सद्‌गुरुबहुत सी विचार धाराएँ लालच को एक रूकावट मानतीं हैं। क्या "और ज्यादा" पाने की चाहत सच में आध्यात्मिक पथ पर एक रूकावट है? जानते हैं ऐसे ही एक प्रश्न का उत्तर

प्रश्न : सद्‌गुरु, मैं जानना चाहता हूं कि लाभ के मकसद से शुरू किया गया कोई कारोबार क्या वास्तव में आध्यात्मिक सिद्धांतों के द्वारा चलाया जा सकता है? क्यों ये दोनों - कारोबार और अध्यात्म बुनियादी रूप से एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, खासकर नैतिकता के मानदंडो पर?

आध्यात्मिकता सिर्फ भीतरी स्थिति तय करती है

सद्‌गुरु: मुझे नहीं पता कि ऐसे विचार कहां से आते हैं, क्योंकि आध्यात्मिक प्रक्रिया कोई नैतिक मूल्यों की सूची नहीं है। आध्यात्मिक प्रक्रिया तो एक भीतरी खोज है। फिलहाल इसे लेकर एक गलतफहमी है।

अगर ‘मेरा’ का विस्तार हो जाए और यह पूरा ब्रम्हांड ‘मेरा’ हो जाता है, तो यह भी वही चीज है। बात सिर्फ इतनी है कि आप अपनी लालच का दायरा बढ़ा रहे हैं।
अगर आप कहते हैं कि आप आध्यात्मिक हैं तो यह सुनते ही लोग पहला सवाल आपसे करेंगे, वे कौन सी चीजें हैं, जो आप नहीं करेंगे या नहीं कर सकते। इन सब बातों से मुझे ऐसा लगता है कि बहुत से लोगों के लिए आध्यात्मिकता का मतलब किसी तरह की अक्षमता है। आध्यात्मिकता अक्षमता नहीं है। यह इंसान को सशक्त करने के साथ-साथ उसका विस्तार करती है। इसलिए आध्यात्मिकता यह तय नहीं करती कि इंसान को क्या करना चाहिए और क्या वह नहीं कर सकता। यह केवल यह तय कर सकती है कि आप कैसे हैं। तो अगर आप अपने भीतर से सबसे सहज और आरामदायक स्थिति में है तो जाहिर सी बात है कि आपके काम करने की क्षमता स्वाभाविक रूप से बढ़ जाएगी और यह एक ऐसी चीज है, जिसकी आज सभी कारोबारों में और खासकर बिजनेस लीडर्स को जरूरत है।

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आध्यात्मिक प्रक्रिया का किसी भी चीज़ से विरोध नहीं

जैसे ही आप किसी क्षेत्र में नेतृत्व की स्थिति में आ जाते हैं, फि र चाहे वह व्यापार का क्षेत्र हो या कोई और, तो हमें एक चीज समझनी होगी कि नेता का मतलब और महत्व क्या है। नेता जो भी करता है, जैसे वह सोचता है, जैसे वह महसूस करता है, जिस तरह वह काम करता है, वह लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करता है।

मुझे लगता है कि मैं भी यही कहता हूं कि लालच अच्छा है, क्योंकि आध्यात्मिकता का मतलब ही परम-लालच है, जहां आप ‘थोड़ा और’ से नहीं मानते, आप ‘पूरा’ से कम पर नहीं मानते।
जब आपके पास इतनी महत्वपूर्ण और विशेषाधिकार वाली स्थिति हो तो यह बेहद जरूरी है कि आप अपने ऊपर काम करें। अगर आपका काम बेहद महत्वपूर्ण है तो आप कौन हैं, इस पर काम करना बेहद जरूरी है। और खुद के ऊपर काम करना ही आध्यात्मिक प्रक्रिया है। अगर आप खुद को सही ढांचे में नहीं ढालेंगे तो आप जो भी करेंगे वह एक अनुचित प्रक्रिया ही होगी। विशेषकर अगर आपके काम करने का क्षेत्र बढ़ गया है या बढऩे वाला है तो इसके लिए सबसे जरूरी चीज है कि आप अपनी आंतरिक स्थिति को एक खास तरह से तैयार करें। मुझे नहीं पता कि यह विचार कहां से आया है कि कारोबार और आध्यात्मिकता दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया का किसी भी चीज से विरोध नहीं है।

क्या लालच भी अच्छी हो सकती है?

प्रश्न : नहीं, नहीं . . . मैं इसलिए ऐसा कह रहा हूं क्योंकि लोग अक्सर कहते हैं कि बिजनेस में लालच अच्छा है। अंग्रेजी फि ल्म ‘वॉल स्ट्रीट’ में कहा गया है कि लालच अच्छी चीज है। लोग लालच में इतने दूर निकल गए हैं

सद्‌गुरु : मुझे लगता है कि मैं भी यही कहता हूं कि लालच अच्छा है, क्योंकि आध्यात्मिकता का मतलब ही परम-लालच है, जहां आप ‘थोड़ा और’ से नहीं मानते, आप ‘पूरा’ से कम पर नहीं मानते।

इसलिए आध्यात्मिकता यह तय नहीं करती कि इंसान को क्या करना चाहिए और क्या वह नहीं कर सकता। यह केवल यह तय कर सकती है कि आप कैसे हैं।
आप इस सृष्टि का सिर्फ एक टुकड़ा नहीं चाहते, बल्कि आप स्वयं स्रष्टा को चाहते हैं। अब आप ही बताइए कि क्या यह परम-लालच नहीं है? दरअसल, लालच के साथ समस्या यह है कि लोग लालच करने में भी कंजूसी करते हैं। लोग अपनी लालच में अपने या अपने परिवार या फि र अपने आसपास के लोगों के लिए कुछ चाहते हैं। मैं आपको सच्चा लालची तभी कहूंगा, जब आप अपनीे लालच को लेकर संकोची या कंजूस नहीं होंगे। जब आप चाहेंगे कि पूरी दुनिया अच्छे से रहे। यही सच्ची लालच है। मेरा लालच यही है। मैं चाहता हूं कि पूरी दुनिया अच्छे से रहे और मानवता के लिए जो सर्वोच्च संभावना है उसे प्राप्त करे। यह लालच है - बेलगाम लालच। अगर एलियन यानी दूसरे ग्रह पर भी लोग रहते हों, तो मैं चाहूंगा कि वे भी अच्छे से रहें। क्या यह लालच नहीं है? इसलिए लालच अच्छी चीज है। लालच सिर्फ इसलिए बुरी है, क्योंकि यह अभी संकुचित है। अगर यह असीमित लालच है तो यह हरेक के लिए अच्छी है।

मैं का असीम विस्तार हो तो लालच अच्छी है

प्रश्न : मुझे लगता था कि लालच की परिभाषा यह है कि यह सिर्फ ‘मैं’ और ‘मेरा’ तक सीमित है। तो फिर आखिर आध्यात्मिकता क्या है?

सद्‌गुरु : यह बिल्कुल ऐसा ही है . . . अभी भी यह ‘मैं और मेरा’ तक ही है, लेकिन ‘मैं’ का केवल विस्तार हो जाता है... ‘मैं’ बढक़र सार्वभौमिक संभावना में बदल जाता है।

प्रश्न : तो आखिर ‘मैं या मेरा’ क्या है?

सद्‌गुरु : अगर ‘मेरा’ का विस्तार हो जाए और यह पूरा ब्रम्हांड ‘मेरा’ हो जाता है, तो यह भी वही चीज है। बात सिर्फ इतनी है कि आप अपनी लालच का दायरा बढ़ा रहे हैं। अगर आपकी लालच में सभी शामिल हैं और यह समग्रता से भरा है तो लालच अच्छी है।