क्या आप अपना धर्म जानते है?
सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि सही मायनों में धर्म का अर्थ है, इस ब्रह्माण्ड के नियमों के अनुसार अपना जीवन बिताना। जानते हैं कुछ सरल चीजें जिन्हें धर्म की तरह अपना कर हम ब्रह्माण्ड के साथ तालमेल में आ सकते हैं...
हमने आपको इस चीज़ का पालन करने के लिए कहा, कि “सभी नियम मेरे नियम हैं”। मान लें आप अपने घर में यह सोचते हुए घूमें कि इस घर के सभी नियम आपके नियम हैं, तो क्या होगा? क्या आपको ऐसा लगेगा कि आपको परेशान किया जा रहा है या आपको शक्ति का अहसास होगा? आपको समझना होगा कि आप एक कोमल शक्ति बन जाएंगे, और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि आपने शक्ति मांगी ही नहीं है। कोई शक्ति इसलिए मांगता है क्योंकि वह शक्तिहीन है।
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आप उस चीज को मांगते हैं, जो आपके पास नहीं है। कई साल पहले मैं एक स्कूल में था। शिक्षक ने 13-14 साल के बच्चों से पूछा, अगर ईश्वर आपको एक वरदान दे तो आप क्या मांगेंगे? पहले बच्चे ने जवाब दिया - मुझे मारुति कार चाहिए। दूसरा बच्चा खड़ा होकर बोला - सर तमिल अदाकारा खुशबू मांगेंगे। एक और बच्चे ने पांच लाख रुपये मांगने की बात कही। टीचर ने कहा, ‘बेवकूफों तुम इस सबका क्या करोगे? तुम्हें बुद्धि मांगनी चाहिए। आखिरी बेंच पर बैठा एक बच्चा बोला, ‘सर, इंसान वही मांगता है, जो उसके पास नहीं होता’।
जो इंसान खुद यह दावा करता है कि वह अपने आप में शक्तिशाली है, स्पष्ट है, वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि वह शक्तिहीन है। शक्ति सिर्फ इसी से नहीं आ जाती कि आप उसका दावा कर रहे हैं।
मैं आपको कोई नागरिक संहिता या नियम-कानून का पाठ नहीं पढ़ा रहा हूं, यह धर्म है। अगर आप इसे अपना लेते हैं, तो आप इस ब्रह्मांड के साथ संरेखित यानी इस सृष्टि के साथ लयबद्ध हो जाएंगे। इसका संबंध ब्रह्मांड के कानून से है, दुनिया के धर्म से है क्योंकि आप जो कुछ भी करते हैं, वह बाकी जगत के साथ बड़ी गहराई से जुड़ा है, चाहे वह आपका सांस लेना हो, चाहे वह आपके दिल का धड़कना हो या आपके शरीर का काम करना। अगर आप दिल से इस जगत के नियमों का पालन करेंगे, तो आप जबर्दस्त तरीके से काम करेंगे। अभी आप न तो शरीर में अच्छा महसूस करते हैं और न ही मन में क्योंकि आप इस सृष्टि के मूल नियमों का अनजाने में ही सही, लेकिन पालन नहीं करते। चाहे ऐसा जानबूझकर हो या अनजाने में, नतीजा तो एक ही होगा। इस अस्तित्व का यही तरीका है।
चूंकि आप भावनात्मक प्राणी हैं इसलिए हमने आपको एक और चीज बताई, आप खुद को इस दुनिया की मां बना लीजिए। क्या आपने इस ओर कदम उठाया? कितनी बार और कितनी देर के लिए आपने हर प्राणी को ऐसे देखा जैसे वह आपका अपना है? शायद बहुत कम बार। ऐसा न सोचें कि दुनिया की मां बनने की बात आपको इसलिए समझ आ गई है कि आपके अपने बच्चे हैं। ऐसे काम नहीं चलने वाला है। अगर आप सोचते हैं कि आपने बात को समझ लिया है तो धर्म आपके लिए काम नहीं करने वाला है। यह तो उसके लिए काम करेगा, जो इसका प्रयोग करेगा, जो वैसा ही हो जाएगा।