सद्‌गुरुइच्छा और स्वार्थ को आमतौर पर उलझन में डालने वाली भावनाओं की तरह समझा जाता है। आइये जानते हैं कि कैसे इच्छा और स्वार्थ आनंद प्राप्ति में मदद कर सकतीं हैं

अगर आप में इच्छा नहीं है तो आप अपनी नजर को इस लेख की अगली पंक्ति पर नहीं ले जा सकते। यही क्यों... इच्छा के अभाव में आप खड़े नहीं हो सकते, न चल सकते, न ही खा सकते हैं।

आप मेरी इस बात को काटने की गर्ज से कुतर्क कर सकते हैं, ‘किसने कहा कि मैं इच्छा की वजह से खाता हूँ, मैं तो भूख के कारण खाता हूँ।’

बिना इच्छा के भोजन भी नहीं कर सकते

मान लीजिए आप रिश्तेदार के यहाँ गए हैं, भोजन का वक्त है, भूख भी खूब लगी है। केले का पत्ता बिछाकर आपके सामने स्वादिष्ट भोजन परोसा गया है। भात का पहला निवाला मुँह के पास ले जा रहे हैं। अचानक वे लोग अपशब्दों का प्रयोग करते हुए आपका अपमान कर रहे हैं। क्या ऐसे वक्त में अगला कौर गले के अंदर उतरेगा?

प्रसन्न रहना ही आपका मूलभूत स्वभाव है। आनंद ही आपका स्वरूप है।

भूख अभी मिटी नहीं, लेकिन भोजन करना संभव नहीं हो रहा है। क्यों?

आपकी खाने की इच्छा खत्म हो गई। इच्छा से प्रेरित हुए बिना, आवश्यकता-पूर्ति के लिए आप जो भी काम करें, उसमें आपको पूरा संतोष नहीं मिलेगा।

थोड़े से स्वार्थ से आनंद नहीं मिलेगा

प्रसन्न रहना ही आपका मूलभूत स्वभाव है। आनंद ही आपका स्वरूप है। आपने जिन परेशानियों को स्वयं बुलावा दिया है, उन्हीं की वजह से आपका वह आनंद गायब हो जाता है।

प्रसन्नतापूर्वक रहने के लिए पहले आपको खुदगर्ज होना चाहिए, हाँ स्वार्थी होना चाहिए। खुदगर्जी में कंजूसी बिल्कुल न करें। पूर्ण रूप से स्वार्थी बनें।

एक बार शंकरन पिल्लै के बेटे को तेज बुखार चढ़ गया। डॉक्टर बुलाए गए। ‘‘यह बुखार छूत से फैलने वाले विषाणुओं से पैदा हुआ है।

आपने जिन परेशानियों को स्वयं बुलावा दिया है, उन्हीं की वजह से आपका वह आनंद गायब हो जाता है।
पता नहीं, आपका बेटा अभी तक न जाने कितने लोगों तक यह बीमारी फैला चुका है। जब तक चंगा नहीं होता, इसे स्कूल नहीं भेजना’’, डॉक्टर ने चेतावनी दी। कुछ दिनों तक इलाज जारी रहा।

किसी तरह बुखार थम गया, बेटा स्वस्थ हो गया।

डॉक्टर ने अपना बिल पेश किया।

बिल की रकम देख शंकरन पिल्लै गुस्से से लाल-पीले हो गए।

डॉक्टर ने सफाई दी, ‘‘देखिए, मैंने नौ बार आप के घर आकर सुई लगाई है, इंजेक्शन की दवा भी काफी कीमती है।’’

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

शंकरन पिल्लै उबल पड़े।

‘‘क्यों डॉक्टर साहब, आप हमारे साथ खिलवाड़ कर रहे हैं? मेरे बेटे ने शहर भर में बीमारी फैलाई तभी तो आपका बिजनेस भले-चंगे चल रहा है। ऐसे में आप मुझसे कैसे पैसे माँगते हैं? न्याय से आप का फर्ज बनता है कि आप मुझे इनाम दें।’’

इसी तरह लोग हर बात को तोड़-मरोडक़र उसमें से अपना फायदा निकालना चाहते हैं; दुनियाभर के ऐश्वर्य को समेटकर अपनी जेब में डाल लेने के लालच में भटकते हैं।

आनंद में रहने से पूर्ण स्वार्थी होना होगा

मैं उस तरह के स्वार्थ की बात नहीं करता। मैं जिस स्वार्थ का जिक्र कर रहा हूँ वह और भी बड़ा है।

आप ऐसे स्वार्थ को त्याग दीजिए जैसे यह कमीज मेरी है, यह घर मेरा है। यह सब क्षुद्र स्वार्थ हैं, छोटे-छोटे स्वार्थ हैं। इनको छोडक़र अपने स्वार्थ का विस्तार कीजिए उसे विराट बना लीजिए, जैसे यह देश मेरा है, यह पूरा संसार मेरा है यों सब को अपना बना लीजिए।

अगर आप शांति और आनंद की अनुभूति में रम सकें तो खुद आप समाज के लिए बेहतरीन तोहफा हैं।

आप दर्जी हों या ऑटो वाले, चाहे डॉक्टर हों या सब्जी बेचने वाले या फिर कंप्यूटर इंजीनियर, यदि आप अपने मन से स्वीकार कर लेंगे कि यह पूरी दुनिया आपकी अपनी है, तो इसमें रहने वाले सभी लोग आपके स्वजन बन जाएँगे, बंधु-मित्र हो जाएँगे। उसके बाद आप उनके लिए जो भी करेंगे, कैसे करेंगे? वैसे ही न करेंगे जैसे खुद अपने लिए कर रहे होते हैं? उसी लगन के साथ उसी समर्पण-भाव के साथ करेंगे न? इस तरह प्रेम से करते हुए उस काम का स्तर कैसा रहेगा? बढिय़ा रहेगा न? उसके बाद यद्यपि आप अपने भाग के फल को स्वयं मना करेंगे तो भी वह अपने आप आकर आपके पाँवों पर पड़ा रहेगा, है कि नहीं?

उत्साह और लगन से करें काम

हमेशा सौ फीसदी लगन और उत्साह के साथ काम कीजिए। यों सोचे बिना कि उसके फल में ही खुशी रखी है, जो काम कर रहे होते हैं उसे प्रेम से संपन्न करना सीखिए। काम में पहली बार सफलता नहीं मिली, तो यों सोचकर फिर से उसमें लग जाइए कि अपने प्रिय काम को दुबारा करने का सुअवसर आपको मिला है।

आप ऐसे स्वार्थ को त्याग दीजिए जैसे यह कमीज मेरी है, यह घर मेरा है। यह सब क्षुद्र स्वार्थ हैं, छोटे-छोटे स्वार्थ हैं।

फिर से पूरी लगन के साथ काम कीजिए। प्रत्येक बार आपको खुशी ही मिलेगी। दर्द महसूस नहीं होगा। पीड़ा नहीं रहेगी।

सोचकर देखिए... आपकी क्षमता पूर्ण रूप से किस समय प्रकट होती है? क्या उस वक्त जब आप खुश रहते हैं या उस समय जब आप तनाव में, उदासी में रहते हैं? प्रेम से आनंद के साथ कोई काम करते वक्त कोई कारण नहीं कि आपको उसमें कामयाबी न मिले।

केवल आप खुश रहें यही पर्याप्त नहीं है। जहाँ आप रहते हैं, आपकी वजह से दूसरे लोग भी खुशी महसूस करें यह भी जरूरी है। आपके चारों ओर के लोग आप को खुशी से अपनाएँ यह भी जरूरी है।

सभी आपको अपनाएँ ये जरुरी है

जंगल में कोई शेर शान से कदम बढ़ाए चल रहा था। उधर से गुजर रहे खरगोश को उसने झट से पकड़ लिया।

शेर ने पूछा, ‘‘अबे, इस जंगल का राजा कौन है?’’ खरगोश ने गिड़गिड़ाते हुए जवाब दिया, ‘‘इसमें क्या शक है? आप ही हैं!’’

केवल आप खुश रहें यही पर्याप्त नहीं है। जहाँ आप रहते हैं, आपकी वजह से दूसरे लोग भी खुशी महसूस करें यह भी जरूरी है।

शेर ने खरगोश को छोडक़र लपक के एक लोमड़ी को पकड़ लिया। उससे भी यही सवाल पूछा।

लोमड़ी ने काँपते हुए उत्तर दिया, ‘‘हुजूर, आपको इसमें शक क्यों हो रहा है। आपके सिवा कौन इस जंगल का राजा हो सकता है?’’

उसके बाद रास्ते में जो भी जानवर सामने आए, वे सभी बड़ी विनय के साथ घुटने टेककर भयभीत स्वर में चिल्लाए, ‘‘आप ही राजा हैं, राजा तो आप ही हैं।’’

शेर गर्व से झूम उठा। वह और कुछ दूर आगे बढ़ा।

वहाँ पर कोई हाथी शेर की परवाह किये बिना स्वेच्छापूर्वक पेड़ से पत्ते तोड़ रहा था।

शेर उसके सामने जा खड़ा हुआ और गरजने लगा, ‘‘अरे मूर्ख, बोल कौन है इस जंगल का राजा?’’

हमेशा सौ फीसदी लगन और उत्साह के साथ काम कीजिए। यों सोचे बिना कि उसके फल में ही खुशी रखी है, जो काम कर रहे होते हैं उसे प्रेम से संपन्न करना सीखिए।

हाथी मुड़ा, उसने अपनी सूँड़ में शेर को लपेटकर ऊपर उठाया और जोर से जमीन पर पटक दिया।

शेर की रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। दर्द से कराहते हुए उसने बड़ी दीनतापूर्वक पूछा, ‘‘क्यों भई, मैंने ऐसा क्या पूछ लिया? मुँहजबानी जवाब नहीं दे सकते थे?’’

‘‘आगे इस मामले में तुम्हारे मन में कोई असमंजस नहीं रहना चाहिए, इसीलिए’’ हाथी ने कहा।

चारों ओर के लोग आपको खुशी से न अपनाएँ तो आपको भी वही अनुभव मिलेगा जो शेर को मिला था।

इस तरह दूसरा कोई आपको सबक सिखाए, उससे पहले अपने जीवन को खुद मधुर बना लेना सीखिए।

जो भी काम करें, पूरे प्रेम से करें।

समाज-सेवा करने का बढिय़ा तरीका कौन-सा है?

‘‘कोई औजार सही हालत में रहे तभी उसका पूर्ण रूप से प्रयोग कर सकते हैं। आपकी भी यही स्थिति है। अपना परिवेश कैसा भी हो, उससे प्रभावित हुए बिना यदि आप अपने भीतर शांति और आनंद से रह सकें तभी आप दूसरों की सेवा कर सकते हैं।

समाज की देखभाल करने से पहले आप खुद अपना ख्याल कीजिए।

अगर आप शांति और आनंद की अनुभूति में रम सकें तो खुद आप समाज के लिए बेहतरीन तोहफा हैं। उसके बाद आप अपनी शक्ति और क्षमता के मुताबिक अपने चारों ओर रहने वाले लोगों के लिए जो भी करना चाहते हैं, उस काम में प्रेम से लग जाइए।’’