सद्‌गुरु: सद्‌गुरु : आज यह एक सामान्य वैज्ञानिक जानकारी है कि यह सारा अस्तित्व, ऊर्जा की एक गूंज है। अस्तित्व में जो कुछ भी भौतिक है वह सब एक गूंज या कंपन भर है, और जहाँ कंपन है वहां ध्वनि तो होगी ही। दूसरे शब्दों में कहें, तो ये सारा अस्तित्व ध्वनियों का एक जटिल मिश्रण है। कई हज़ार वर्षों पूर्व यौगिक विज्ञान ने इस तथ्य को मान्यता दी थी। हम इसे नाद ब्रह्म कहते हैं, जिसका अर्थ है कि यह समस्त सृष्टि और इस सृष्टि का रचयिता बस ध्वनि है।

एक ऐसी अवस्था जहां हर फ्रीक्वेंसी की ध्वनि सुनी जा सकती है

"अगर सब कुछ ध्वनि है तो मुझे ये सुनाई क्यों नहीं पड़ता?" इसका कारण ये है कि सृष्टि की गूंज की ध्वनियों की संपूर्ण श्रृंखला आम तौर पर मनुष्य के कानों के लिये उपलब्ध नहीं होती। हम जो कुछ सुन पाते हैं वह सिर्फ कुछ फ्रीक्वेंसीज़ या आवृत्तियों का एक छोटा सा समूह है - जिसे सोनिक अर्थात ध्वनियों की सुनाई दे सकने वाली श्रृंखला कहते हैं। इसके ऊपर जो कुछ होता है उसे हम अल्ट्रासोनिक या पराश्रव्य (जो सुनाई दे सकने वाली ध्वनियों से बहुत ज्यादा है, अतः सुनाई नहीं देता) कहते हैं। जो इसके नीचे है (और ये भी सुनाई नहीं देता) वह अल्ट्रासोनिक या अनुश्रव्य है। तो, ये दोनों - पराश्रव्य और अनुश्रव्य ध्वनियां - सामान्य रूप से मानवीय कानों की सुनने की क्षमता से बाहर होती हैं। फिर भी यह संभव है कि हम कुछ ऐसी अवस्थाओं में पहुँच सकें, जिन्हें हम ऋतंभरा प्रज्ञा कहते हैं, जहाँ आप सामान्य रूप से सुनाई देने वाली ध्वनियों की श्रेणी से बाहर की ध्वनियों को भी सुन सकते हैं।

फिर भी यह संभव है कि हम कुछ ऐसी अवस्थाओं में पहुँच सकें, जिन्हें हम ऋतंभरा प्रज्ञा कहते हैं, जहाँ आप सामान्य रूप से सुनाई देने वाली ध्वनियों की श्रेणी से बाहर की ध्वनियों को भी सुन सकते हैं। उस अवस्था में, यदि आप किसी भी रचना को देखते हैं तो उससे जुड़ी हुई ध्वनि आपके सामने स्पष्ट हो जाती है। सारे अस्तित्व को बस एक ध्वनि के रूप में अनुभव किया जा सकता है।

कई साल पहले, मैं हर वर्ष, एक या दो महीने के लिये, अकेला ही, हिमालय की यात्रा किया करता था। मैं एक बार केदारनाथ गया था। केदार एक अत्यंत शक्तिशाली एवं अदभुत स्थान है। केदार से कुछ ऊपर की ओर एक जगह है जिसे कान्ति सरोवर कहते हैं और आम तौर पर, लोग वहां नहीं जाते क्योंकि वहां बहुत मुश्किल चढ़ाई है। मैं कान्ति दारोवर तक गया और वहां एक चट्टान पर बैठा।

-- नाद ब्रह्म--

नाद ब्रह्म विश्व स्वरूपा,

नाद हि सकल जीव रूपा,

नाद हि कर्म, नाद हि धर्म,

नाद हि बंधन, नाद हि मुक्ति,

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नाद हि शंकर, नाद हि शक्ति,

नादम, नादम, सर्वम नादम,

नादम, नादम, नादम, नादम ।।

अर्थात, ध्वनि ही ब्रह्म है, ब्रह्मांड का प्रकट स्वरुप है, ध्वनि अपने आप को सभी प्रकार के जीवन के रूप में प्रकट करती है, ध्वनि ही कर्म है, ध्वनि ही धर्म है, ध्वनि ही बंधन है, ध्वनि ही मुक्ति है, ध्वनि ही सब कुछ देने वाली है, ध्वनि ही हर चीज़ में मौजूद ऊर्जा है, ध्वनि ही सब कुछ है।

अगर आप अपने आप को इस गीत को समर्पित कर दें तो इसमें कुछ विशेष प्रकार की शक्ति है। इसमें वह शक्ति है कि जो एक व्यक्ति को भंग या विसर्जित कर देती है, अगर आप वास्तव में अपने आप को इसमें झोंक दें तो।

मन्त्र का आकर्षक होना जरुरी नहीं है

जब किसी के अन्दर जीवित रहने, या जीवन यापन का भाव बहुत मजबूत होता है तो पुरुषत्व बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बात बचे रहने की है। क्योंकि बहुत लंबे काल तक बचे रहना ही ज्यादा महत्वपूर्ण था, इसलिए मानव जाति ने पुरुषत्व को ज्यादा महत्वपूर्ण माना। स्त्रीत्व अपने सही स्थान पर तभी आ सकता है जब समाज ने अपने जीवन यापन को अच्छी तरह से संभाल लिया हो और जब एक स्थिर संस्कृति तथा मानव सभ्यता के एक ख़ास स्तर को प्राप्त कर लिया हो।

अगर आप ध्वनियों को एक ख़ास पैटर्न या ढांचे में रखें,तो उनका एक ख़ास प्रभाव पड़ता है। हमारी संस्कृति में, हमने ऐसे अलग अलग ढांचों को खोजा और मन्त्र बनाये। मन्त्र, ध्वनि की एक तकनीकी रूप से सही व्यवस्था है, लेकिन इसका सुंदरता की दृष्टि से आकर्षक होना जरुरी नहीं है। एक मन्त्र का सुंदरता की दृष्टि से आकर्षक होने की बजाय, तकनीकी रूप से सही होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। मन्त्र किसी धर्म या संप्रदाय का नहीं होता, वह पूजा की कोई पद्धति भी नहीं होता। वे बस महत्वपूर्ण ध्वनियां हैं जो आप के लिये ब्रह्माण्ड का हर आयाम खोल सकती हैं। यौगिक विज्ञान में कुछ पद्धतियां हैं, जिनसे आप अपने अंदर ही किसी मन्त्र को थामते हैं और उसे विकसित करते हैं। बहुत से योगी अपना सारा जीवन, बस अपने अंदर एक ही मन्त्र को विकसित या सिद्ध करने में लगा देते हैं। तो, मन्त्र कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो आप कहते हैं, मन्त्र वो है जो आप बनना चाहते हैं। अगर आप स्वयं एक चाबी की तरह हो जायें, तो इससे आप के अंदर जीवन का एक नया आयाम तथा अनुभव खुल जाएगा।

भारतीय शास्त्रीय संगीत और मन्त्र

भारतीय शास्त्रीय संगीत मन्त्रों का एक संशोधित रूप है, जिसमें ध्वनि की सुन्दरता या कर्णप्रियता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी ध्वनियों की तकनीकी व्यवस्था। संगीत, ध्वनियों की एक ज्यादा सुधारी हुई, लयबद्ध और समरस व्यवस्था है। अगर आप इसे सुन पाएं, तो आप पाएंगे कि आप का सारा शरीर ही अद्भुत संगीतमय ध्वनियों से गुंजायमान हो रहा है। शिव के पास एक डमरू होता था क्योंकि यह जीवन की लय का प्रतीक है। किसी भी वस्तु में से जो भी ध्वनि प्रकट होती है, उसकी एक विशेष लय होती है। अगर हर ध्वनी में एक लय होती है, तो निश्चित ही उस कंपन में, उस गूंज में भी एक लय होगी जिसमें से यह ध्वनि निकलती है।

अपने अनुभवों के आधार, हम खुद हैं। इस वजह से हमने मानवीय शरीर के कुछ आयामों को पहचाना जो ध्वनि के प्रति संवेदनशील होते हैं।

भारतीय शास्त्रीय संगीत मानव तन्त्र या सिस्टम की गहरी समझ से पैदा हुआ है, क्योंकि जीवन के सारे अनुभव, मूल रूप से, हमारे अंदर ही पैदा होते हैं। प्रकाश और अंधकार, ध्वनि एवं मौन, प्रसन्नता एवं दुःख, ये सब हमारे अंदर ही होते हैं। हरेक मानवीय अनुभव अंदर ही होता है, कभी भी हमारे बाहर नहीं होता। अपने अनुभवों के आधार, हम खुद हैं। इस वजह से हमने मानवीय शरीर के कुछ आयामों को पहचाना जो ध्वनि के प्रति संवेदनशील होते हैं। अगर आप जानते हैं कि ध्वनियों का उपयोग कैसे करें तो ध्वनियों की एक उपयुक्त व्यवस्था अद्भुत काम कर सकती है।

मानवीय शरीर को संगीत से सक्रिय करने का तरीका

योग में, हम मानव शरीर को पांच कोषों या सतहों का बना हुआ देखते हैं -- अन्नमय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष, विज्ञानमय कोष तथा आनंदमय कोष।

प्राणमय कोष या ऊर्जा शरीर बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें 72000 नाड़ियाँ होती हैं, जो ऊर्जा मार्ग हैं और जिनमें से हो कर ऊर्जा सारे शरीर में बहती है। ये नाड़ियाँ, मानवीय शारीरिक व्यवस्था में 114 स्थानों या केंद्रों या चक्रों पर एक दूसरे से मिलती हैं, और फिर से बंट जाती हैं। इन 114 में से 2 केंद्र भौतिक शरीर से बाहर होते हैं तथा 112 शरीर के अंदर होते हैं, जिनमें से 4 अधिकाँश रूप से निष्क्रिय होते हैं।

तो शरीर में 108 सक्रिय ऊर्जा केंद्र रह जाते हैं। ये 108 स्थान शरीर के दायें और बायें भाग में समान रूप से बंटे हैं अर्थात दोनों तरफ 54, और ये इड़ा एवं पिंगला कहलाते हैं। इसी आधार पर हमने संस्कृत की 54 ध्वनियां बनायीं, प्रत्येक को एक पुरुष और एक स्त्री रूप में।

इन 108 ध्वनियों से परम संभावना तक पहुँचना नाद योग कहलाता है

भारतीय शास्त्रीय संगीत में, गणितीय सूक्ष्मता और शुद्धता से यह देखा गया है कि कौन-सी ध्वनियां इन 108 केंद्रों को सक्रिय कर सकती हैं, जिससे मनुष्य का स्वाभाविक उत्थान जागरूकता के ज्यादा ऊँचे स्तर की तरफ हो सके। भारतीय शास्त्रीय संगीत कभी भी सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा है। यह, एक मनुष्य को ब्रह्मांडीय स्तर तक विकसित करने की एक प्रणाली रहा है। इस संस्कृति में हम संगीत, नृत्य, जो कुछ भी करते हैं वे सिर्फ मनोरंजन के लिये नहीं होते, वे आध्यात्मिक प्रक्रियायें भी हैं। हमारे जीवन में मनोरंजन का दृष्टिकोण कभी नहीं था, सब कुछ जागरूकता के उच्च स्तर पर जाने की एक साधना ही था।

जब कोई आवश्यक भागीदारी के साथ भारतीय संगीत सुनता है या कोई शास्त्रीय संगीत की प्रक्रिया में स्वयं पूर्ण रूप से भाग लेता है तो उसे सिर्फ शरीर या भावनाओं के आनंद का ही लाभ नहीं मिलता परंतु यह जीवन के मजबूर करने वाले चक्रों से बाहर आने का एक तरीका हो जाता है।

इन 108 ध्वनियों का उपयोग कर के मानवीय सिस्टम को सक्रिय करना तथा इसे इसकी उच्चतम संभावना तक उठाना 'नाद योग' कहलाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत नाद योग की इस मूल प्रक्रिया का विकसित स्तर है। जब कोई आवश्यक भागीदारी के साथ भारतीय संगीत सुनता है या कोई शास्त्रीय संगीत की प्रक्रिया में स्वयं पूर्ण रूप से भाग लेता है तो उसे सिर्फ शरीर या भावनाओं के आनंद का ही लाभ नहीं मिलता परंतु यह जीवन के मजबूर करने वाले चक्रों से बाहर आने का एक तरीका हो जाता है। यह एक मार्ग बन जाता है जिससे आप जीवन की उन चक्रीय गतियों से ऊपर उठ कर स्वतंत्रता एवं मुक्ति को प्राप्त करते हैं।

श्रोताओं को तैयार करना

संगीत के इस अद्भुत प्रकार को पोषित करने एवं जारी रखने के लिये श्रोताओं को तैयार करना भी एक महत्वपूर्ण भाग है। श्रोताओं को तैयार किये बिना, तथा संगीत की नई प्रतिभाओं को प्रस्तुति का अवसर दिए बिना हम इस अद्भुत कला को जीवित नहीं रख सकते। यह उन अदभुत मार्गों में से एक है जिनसे हो कर हम अपनी सीमाओं से ऊपर उठ सकते हैं तथा एक परम सम्भावना तक पहुँच सकते हैं। यह करने के लिये कई मार्ग हैं पर भारतीय शास्त्रीय संगीत एक बहुत ही अद्भुत और सुंदर मार्ग है।