वह बड़ी मुश्किल स्थिति होती है। अगर बात एक हद से आगे निकल जाए तब तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है।

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नशा मुक्ति का इरादा होना चाहिए

लोग सुधार की बात करते हैं। कुछ समय के लिए वे अपने में सुधार ले आते हैं, लेकिन फिर थोड़े समय बाद वे फिर उसी चंगुल में फंस जाते हैं। फिर यह सब अंतहीन तरीके से चलता रहता है।

सुधार केंद्र कारगर होते हैं, लेकिन उससे पहले व्यक्ति के अंदर खुद यह इच्छा होनी चाहिए कि इसे छोडऩा है। अगर उनका इरादा ही नहीं है और हमने उन्हें जबर्दस्ती सुधार केंद्र में रख दिया तो यह काम नहीं करने वाला है।
मैं ऐसे कई परिवारों को जानता हूं। उनकी परेशानियां शब्दों में बयां नहीं की जा सकतीं। एक बार अगर ऐसे लोग केमिकल ड्रग्स की पकड़ में आ गए तो वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए वे कोई भी अपराध कर सकते हैं। अगर आपके बच्चे बड़े हो रहे हैं तो वे बाहर जाते ही होंगे। स्कूल कॉलेज तो जाते ही होंगे। उन पर नजर रखने की जरूरत है। मान लीजिए उन्होंने ऐसा कुछ किया और आपको पता चल गया तो आप उन्हें शुरु में ही रोककर उनका ध्यान दूसरी ओर लगा सकते हैं। अगर बच्चे को यह सब करते हुए दो साल गुजर गए, फिर स्थिति आपके हाथ से निकल जाएगी। ऐसे शख्स को ठीक रास्ते पर लाना बहुत मुश्किल है। ऐसे मामलों में सुधार का कोई एक विशेष तरीका नहीं है। सुधार केंद्र कारगर होते हैं, लेकिन उससे पहले व्यक्ति के अंदर खुद यह इच्छा होनी चाहिए कि इसे छोडऩा है। अगर उनका इरादा ही नहीं है और हमने उन्हें जबर्दस्ती सुधार केंद्र में रख दिया तो यह काम नहीं करने वाला है।

कुछ लोग इनर इंजीनियरिंग करके इससे मुक्त हुए हैं

प्रश्न : ऐसे लोगों को सुधार केंद्र पर ले जाने की स्थिति आने से पहले क्या कुछ ऐसे काम हैं, जो परिवार के लोग कर सकते हैं?

सद्‌गुरु : शारीरिक गतिविधियां और खेल। यह बहुत महत्वपूर्ण है। कई बार माता-पिता इस बात को लेकर पागल हो जाते हैं कि उनके बच्चे के नंबर पड़ोसी के बच्चे से ज्यादा आएं।

पहले जैसी स्थिति में पहुँचने के भी कई तरीके हैं - कुछ लोगों को हमने इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम में भी शामिल किया, बहुत से लोग नशे से बाहर आ भी गए, लेकिन मैं यह नहीं कह सकता कि यह शत-प्रतिशत कामयाब तरीका है।
वे हर वक्त पढ़ाई का बोझ बच्चों पर लादे रहते हैं। ऐसी चीजें भी बच्चों को कई बार नशीले पदार्थों के सेवन की ओर ले जाती हैं। अगर वे खेलों में हैं, तो उनका काफी समय शारीरिक गतिविधियों में लग जाता है। खेलों में वे दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करना चाहते हैं। ऐसे में नशे की तरफ बढऩे की आशंका कम हो जाती है।

नशे से बचे रहने की कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि बाहरी दुनिया का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, लेकिन अगर बच्चा खेलों में है तो इस प्रभाव को कम किया जा सकता है। वे बेहतर करना चाहते हैं, क्योंकि कामयाबी का नशा किसी भी दूसरी चीज के नशे से कहीं बड़ा होता है। बेहतर प्रदर्शन करने के लिए बच्चे सुबह उठेंगे, दौड़ लगाएंगे और शारीरिक श्रम करेंगे। ये चीजें उन्हें नशीले पदार्थों की ओर जाने से रोकेंगी। जो बच्चे ज्यादातर समय खाली रहते हैं, घर में बैठे रहते हैं और किसी विशेष काम में खुद को नहीं लगाते, उन्हें ऐसी चीजें जल्दी पकड़ लेती हैं। ऐसे में जब वे ऐसी चीजों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं, तो उन पर नजर रखी जानी चाहिए। कोई भी अजीब सी हरकत दिखाई दे, तो मां-बाप फौरन कदम उठाएं। इसके लिए मां-बाप को बच्चों के साथ अच्छा और नजदीकी रिश्ता भी कायम करना चाहिए, जिससे उनके जीवन में होने वाली किसी भी अजीब घटना का पता उन्हें फौरन लग सके। रोकथाम हमेशा बेहतर होती है, क्योंकि एक बार वे रसायनों के गुलाम बन गए तो फिर कुछ करना बहुत मुश्किल होगा। पहले जैसी स्थिति में पहुँचने के भी कई तरीके हैं - कुछ लोगों को हमने इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम में भी शामिल किया, बहुत से लोग नशे से बाहर आ भी गए, लेकिन मैं यह नहीं कह सकता कि यह शत-प्रतिशत कामयाब तरीका है। कोई एक ऐसा तरीका नहीं है, जो सौ फीसदी कामयाब हो।

संपादक की टिप्पणी:

*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:

21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार