साधकों या विद्यार्थियों को अकसर ये समस्या रहती है कि वो लंबे समय तक स्थिर नहीं बैठ पाते। क्या है इस समस्या का कारण और समाधान ?

प्रश्‍न:

सद्‌गुरु, मैं चाहता हूं कि मैं लंबे समय तक बैठ सकूं, मगर मैं अपने शरीर को स्थिर नहीं रख पाता हूं। मैं अपनी इस समस्या से कैसे निपटूं?

सद्‌गुरु:

स्थिर बैठने के लिए आपके शरीर को तैयार किए जाने की जरूरत होती है, हठ योग इसमें मदद करता है। मगर शरीर के बिल्कुल सही हालत में होने पर भी हो सकता है कि आप स्थिर न बैठ पाएं। इसके लिए आपको कुछ दूसरे पहलुओं को ठीक करना होगा।

योग के आठ अंग हैं –

यम और नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान और समाधि। ये सोपान नहीं योग के अंग हैं। अगर आपके पास आठ हाथ-पैर होते तो किसे पहले चलाना है, यह आपके ऊपर होता जो आपकी जरूरत पर निर्भर करता।

यौगिक संस्कृति के अनुसार, योगियों को दिन में दो बार शौचालय जाना चाहिए क्योंकि मल को शरीर में नहीं रहना चाहिए। जिसे शरीर से बाहर जाना है, उसे जल्द से जल्द बाहर जाना चाहिए।
क्या इसका भी कोई नियम है कि किस हाथ या पैर को पहले चलाना है? आप भारत से हैं तो यह न सोचें कि आपको हमेशा दाहिना पैर ही पहले बढ़ाना है। जीवन के कुछ पहलू हैं, जहां दाहिने पैर को पहले बढ़ाना बेहतर होता है, लेकिन कुछ दूसरे पहलू ऐसे भी हैं जहां बायां पैर पहले बढ़ाना अच्छा होता है। किस पैर को पहले बढ़ाना है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या काम कर रहे हैं। इसी तरह, योग के किस अंग का इस्तेमाल पहले किया जाए, यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस स्थिति में हैं।

सौ साल पहले तक सिर्फ शारीरिक समस्याएँ होतीं थीं

मानवता के इतिहास में लंबे समय तक, शरीर सबसे मजबूत पहलू और सबसे बड़ी अड़चन रहा है। इसलिए लोगों को पहले हठ योग कराया जाता था। कुछ सौ साल पहले तक केवल पांच से दस फीसदी लोगों को ही मानसिक समस्याएं होती थीं। बाकियों को केवल शारीरिक समस्याएं थीं। आज भी, गांवों में ज्यादातर लोगों को मानसिक नहीं, सिर्फ शारीरिक समस्याएं होती हैं। लेकिन पिछली कुछ पीढ़ियों में आम तौर पर लोगों को शारीरिक समस्याओं से ज्यादा मानसिक समस्याएं होने लगी हैं क्योंकि वे अब अपने शरीर से ज्यादा मन का इस्तेमाल करते हैं। यह मानव जाति में एक बड़ा परिवर्तन है। सौ-दो सौ साल पहले तक, इंसान अपने मन से ज्यादा अपने शरीर का इस्तेमाल करता था।

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चूंकि मैं एक इस काल का आध्यात्मिक गुरु हूं, मैं अपने समय के लोगों को देखता हूं। चूंकि उनकी समस्याएं शारीरिक से ज्यादा मानसिक होती हैं, इसलिए हम आम तौर पर क्रिया और ध्यान से शुरुआत करते हैं, जो मुख्य रूप से ऊर्जा और मन के स्तर पर काम करते हैं। इसके बाद हम हठ योग की ओर जाते हैं।

शरीर और मन दोनों को संभालना होगा

अगर आप स्थिर बैठना चाहते हैं, तो सिर्फ अपने शरीर को संभालना काफी नहीं है, आपको अपने मन पर भी मेहनत करनी होगी। खासकर इस पीढ़ी के लिए, पूरे सिस्टम – मन, भावना, शरीर और ऊर्जा को दुरुस्त करने पर ध्यान देना जरूरी है। यह एक गलत धारणा है कि आज के लोग पुराने लोगों से अधिक प्रतिभाशाली हैं। बात सिर्फ इतनी है कि अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण लोगों के मन आज काबू से बाहर हैं।

हमारी शिक्षा व्यवस्था जैसी है, उससे निश्चित रूप से मन अशांत होगा। एक बच्चे को कविता से लेकर गणित तक पढ़ना पड़ता है – दोनों आपस में जुड़े हुए हैं लेकिन उनके जुड़ाव के बारे में उसे समझाने वाला कोई नहीं है। उसे गणित के बाद संगीत की ओर जाना पड़ता है – दोनों जुड़े हुए हैं, मगर इस संबंध को कोई नहीं समझाता। इसी तरह एक तरह विषय से दूसरे विषय की ओर बच्चा भागता रहता है। दोनों विषय बेशक आपस में जुड़े होते हैं, लेकिन उनके बीच के संबंध को बताने वाला कोई नहीं है। क्योंकि उन्हें पढ़ाने वाले विभाग अलग-अलग हैं जिनके बीच ताल-मेल नहीं है।

यम और नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान और समाधि। ये सोपान नहीं योग के अंग हैं। अगर आपके पास आठ हाथ-पैर होते तो किसे पहले चलाना है, यह आपके ऊपर होता जो आपकी जरूरत पर निर्भर करता।
सब कुछ ऐसे टुकड़ों में सिखाया जाता है, जिनका आपस में कुछ सम्बन्ध नहीं होता, क्योंकि कोई भी जानने की उत्सुकता से नहीं पढ़ रहा है। हर कोई परीक्षा में पास होने और नौकरी पाने के लिए पढ़ रहा है। यह शिक्षित होने का बहुत विनाशकारी तरीका और जीने का दयनीय तरीका है। लेकिन चाहे यह कितना भी बेतुका हो, दुनिया के ज्यादातर लोगों ने यही तरीका अपनाया है।

हाल में, मैं एक बहुत हाई प्रोफाइल कार्यक्रम में गया हुआ था जहां एक कोने में शराब परोसी जा रही थी। मेजबान ने कहा, ‘सद्‌गुरु यहां मौजूद हैं, यहां शराब न परोसी जाए।’ मगर कुछ लोग अपने आप को रोक नहीं पा रहे थे। वहां एक मंत्री भी थे जो बोले, ‘मुझे यकीन है कि सद्‌गुरु भी इसी दुनिया के आदमी हैं – वह बुरा नहीं मानेंगे।’ मैंने कहा, ‘पूरी दुनिया ने कब शराब पी थी?’ आज ऐसा माना जाता है कि अगर आप दुनियादार आदमी हैं, तो आपको शराब जरूर पीना चाहिए, वरना आप इस दुनिया के नहीं हैं।

मलाशय स्वस्थ होना चाहिए

हम मानव मन को पूरी तरह गलत तरीके से विकसित कर रहे हैं। फिर हम लोगों से शांत और आनंदित रहने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। यह कभी नहीं होगा। जब तक कि आप सही चीजें न करें, आपके साथ सही नहीं होगा। अगर सिर्फ यहां बैठने में आपका शरीर आराम नहीं महसूस कर रहा है, तो बात साफ है कि उसमें कोई खराबी है, चाहे मेडिकल की भाषा में आप स्वस्थ हों। मुझे यह जानकर हैरानी हुई थी कि अमेरिका की मेडिकल की किताबों के मुताबिक सप्ताह में दो बार शौचालय जाना सामान्य बात है। यौगिक संस्कृति के अनुसार, योगियों को दिन में दो बार शौचालय जाना चाहिए क्योंकि मल को शरीर में नहीं रहना चाहिए। जिसे शरीर से बाहर जाना है, उसे जल्द से जल्द बाहर जाना चाहिए। सुबह उठने के बाद सबसे पहली चीज यही होनी चाहिए। सप्ताह में दो बार का मतलब है कि आप औसतन तीन दिन तक अपने शरीर में उसे रखते हैं। फिर आप अपने मन के दुरुस्त होने की उम्मीद करते हैं? वह ठीक नहीं होगा क्योंकि आपका मलाशय और आपका मन सीधे-सीधे जुड़़े हुए हैं।

मलाशय मूलाधार चक्र में होता है, जो आपकी ऊर्जा प्रणाली का आधार है। मूलाधार में जो भी होता है, वह किसी न किसी रूप में पूरे सिस्टम में होता है और खासकर आपके मन में। आज के वैज्ञानिक ऐसे निष्कर्ष इसलिए निकाल रहे हैं क्योंकि वे इंसान का अध्ययन माइक्रोस्कोप से टुकड़ों में करते हैं। इसलिए हर टुकड़े के बारे में वे एक अलग निष्कर्ष निकालते हैं। संपूर्ण शरीर को बाहर से नहीं समझा जा सकता – उसे सिर्फ अंदर से समझा जा सकता है।

अपनी साधना करें, अपने भोजन में अधिक प्राकृतिक चीजें शामिल करें। फिर आप देखेंगे कि कुछ ही महीनों में आप स्थिर बैठने लगेंगे।

संपादक की टिप्पणी:

*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:

21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया

नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार