Sadhguruघर को सर्वश्रेष्ठ जगह होनी चाहिए। ज्ञान प्राप्ति को ‘घरवापसी’ भी कहा गया है। इसलिए आपका घर आपके लिए कोई बाधा नहीं होना चाहिए। लेकिन कैसे?

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प्रश्न: सद्‌गुरु, जब मैंने 2008 में ईशा योग की शुरुआत की थी तो मेरे भीतर इसे लेकर एक तीव्रता और एक जबरदस्त ललक थी। उस समय इसकी प्रबलता इतनी तीव्र थी कि मैं इसे संभाल ही नहीं पाता था, लेकिन फि र धीरे-धीरे यह खत्म हो गई। अब कभी-कभी मेरे भीतर इसके प्रति चाहत जागती है, लेकिन अब वह ऐसी नहीं होती, जैसी शुरू में थी। हालाँकि आज भी जब मैं बीच-बीच में आश्रम आता हूं और यहां सत्संग में शामिल होता हूं तो मुझे पहली वाली तीव्रता का अहसास होता है, लेकिन घर लौटते ही यह वैसी नहीं रह जाती।

सदगुरु: आखिर घरवाले आपके साथ क्या कर देते हैं? घर तो सर्वोत्तम जगह होनी चाहिए। अगर हम किसी जगह को घर कहते हैं तो उसके पीछे भाव एक ऐसी जगह से होता है, जहां आप अपने मूल रूप में रह सकें, जहां आप निश्चिंत हो कर सहज रूप से रह सकें, जहां आप वो सब कर सकें, जो आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रिय हो। मैं अक्सर लोगों को शिकायत करते सुनता हूं कि ‘मेरे जीवन में जो मेरे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, मैं जब घर आता हूं तो सब खत्म हो जाता है।’ मुझे लगता है कि हमें अपना घर थोड़े अलग तरीके से तैयार करने के बारे में सोचना चाहिए। हमारा घर कैसा हो - इस बारे में हमारी सोच हमारे पड़ोसियों के घर को देखकर तय होती है। यही वजह है कि घर हमारे लिए एक चुनौती बन चुका है। मुझे समझ में नहीं आता कि घर किसी के लिए बाधा क्यों होगा? वास्तव में घर तो सर्वश्रेष्ठ जगह होनी चाहिए। ज्ञान प्राप्ति को ‘घरवापसी’ भी कहा गया है। इसलिए आपका घर आपके लिए कोई बाधा नहीं होना चाहिए। अगर आप कुछ प्रक्रियाएं जारी रखेंगे तो यह भी हो सकता है कि आपका घर एक आश्रम बन जाए। हमारा इरादा यही होना चाहिए।

शुरू से ही, जबसे हमने भारत में ईशा योग केंद्र की स्थापना की, तभी से लोग लगातार कहते आ रहे थे, ‘हमें एक अपना समुदाय बनाना चाहिए।’ मैं हमेशा से यह कहता रहा हूं कि हम लोग बाकी दुनिया से अलग कोई समुदाय नहीं बनाएंगे। हमारा इरादा कोई अलग से अपनी दुनिया बनाने का नहीं है। हमारा इरादा इस दुनिया को जैसे का तैसा अपनाने का है। हम ऐसा नहीं सोचते कि यह दुनिया अच्छी नहीं है, इसलिए हमें अलग से कोई दुनिया बसानी चाहिए। यह अपने आप में एक बेवकूफी भरा विचार होगा। यह कोई ऐसी भी चीज नहीं है जो आध्यात्मिकता के लिए किसी भी रूप में सहयोगी हो। इसलिए आपका घर कोई बुरी जगह नहीं है। आपके घर के हालात कैसे भी हों, लेकिन यह कोई खराब जगह नहीं है। आपके पास विकल्प है कि आप तय करें कि आपको किस तरह की जगह में रहना है। लेकिन यह बिल्कुल न सोचें कि एक जगह दूसरी से बेहतर है। ऐसा नहीं है कि ‘जब मैं सत्संग के लिए आता हूं तो जोश से भर उठता हूं। जब घर जाता हूं तो यह खत्म हो जाता है।’ ऐसा नहीं होने देना चाहिए।

जब हम कहते हैं कि ‘आप घर पर हैं’ तो ऐसा कहने का मतलब क्या है? इसका मतलब है कि आप आरामदायक स्थिति में हैं, आप अपने स्वभाविक रूप हैं। घर पर आपको किसी और रूप में रहने की जरुरत नहीं होती। तो सच के साथ रहने का यही तरीका है।

ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि आपका घर हमेशा सत्य के साथ जुड़ा रहे? इस जगह पर तो ऐसा होना सबसे आसान है। लेकिन अब आपका घर चिंता का एक विषय हो गया है, क्योंकि घर की कुछ महत्वाकांक्षाएं हो गई हैं, घर के कुछ अपने प्रोजेक्ट्स होने लगे हैं, कुछ लक्ष्य पूरे करने होते हैं। लेकिन घर वास्तव में ऐसा होना नहीं चाहिए। आपके ऑफि स में लक्ष्य होने चाहिए, सडक़ पर हमारे लक्ष्य हो सकते हैं, हमें रेस दौडऩी पड़ सकती है। लेकिन एक बार जब घर आप जाएं तो फि र आपके सामने ऐसा कोई लक्ष्य नहीं होना चाहिए। अगर घर में आपका निहित स्वार्थ होगा, तब आप घर की सोच को ही नष्ट कर देंगे। तब ‘घर क्यों चाहिए’ का मकसद ही कहीं खो जाएगा, क्योंकि वहां भी अगर आप अपने लक्ष्य से संचालित हो रहे हैं तो वह वास्तव में घर नहीं होगा। तो अगर इन सारी चिंताओं और सरोकारों को हम परे रख सकेंगे, तभी आप घर पर रह सकेंगे।

जब हम कहते हैं कि ‘आप घर पर हैं’ तो ऐसा कहने का मतलब क्या है? इसका मतलब है कि आप आरामदायक स्थिति में हैं, आप अपने स्वभाविक रूप हैं। घर पर आपको किसी और रूप में रहने की जरुरत नहीं होती। तो सच के साथ रहने का यही तरीका है। आपका सारा व्यक्तित्व, आपका लिंग, आपकी राष्ट्रीयता, या इस तरह की आपकी तमाम चीजें बाहर से लादी हुई हैं। दरअसल हमारे अपने बनाए एक पहचान की वजह से, हमारा शरीर किस तरह का है, इसकी वजह से, समाज में हमारी एक पहचान बन गई है। हो सकता है कि समाज में यह महत्वपूर्ण हो कि आप स्त्री हैं या पुरुष। हो सकता है कि समाज में यह भी महत्वपूर्ण हो कि आप अमेरिकी हैं या भारतीय अथवा आप काले हैं या गोरे, लेकिन आपके भीतर जो यह जीवन है, उसके लिए ये सारी चीजें कोई मायने नहीं रखतीं। अगर यह जीवन सत्य के साथ लयबद्ध हो गया तो यह सहज हो उठेगा। अगर यह सत्य के साथ लयबद्ध नहीं हुआ तो यह सहज नहीं रह पाएगा।

तो सत्संग का मतलब घरवापसी या घर आने जैसा है। कृपया सत्संग को अपने साथ घर ले जाएं, यह बेहद महत्वपूर्ण है। इसके लिए बाहरी सत्संग के सहयोग की जरूरत है। इसके लिए एक ऐसे संघ की जरूरत होगी, जो सत्य के प्रति प्रतिबद्ध हों। लेकिन इसके साथ यह महत्वपूर्ण है कि आप जहां भी हों, जहां भी फि लहाल आप जी रहे हों, वह जगह सत्य के साथ आपके मिलन का स्थान होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फि र सत्संग आपके लिए महज एक मासिक मनोरंजन बन कर रह जाएगा। कृपया ऐसा मत कीजिए। एक सद्‌गुरु को एक मनोरंजनकर्ता के रूप में मत लीजिए, जो महीने में एक बार आपका मनोरंजन करता हो। अगर आप लगे हुए हैं तो मैं आपके लिए, दिन के चौैबीसों घंटे और हफ्ते के सातों दिन, आपके पूरे जीवन भर और यहां तक कि जीवन के बाद भी आपके लिए लगा रहूंगा।