सद्‌गुरुसद्‌गुरु जब युगांडा के दौरे पर गए थे तो वहां के एक मशहूर युवा पत्रकार एलन कसूजा ने उनसे बातचीत की जिसकी पहली कड़ी आप पिछले अंक में पढ़ चुके हैं। पेश है उस बातचीत की अगली कड़ी:


एलन कसूजा: सद्‌गुरु , मैं रिश्तों पर बात करना चाहता हूं। यूगांडा में रहने वाले भारतीय यूगांडा में रहने वाले अफ्रीकी लोगों के साथ संबध बनाना क्यों नहीं चाहते? यहां तक कि वे हमें अपनी बेटियों के करीब तक नहीं जाने देते।

सद्‌गुरु : ऐसा सिर्फ  यूगांडा वालों के लिए नहीं है, वे भारतीयों को भी अपनी बेटियों के नजदीक नहीं फटकने देते।

एलन कसूजा : कई रूपों में यह मुझे चिंताजनक लगता है, क्योंकि हम एक बहुसांस्कृतिक देश में रहते हैं, जहां की संस्कृति विविधतापूर्ण और महानगरीय है। मगर उनमें सामाजिक एकीकरण वाला तत्व नहीं है।

सद्‌गुरु : सामाजिक एकीकरण का अर्थ सेक्सुअल एकीकरण नहीं है।

एलन कसूजा : हूं।

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सम्बन्ध कई तरह के होते हैं

सद्‌गुरु : सबसे पहले मुझे ‘संबंध’ शब्द के बारे में चर्चा करने दीजिए। संबंध हमेशा शरीर का नहीं होता है।

कई बार लोगों से हमारा बहुत अंतरंग और करीबी रिश्ता होता है, जिसमें शरीर शामिल भी नहीं होता।
दुर्भाग्यवश हर कोई संबंध या रिलेशनशिप शब्द को उस तरह लेता है, जैसा उन्हें अमेरिकन बी ग्रेड फिल्मों में दिखाया जाता है। संबंध या रिश्ते कई तरह के होते हैं। लोगों के साथ हमारा अलग-अलग तरह का संबंध होता है। एक संबंध शरीर का हो सकता है, मगर बाकी संबंधों का शरीर से कोई लेना-देना नहीं होता। कई बार लोगों से हमारा बहुत अंतरंग और करीबी रिश्ता होता है, जिसमें शरीर शामिल भी नहीं होता।

एलन कसूजा : मतलब हम दोस्त हो सकते हैं, मगर मैं आपके यहां शादी नहीं कर सकता?

सद्‌गुरु : आप शादी कर सकते हैं, मगर जांच पर खरे उतरने के बाद। लेकिन अगर आप सिर्फ  दो दिन के लिए संबंध बनाना चाहते हैं, तो इसकी इजाजत नहीं है।

एलन कसूजा : मगर इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि जब आप शादी करते हैं, तो दो परिवार साथ आते हैं, आप थोड़े और जुड़ जाते हैं, दोस्ती थोड़ी और बढ़ती है, थोड़ी और गर्मजोशी आती है, आपसी समझ बेहतर होती है। इससे होने वाला सांस्कृतिक मिश्रण क्या देश के लिए फायदेमंद नहीं होगा?

अपने ही समुदाय में शादी करने का चलन

सद्‌गुरु : हां, मगर भारतीयों को समस्या यह है कि अगर वे यूगांडा की लडक़ी से शादी कर लें तो क्या वह ढोकला बना पाएगी?

एलन कसूजा : वह सीख सकती है।

वे जीवन भर के लिए सोचते हैं, कुछ सालों के लिए नहीं। इसलिए वे कई स्तर पर छंटनी करके शादी करते हैं, क्योंकि वे शादी को जीवनभर की साझेदारी की तरह देखते हैं, थोड़े समय के साथ की तरह नहीं।

सद्‌गुरु : यह इतना आसान नहीं है। दरअसल यह बहुत जटिल मुद्दा है। शायद आप इसे ऐसे देख रहे हैं कि हमलोग भेदभाव की मानसिकता रखते हैं, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता।  मैं आपको बताना चाहूंगा, भारत के ही ज्यादातर गुजराती अपने ही देश के तमिल लोगों से शादी नहीं करेंगे। बंगाली से शादी नहीं करेंगे। वे आंध्र प्रदेश में शादी नहीं करेंगे। अगर दो लोग प्यार में पड़ गए तो शादी हो सकती है, मगर आम तौर पर वे अपने ही समुदाय में शादी करना पसंद करते हैं, क्योंकि वे हजारों सालों से जीवन को उसी रूप में जानते हैं। हुनर और संस्कृति को ऐसे ही संरक्षित करते हैं। हम उस समय की बात कर रहे हैं, जब हुनर और जानकारी बांटने के लिए विश्वविद्यालय नहीं थे। इसलिए अगर कोई लोहार होता था, तो वह सिर्फ  लोहार की बेटी से ही शादी करना चाहता था, सोनार की बेटी से नहीं। क्योंकि सोनार की बेटी अधिक शौकीन-मिजाज हो सकती है, उसका लोहार के घर में गुजारा नहीं होता। इसलिए शादी को टिकाऊ बनाने के लिए ऐसा किया जाता था। क्योंकि उनका सोचना है कि बच्चों के बड़े होने तक पति-पत्नी को साथ रहना चाहिए। वे जीवन भर के लिए सोचते हैं, कुछ सालों के लिए नहीं। इसलिए वे कई स्तर पर छंटनी करके शादी करते हैं, क्योंकि वे शादी को जीवनभर की साझेदारी की तरह देखते हैं, थोड़े समय के साथ की तरह नहीं।

इसे समय पर छोड़ दें

एलन कसूजा : यह उसे कोई अच्छी चीज नहीं बनाती।

सद्‌गुरु : मैं उसे अच्छा या बुरा नहीं कह रहा हूं, मैं बस यह बता रहा हूं कि शादी के लिए वे अपने द्वार क्यों नहीं खोल रहे हैं। गुजराती तमिल से शादी नहीं करेंगे, तमिल लोग किसी गुजराती से कभी शादी नहीं करेंगे।

आज की दुनिया में लोगों के एक होने का समय आ गया है, मगर उसे जबर्दस्ती नहीं किया जाना चाहिए। इसे समय पर छोड़ दीजिए।
हो सकता है कि दो युवा लोग आपस में बात करके, एक दूसरे से मिलकर ऐसा फैसला कर लें, मगर परिवार ऐसा नहीं करेंगे। हालांकि अब स्थितियां थोड़ी बदल रही हैं क्योंकि अपने जैसे लोग खोजना मुश्किल होता जा रहा है, इसलिए कुछ लोग कर भी रहे हैं।

देखिए, अगर मैं अमेरिका में किसी के घर जाता हूं, तो मैं बस घर में मसाले की गंध से बता देता हूं कि आप किस समुदाय के हैं? वे कहते हैं, ‘सद्‌गुरु, आपको कैसे पता चला?’ मैं कहता हूं, ‘मसाले से।’ किसी खास समुदाय में रसोई से आने वाले मसालों की गंध अलग तरह की होती है। पड़ोस में ही रहने वाला दूसरा समुदाय अपने मसाले अलग तरीके से तैयार करता है। ये लोग एक दूसरे के मसाले की गंध नहीं सहन कर सकते। उनकी जीभ इस तरह हो गई है कि उसे सिर्फ  एक खास तरह का स्वाद पसंद आता है। इसका मतलब यह नहीं कि मैं कह रहा हूं कि यह अच्छा है, वह बुरा है। ऐसा नहीं है। यह अच्छी बात है कि इतने अलग-अलग तरह के लोग हैं और उन्होंने कुछ समय से इस विशिष्टता को कायम रखा है। आज की दुनिया में लोगों के एक होने का समय आ गया है, मगर उसे जबर्दस्ती नहीं किया जाना चाहिए। इसे समय पर छोड़ दीजिए।