सद्‌गुरुसद्‌गुरु से प्रश्न पूछा गया कि क्या भूत प्रेत किसी के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं? सद्‌गुरु बता रहे हैं कि किस तरह के भूत प्रेत किसी के शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं और वे कैसे मनुष्य को चुनते हैं

जिज्ञासु - क्या ये कायाहीन प्राणी किसी व्यक्ति को अपने वश में कर सकते हैं? क्या ये अपनी तृष्णा मिटाने के लिए हमारी ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं?

भूत प्रेत किसी तांत्रिक द्वारा कैद किये जा सकते हैं

सद्‌गुरु - हाँ, निश्चित रूप से। ये बहुत आसानीपूर्वक तुम्हारे तंत्र में प्रवेश कर सकते हैं। इस तरह की चीजें संभव हैं, हालाँकि इस संदर्भ में हमने कभी नहीं सोचा। ऐसी चीजें की जाती हैं और प्राणियों का कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है।

अधिकांश तांत्रिकों की शक्ति मृत्यु तक उनके साथ नहीं रहती; उसके पहले ही समाप्त हो जाती है। कहीं न कहीं वे उस प्राणी के ऊपर अपना नियंत्रण खो देते हैं और प्राणी तांत्रिक को छोड़कर भाग जाता हैं।
अगर कोई ऐसा तांत्रिक/मांत्रिक है, जिसने किसी खास आत्मा या भूत को अपने वश में करके रखा है, वह उस आत्मा को किसी व्यक्ति में - जिससे वह कुछ प्राप्त करना चाहता है - डाल सकता है। वह व्यक्ति वही करेगा जो भी उसे करने के लिए कहा जाएगा। उन प्राणियों को फँसाने की अपनी सीमाएँ हैं। तुम इन प्राणियों को हमेशा के लिए फँसा कर नहीं रख सकते, चाहे फंदा कितना भी मजबूत क्यों न हो। वह व्यक्ति जो इन्हें कैद करके रखता है, उसकी मृत्यु के बाद ये कैद से मुक्त हो जाते हैं। अधिकांश तांत्रिकों की शक्ति मृत्यु तक उनके साथ नहीं रहती; उसके पहले ही समाप्त हो जाती है। कहीं न कहीं वे उस प्राणी के ऊपर अपना नियंत्रण खो देते हैं और प्राणी तांत्रिक को छोड़कर भाग जाता हैं। क्या तुमने शेक्सपीयर की एक रचना ’द टेमपेस्ट‘ पढ़ी है? इसमें जिस भूतसाधक/ओझा का वर्णन किया गया है, वह इस तरह की कई चीजें करता है।

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विकसित प्राणियों को कैद नहीं किया जा सकता

जो अधिक स्थूल प्राणी हैं, दुष्ट आत्माएँ, सिर्फ उन्हीं को ये अपने वश में कर सकते हैं। विकसित प्राणियों के ऊपर इनका कोई नियंत्रण नहीं होता।

शरीर का एक अंग खराब हो जाता है, और अब उस भौतिक शरीर में स्वयं का निर्वाह/पोषण करने में जीवन सक्षम नहीं रह जाता, तो वह शरीर को छोड़ जाता/देता है, लेकिन तब भी कार्मिक संरचना कायम रहती है।
ये प्राणी एक ऐसे माहौल के इर्द-गिर्द नहीं मडराएँगे, क्योंकि ये वहाँ की ऊर्जा को तथा वहाँ किस तरह का व्यक्ति मौजूद है, उसको महसूस कर सकते हैं। एक अचेतन या मूढ़ आत्मा आसानीपूर्वक फँस सकता है। जो विकसित प्राणी हैं, उनको इतनी आसानीपूर्वक नहीं फँसाया जा सकता। यहाँ पर भी, मेरे साथ, शुरू-शुरू में वे बहुत सचेत थे। अब कोई व्यक्ति जो अपने प्रारब्ध कर्म को बिना समाप्त किए मरता है, वह एक अनटूटे या ठोस कार्मिक संरचना के साथ जाता है। तुम्हारा प्रारब्ध अभी भी शेष है और तुम मर जाते हो, यह केवल तभी संभव है अगर तुम्हारा शरीर जवाब दे देता/ टूट जाए/जाता है। और ऐसा केवल किसी दुर्घटना, चोट या बीमारी के कराण ही हो सकता है। अब तुम यह सोच रहे होगे कि ’’क्या बीमारी मृत्यु का स्वाभाविक करण नहीं बन सकती है?‘‘ देखो, बीमारी भी शरीर के जवाब देने/को तोड़ने का एक तरीका हो सकती है। अगर तुम अत्यधिक तनाव के कारण दिल का दौरा पड़ने से मरते हो, तो यह ठीक एक हत्या, आत्महत्या या एक दुर्घटना की तरह होता है। शरीर का एक अंग खराब हो जाता है, और अब उस भौतिक शरीर में स्वयं का निर्वाह/पोषण करने में जीवन सक्षम नहीं रह जाता, तो वह शरीर को छोड़ देता है, लेकिन तब भी कार्मिक संरचना कायम रहती है।

प्रारब्ध की वजह से उपस्थिति महसूस होती है

उस प्राणी की सघन उपस्थिति बनी रहती है। जब मैं सघन उपस्थिति कहता हूँ, मेरा मतलब यह है कि उसे अधिक अनुभव किया जाता है, क्योंकि कार्मिक संरचना तब भी बनी रहती है।

हर व्यक्ति भूत बनता है; यह एक अधिक ठोस भूत, थोड़ा अधिक सघन भूत होता है, जो थोड़े अधिक लोगों के द्वारा महसूस किया जाता है।
अगर कोई व्यक्ति अपना प्रारब्ध पूरा कर लेता है - अगर उसका प्रारब्ध समाप्त हो जाता है - तब वह अधिक सूक्ष्म हो जाता है; फिर उसे अधिकांश लोग महसूस नहीं कर पाते हैं। अगर उसका प्रारब्ध शेष है और वह मर जाता है, उसे बहुत अधिक लोग महसूस कर सकते हैं। यही कारण है कि परंपरागत रूप से, इस संस्कृति में यह कहा जाता है कि अगर तुम्हारी हत्या कर दी जाती है, या अगर तुम आत्महत्या कर लेते हो या किसी दुर्धटना में मरते हो, तो तुम भूत बनते हो। हर व्यक्ति भूत बनता है; यह एक अधिक ठोस भूत, थोड़ा अधिक सघन भूत होता है, जो थोड़े अधिक लोगों के द्वारा महसूस किया जाता है। जो प्राणी अधिक सूक्ष्म हैं, उनको सिर्फ वही लोग महसूस कर सकते हैं जिनमें एक खास तरह की निर्मलता/सूक्ष्मता है।

भूत सिर्फ अपनी तृष्णा मिटाना चाहते हैं

वे प्राणी जिनका प्रारब्ध अभी समाप्त/टूटा नहीं हुआ है, उसमें मानवीय प्रवृत्तियाँ बनी रहती हैं। वे भोजन करना, सोना और मैथुन करना चाहते हैं। वे हर चीज करना चाहते हैं, क्योंकि वे अभी भी अपने कर्म को ढो रहे होते हैं।

अगर कार्मिक बाध्यता रह गई है, तो ऐसे प्राणी अपनी तृष्णा मिटाने के लिए तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे, क्योंकि ये स्वयं से अपनी प्रवृत्तियाँ को तृप्त करने में सक्षम नहीं होते।
जो दूसरे प्राणी हैं, उनमें यह नहीं होता। उनकी कार्मिक संरचना समाप्त हो जाती है, इसलिए उनमें ऐसी चीजों का अस्तित्व ही नहीं होता। यही अंतर है। अगर तुम अपने कर्म को जल्दी-जल्दी समाप्त कर लेते हो, तो तुम इन सभी बाध्यताओं से मुक्त हो जाते हो। इन कायाहीन प्राणियों के साथ भी यही वास्तविकता है। अगर कार्मिक बाध्यता रह गई है, तो ऐसे प्राणी अपनी तृष्णा मिटाने के लिए तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे, क्योंकि ये स्वयं से अपनी प्रवृत्तियाँ को तृप्त करने में सक्षम नहीं होते। उदाहरण के लिए, विश्व में हर जगह बलात्कार होता है। बलात्कार से कोई भी व्यक्ति आनंद का अनुभव नहीं करता। बस इतना ही है कि यह एक तरह की बाध्यता होती है। वह इसे करना चाहता है, बस इतना ही। वह उसमें आनंद खोजता है, लेकिन वास्तव में उसमें कोई आनंद नहीं होता। वह बस एक बाध्यता होती है। किसी भी कीमत पर वह उसे करना चाहता है।

कुछ भूतों में लगातार खाने की प्रवृत्ति होती है

कुछ लोग पेटू/भूक्खड़ प्राणियों द्वारा वश में कर लिए जाते हैं, ये प्राणी केवल खाना चाहते हैं। ऐसे प्राणी जब किसी व्यक्ति को काबू में करते हैं तो जितना एक साधारण आदमी खाता है, उससे वह व्यक्ति पाँच से दस गुणा ज्यादा खाने लगता है और उसके बाद भी संतुष्ट नहीं होता। यह प्राणी इस तरह से खाता है, तब भी वह भोजन को अनुभव नहीं कर पाता।

अगर कार्मिक बाध्यता रह गई है, तो ऐसे प्राणी अपनी तृष्णा मिटाने के लिए तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे, क्योंकि ये स्वयं से अपनी प्रवृत्तियाँ को तृप्त करने में सक्षम नहीं होते।
वह भोजन करने का अनुभव भी नहीं कर सकता। यह उसके लिए बस एक तरह की बाध्यता होती है। यद्यपि वह उस व्यक्ति को खाने के लिए विवश करता है, वह स्वयं उसका अनुभव नहीं कर पाता, क्योंकि खाने की प्रक्रिया केवल भौतिक शरीर के लिए है। यह एक बाध्यता है। इसलिए वश में किए गए व्यक्ति की व्यग्रता धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और वह अधिक से अधिक भोजन की माँग करता है। इसके बावजूद वह भोजन का अनुभव नहीं कर सकता है, ना ही वह उस प्राणी को अपने शरीर से निकाल सकता है। यही कारण है कि भारत में सिखाया जाता है कि जब तुम भोजन करते हो, तो तुम्हें भुक्खड़ की तरह नहीं खाना चाहिए; तुम्हें आराम से धीरे-धीरे खाना चाहिए। खाना अपने सामने रखकर पहले उसे झुककर प्रणाम करना चाहिए, एक मिनट तक शांतिपूर्वक बैठने के बाद फिर खाना चाहिए। अगर तुम बहुत जागरूक हो, तुम अपनी थाली के चारों तरफ थोड़ा-सा पानी छिड़क दो, ताकि इस तरह के प्राणी तुम्हारी तरफ आकर्षित न हों। अगर तुम भुक्खड़ की तरह खाते हो, इस तरह के प्राणी तुम्हारे अंदर प्रवेश करना चाहेंगे, क्योंकि उनके अंदर भुक्खड़पन की (ओर) प्रवृत्ति होती है। अब अध्यात्म में, जब लोग साधना करते हैं, उनकी ऊर्जा अधिक स्थिर/सकारात्मक और सूक्ष्मतर होती जाती है। वे विभिन्न प्रकार के प्राणियों को आकर्षित कर सकते हैं। जब ऊर्जा सूक्ष्म हो जाती है, तो कायाहीन प्राणियों की आने की संभावना होती है।