उदासी क्यों होती है? मुझे तो लगता है कि आप खुद अपने अन्दर अवसाद पैदा कर रहे हैं। इसीलिए नहीं  कि आपकी बीमारी को लेकर मुझे कोई चिंता नहीं या मेरी आप के प्रति दयाभाव की कमी है, बल्कि इसलिए कि आपके साथ जो हो रहा है उसकी असलियत यही है। वास्तव में अगर आप अपने अन्दर अवसाद पैदा कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपने अंदर काफी मात्रा में तीव्र भावनाएं और विचार पैदा कर पा रहे हैं, लेकिन उनकी दिशा सकारात्मक  नहीं है। अगर किसी भी चीज को लेकर आपके अंदर बहुत गहरी भावनाएं या तीव्र विचार नहीं पैदा होते हैं तो आपमें डिप्रशन भी पैदा नहीं होगा। बात दरअसल, इतनी सी है कि आप अपने भीतर जो विचार और भाव पैदा कर रहे हैं,  वे आपके पक्ष में नहीं, बल्कि आपके खिलाफ काम कर रहे हैं।

बचपन को याद कीजिए। उस वक्त आपको शारीरिक  तौर पर बीमार होना अच्छा लगता था, क्योंकि बीमार होने पर आपको अपनी मां की ज्यादा तवज्जो मिलती थी, पिता और घर के बाकी लोग आपका हालचाल पूछते रहते थे।

उदासी के अधिकतर कारण हमारे खुद के बनाए होते हैं। कुछ लोग में यह एक बीमारी के रूप में होता है । वे भला क्या कर सकते हैं, क्योंकि आनुवंशिक कारणों और तमाम दूसरी वजहों से यह समस्या उनके भीतर से ही आती है। लगभग हर कोई पागलपन से गुजरता है, क्योंकि समझदारी और पागलपन के बीच की सीमा रेखा इतनी बारीक है कि लोग इसे अक्सर पार कर जाते हैं। जब आप गुस्से में होते हैं, तो आप विवेक की सीमा को पार करके कुछ देर के लिए मूर्खता की तरफ जा रहे होते हैं। थोड़ी देर बाद आप फिर वापस आ जाते हैं।

आप रोजाना एक अभ्‍यास करके देखिए। दिन में 10 मिनट के लिए किसी पर तेज गुस्सा हो जाइए। आप पाएंगे कि तीन महीने के अंदर आप बीमार घोषित कर दिये जाएंगे। अगर आप बार-बार उस सीमा रेखा को पार करते रहेंगे, बार-बार गुस्से से पागल होते रहेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा, जब आप उस स्थिति से खुद को वापस नहीं ला पाएंगे। यही वो स्थिति होगी जब आपको बीमार करार दिया जाएगा। आप यह बात समझें कि आप एक पल के लिए ही सही,  बीमार तो हो ही गए! भले आपको इसका ड़ाक्टरी सर्टिफिकेट नहीं मिला।

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अवसाद को चाहिए तवज्जो

जीवन में बीमार होने पर कई फायदे होते हैं। बचपन से ही आपने यह महसूस किया होगा कि जब आप बीमार हो जाते हैं तो आपका सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है। जब आप मौज में होते हैं, मस्ती करते हैं तो बड़े आप पर चिल्लाते हैं। जब आप उदास होते हैं तो वे परेशान हो जाते हैं। बचपन को याद कीजिए। उस वक्त आपको शारीरिक  तौर पर बीमार होना अच्छा लगता था, क्योंकि बीमार होने पर आपको अपनी मां की ज्यादा तवज्जो मिलती थी, पिता और घर के बाकी लोग आपका हालचाल पूछते रहते थे। उस दिन स्कूल भी नहीं जाना पड़ता था। तो शारीरिक  रूप से बीमार होने की कला आपने सीख ली, लेकिन जैसे ही आपकी शादी हुई, आपने मानसिक रूप से बीमार होने की कला भी सीख ली। अगर आपको अपनी पत्नी का ध्यान खींचना हैं तो आप जाकर एक कोने में बैठ जाते हैं और उदास होने का नाटक करने लगते हैं। आपको लगता है कि नखरे करना आपका हक है, दूसरों पर गुस्सा करना आपका अधिकार है। आपको लगता है कि उदास हो जाना आपका विशेषाधिकार है, ताकि आप सबका ध्यान अपनी ओर खींचते रहें। अगर बार-बार ऐसा खेल खेलते रहे तो याद रखिए एक दिन ऐसा भी आएगा जब आप वापस सामान्य अवस्था की ओर नहीं लौट पाएंगे। उस दिन तो आपको डॉक्टर की जरूरत पड़ ही जाएगी।

बीमार नहीं स्वस्थ रहना है  

दुर्भाग्य की बात है कि धरती पर 70 फीसदी बीमारियां हमारी खुद की बनाई हुई हैं। संक्रमण के मामले में भी अगर आप शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को एक  खास अवस्था में रख पाते हैं, तो विषाणु और जीवाणु आप पर उस तरह से असर नहीं कर पाएंगे, जैसा कि वे किसी और शख्स पर करते। अपने आप को इस तरह ढालना मुमकिन है कि चाहे कुछ भी हो, बिना रुके अपने काम पर जाना ही है। पिछले 29 साल से मैंने एक भी कार्यक्रम इस वजह से केंसल नहीं किया है कि मुझे बुखार है,  सर्दी है या कोई और बीमारी है। मौसम के हर बदलाव में अगर आप खुद को कंबल में लपेटकर आराम से लेट जाते हैं, तो आपका शरीर जल्दी-जल्दी बीमार होना सीख लेगा। लेकिन अगर आप खुद को दूसरी तरह से ढाल लेंगे यानी यह सोचेंगे कि चाहे जो हो मुझे तो हर हाल में काम पर जाना ही है तो आप देखेंगे कि आपका शरीर बहुत तेजी के साथ स्वस्थ हो रहा है, भले ही उसे कितना भी भयंकर संक्रमण क्यों न हुआ हो!

अगर आप स्वस्थ हैं तो आपकी सराहना होनी चाहिए, बीमारी के लिए नहीं। अगर बच्चा बीमार है तो उस पर दूर से निगाह बनाए रखिए, उसके पास जाकर उसे दुलारते न रहिए।

तो अगर आप स्वस्थ हैं तो आपकी सराहना होनी चाहिए, बीमारी के लिए नहीं। अगर बच्चा बीमार है तो उस पर दूर से निगाह बनाए रखिए, उसके पास जाकर उसे दुलारते न रहिए। उसे पता है कि यह बड़ा बुरा समय है, लेकिन वह यह भी जानेगा कि उसे जल्दी से जल्दी ठीक होना है। जब वह स्वस्थ हो, जब वह खुश और मस्त हो तो उसे भरपूर तवज्जो दीजिए। आप देखेंगे कि वह अपने भीतर से ही यह सीखने लगेगा कि खुश और मस्त रहने के तमाम फायदे होते हैं। बीमार होने पर कुछ नहीं मिलता और खुश और स्वस्थ होने पर सभी का प्यार मिलता है।

आपको यह बात बहुत अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि मानसिक रूप से, शारीरिक रूप से, रासायनिक रूप से या ऊर्जा की दृष्टि से अगर आप बीमार हैं, नाखुश हैं या उदास हैं तो आपको कोई फायदा नहीं होने वाला है। इसके उलट अगर आप खुश हैं, स्वस्थ हैं, आनंद में हैं तो आपको लाभ होगा। अगर यह बात सभी लोगों को साफ-साफ समझ में आ गई तो फिर वे खुद ब खुद ठीक से रहने लगेंगे।

यह लेख ईशा लहर मासिक पत्रिका से लिया गया है।