सद्‌गुरुकुछ लोगों के अनुसार क्रोध एक शक्ति की तरह है, और बिना क्रोध के कई सारे काम नहीं हो सकते। क्या ये सोच सही है? जानते हैं क्रोध के क्या कारण होते हैं, और साथ ही जानते हैं अगर क्रोध जरुरी हो तो क्या करें

क्रोध किसका गुण है?

कोई पेड़ या पौधा, भौंरा या कीड़ा... दूसरों को मारने की साजिश में नहीं लगा रहता। वे अपने अंदर तनाव नहीं पालते। इसलिए वे अपनी प्रकृति के अनुसार पूर्ण रूप से काम करते हैं।

लेकिन सिर्फ मनुष्य अपने सिद्धांतों को दूसरों पर थोपने का प्रयास करता है। जो लोग उससे सहमत नहीं होते, उनके प्रति मनुष्य का संघर्ष शुरू हो जाता है।

जब दूसरे लोग ऐसे काम करते हैं जो आपकी पसंद के नहीं हैं, तब आप उन्हें सहन नहीं कर पाते।

जब आप गुस्से में होते हैं आपकी अक्ल उल्टा-सीधा काम करने लगती है, है न? और उसका नतीजा हमेशा बुरा ही तो निकलता है।

अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए आप उन पर क्रोध करेंगे... उन्हें धमकी देंगे... कभी-कभी कोई सजा भी देंगे। यह आपके और अगले व्यक्ति के बीच में सुलगती बाती बन जाएगी।

आपका गुस्सा किसी चट्टान पर हो सकता है, भगवान पर हो सकता है, दोस्त पर हो सकता है, गुरु पर भी हो सकता है।

आप यही तो सोचते हैं कि दूसरों के कारण से ही आपको गुस्सा आता है? लेकिन सोचिए, क्रोध किसका गुण है? वह कहाँ पैदा होता है? बाहर?

जी नहीं, वह आपके अंदर जड़ जमाए है। उसे स्वयं आप अपने अंदर ले आए हैं।

क्रोध का मूल कारण क्या है?

आपने सोचा था कि क्रोध भी एक शक्ति है। उसके द्वारा कई चीजों पर अधिकार कर सकते हैं। यही सोचकर आपने क्रोध को एक हथियार बना लिया था।

आप यही तो सोचते हैं कि दूसरों के कारण से ही आपको गुस्सा आता है? लेकिन सोचिए, क्रोध किसका गुण है? वह कहाँ पैदा होता है? बाहर?जी नहीं, वह आपके अंदर जड़ जमाए है।

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लेकिन इस हथियार का दूसरों पर प्रयोग करते समय, वह उन पर जो असर डालता है, उससे ज्यादा असर आप पर ही तो डालता है। जब आप गुस्से में होते हैं आपकी अक्ल उल्टा-सीधा काम करने लगती है, है न? और उसका नतीजा हमेशा बुरा ही तो निकलता है।

सामने गुलाब का फूल है, उसे देखते ही संभव है किसी को मतली आए। इसका दोष गुलाब का है या उस व्यक्ति का?

‘आपके क्रोध का मूल कारण अगला व्यक्ति नहीं, बल्कि आप हैं’-यदि आप इस तथ्य का अनुभव कर लें तो आपकी समझ में आ जाएगा कि क्रोध करना कितनी बड़ी मूर्खता है।

क्या क्रोध से लोग सुधर सकते हैं?

मेरे इस कथन को सुनकर कोई सवाल कर सकता है, ‘यदि क्रोध न करें तो गलती करनेवाले कैसे सुधरेंगे?’

शंकरन पिल्लै एक बार हाट गए थे। वहाँ एक खास गधा उनको बड़ा प्यारा लगा।

गधे वाले ने कहा, ‘‘जनाब, मेहरबानी करके मार-पीट कर इससे काम न लें। प्यार से समझाएँगे तो यह समझ लेता है।’’

वाह... स्नेह से वश में आने वाला गधा है?

मेरे इस कथन को सुनकर कोई सवाल कर सकता है, ‘यदि क्रोध न करें तो गलती करनेवाले कैसे सुधरेंगे?’

शंकरन पिल्लै के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मुँहमाँगा दाम देकर उसे खरीद लाए।

अगले दिन शंकरन पिल्लै गधे के पास गए। उसे सहलाते हुए बोले, ‘‘चलो प्यारे... काम करने चलें?’’ इस तरह के प्रिय वचन बोलने लगे।

गधा टस से मस नहीं हुआ।

शंकरन पिल्लै ने और प्यार बरसाया, लल्लो-चप्पो की बातें कीं, गिड़गिड़ाए, फिर भी गधा अटल रहा।

हारकर उस व्यापारी को बुला लाए। उसने एक छड़ी उठाकर तपाक से गधे को मारा। फौरन वह उठकर काम करने के लिए तैयार हो गया।

शंकरन पिल्लै को गुस्सा आ गया।

‘‘जिद्दी गधे पर भी मैंने इतने जोर से कोड़ा नहीं मारा है। यही नहीं, ‘यह गधा प्रेम से समझाने पर बात मान लेगा’ ऐसा कहकर तुमने मुझे धोखा दिया है,’’ पिल्लै ने उससे पूछा।

‘‘जनाब, अभी भी मैं यही अर्ज कर रहा हूँ। प्यार की बातें बोलने से काम बन जाएगा। लेकिन उससे पहले गधे का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए एकाध चाबुक रसीद करने की जरूरत हो सकती है,’’ गधे के व्यापारी ने कहा।

थोड़ा रास्ता दिखाना जरुरी हो सकता है

दूसरों को रास्ते पर लाने के लिए यों एकाध बार जोर से ठोकना पड़ सकता है। लेकिन उसके लिए क्रोध आवश्यक नहीं है न?

हरेक जगह पर अलग-अलग ढंग से काम करना पड़ सकता है। लेकिन आपकी मूल प्रकृति जो स्नेह है, उससे चूके बिना स्नेह को बनाए रखिए।

आपके अधीन काम करने वाले कर्मचारी यदि कार्यालय के नियमों के प्रतिकूल चलें तो ऐसे मौकों पर आप चुप नहीं रह सकते, उन पर कार्रवाई करनी पड़ेगी। शुरू से ही यदि आप उन पर केवल प्रेम दिखाते आए तो आपके ऊपर उन्हें पूरा भरोसा आ गया होता।

वे समझ जाते कि अनिवार्य कारणों से ही आपको ऐसा एक निर्णय लेना पड़ा है। आपके प्रति उनके आदर भाव में कमी नहीं होगी, मित्रता बरकरार रहती।

लेकिन अगर आप अपना अधिकार साबित करने के वक्रतापूर्ण संतोष के लिए कार्रवाई करेंगे तो उनके मन में आपके प्रति विरोध का भाव पैदा होगा। फिर वे उस मौके के इंतजार में बैठे रहेंगे जब उनका हाथ ऊँचा होगा।

हुकूमत नहीं स्नेह चाहते हैं लोग

दुनिया में जहाँ-जहाँ अधिकार के बल पर शासन चलाने की नीयत हावी रही थी, उन जगहों में बगावतें और क्रांतियाँ इसी तरह फूट पड़ी थीं।

आप ही बताइए, क्या आप उन लोगों को पसंद करते हैं जो आप पर हुकूमत चलाना चाहते हैं? या उन्हें जो मित्र की भाँति कंधे पर हाथ डालकर आपको अपने आगोश में लेते हैं?

हरेक जगह पर अलग-अलग ढंग से काम करना पड़ सकता है। लेकिन आपकी मूल प्रकृति जो स्नेह है, उससे चूके बिना स्नेह को बनाए रखिए।

तभी किसी को दर्द पहुँचाए बिना आप अपने लक्ष्य को पा सकते हैं।