सद्‌गुरुसद्‌गुरु बता रहे हैं कि कैसे अमेरिकी समाज भावना की स्थिरता की कमी से उथल पुथल का सामना कर रहा है। अमेरिकी ऐसी परेशानियों से गुजरते मिलते हैं, जिन परेशानियों से अमेरिका का भारतीय समुदाय नहीं गुजरता। जानते हैं जीवन में ध्यान और भावना की सुरक्षा के महत्व के बारे में

प्रश्न : अमेरिका में लोग तलाक से बहुत ज्यादा प्रभावित रहते हैं और उस पीड़ा से गुजरते हैं। आपने पहले कभी जिक्र किया था कि दो लोगों के अलग होने के खासे दुष्परिणाम होते हैं। सद्‌गुरु, किसी व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास पर तलाक क्या प्रभाव डालता है? अगर पहले ही तलाक हो चुका हो तो उसके दुष्परिणाम से कैसे निपटा जाए? साथ ही, हम लोगों को एक दूसरे की परवाह करने और आपस में एक-दूसरे का ख्याल रखने के बारे में कैसे शिक्षित कर सकते हैं?

सद्‌गुरु: एक दिन एक पति अपने काम से घर लौटा। अगले दिन उसकी पत्नी का जन्मदिन था। पति ने पत्नी से पूछा, ‘प्रिये, तुम अपने जन्मदिन पर क्या चाहती हो - कोई महंगी गाड़ी, कोई कीमती ड्रेस या कोई गहना?’ पत्नी ने जवाब दिया, ‘मुझे इनमें से कुछ भी नहीं चाहिए। मुझे बस तलाक चाहिए।’ इतना सुनते ही पति बोल पड़ा, ‘अरे मैं इतने महंगे गिफ्ट के बारे में नहीं सोच रहा था।’ तो कई लोग तलाक को बुरी चीज नहीं मानते। दरअसल आजादी के बारे में उनकी सोच उन्हें एक के बाद एक गहरी उलझनों में ले जाती है। शायद दुनिया के किसी भी दूसरे देश में महिलाओं को इतनी भौतिक आजादी नहीं है, जितनी अमेरिकी महिलाओं को है। लेकिन संभवत: दुनिया भर में कहीं भी महिलाएं इतनी तनावग्रस्त, उत्तेजित व घबराई हुई नहीं रहतीं, जितनी अमेरिकी महिलाएं रहती हैं।

भावना व्यक्तित्व का सबसे मजबूत पहलू बन जाती है

यह कोई आजादी नहीं है। यह आजादी के बारे में सिर्फ एक सोच है, जो ठीक से काम करती दिखाई नहीं देती। हमारे कहने का यह मतलब हर्गिज नहीं है कि हमेंं उस दमनकारी दौर में वापस लौट जाना चाहिए, जहां महिलाओं का शोषण होता था।

लेकिन आपका भौतिक जीवन बहुत अच्छा चल रहा हो, आप अच्छा खा रही हों, अच्छा पहन रही हों, मान लीजिए आपके पास महंगी कार है, महंगी ड्रेस है और महंगे और खूबसूरत गहने हैं, फि र भी आपकी भावनाएं आहत हैं तो फि र आप वहां रहना पसंद नहीं करेंगी। 
बात सिर्फ  इतनी है कि आजादी के बारे में आपका विचार थोड़ा और परिपक्व होना चाहिए, ऐसा विचार जो सार्थक हो, जो काम कर सके। कोई भी विचार तभी सार्थक होता है, जब वह काम करे और उसके नतीजे सामने आएं। अगर यह विचार लोगों को खत्म कर रहा है और आधी आबादी अवसाद की दवाइयों पर गुजारा कर रही है तो जाहिर है कि यह विचार कारगर नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप खुद को कितने शिक्षित व बुद्धिजीवी मानते हैं, भावना आपके व्यक्तित्व का एक मजबूत पहलू होती है। एक बार भावना जब सिर उठाती है तो फिर वह आपके व्यक्तित्व का सबसे मजबूत पहलू बन जाती हैं। तब आपके विचार इतने शक्तिशाली नहीं रहते। अगर खुशनुमा भाव इतने मजबूत नहीं भी होते तो कम से कम गुस्से, डर व बेचैनी के नकारात्मक भाव काफी उग्र होते हैं। जो काफी तनाव पैदा करते हैं।

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अगर आप भावनाओं से मुक्त हैं तो बेशक मेरी बातों को नजरअंदाज कर सकते हैं। लेकिन जब भावना आपके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और आप उनकी अनदेखी कर रहें हैं तो आपको सिर्फ पीड़ा ही होगी। भले ही आप कहीं काम करती हों, अपना कारोबार करती हों या आपने एक अमीर आदमी से शादी कर ली हो, किसी न किसी रूप में आप अपने भौतिक जीवन को जीने का रास्ता निकाल ही लेती हैं। लेकिन आपका भौतिक जीवन बहुत अच्छा चल रहा हो, आप अच्छा खा रही हों, अच्छा पहन रही हों, मान लीजिए आपके पास महंगी कार है, महंगी ड्रेस है और महंगे और खूबसूरत गहने हैं, फि र भी आपकी भावनाएं आहत हैं तो फि र आप वहां रहना पसंद नहीं करेंगी। इसीलिए सिर्फ  अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए प्रयास करना ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि समाज की भावना की सुरक्षा की तरफ  ध्यान देना भी जरूरी है। फिलहाल अमेरिका में इस चीज की कमी है और भावना की सुरक्षा की कमी सिर्फ  औरतों के लिए ही नहीं, बल्कि मर्दों के लिए भी है। यही एक वजह है, जिसकी वजह से अमेरिका आर्थिक रूप से नीचे जाएगा, क्योंकि यहां कोई भावनात्मक सुरक्षा नहीं है।

भारतीयों में भावना की स्थिरता अधिक पाई गई है

फिलहाल अमेरिकी विश्वविद्यालयों में जो सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, वो भारतीय समुदाय है और उसके बाद यहूदी लोगों का नंबर आता है। सवाल है, ऐसा क्यों? तो इसके पीछे वजह यह नहीं है कि उनके पास कोई अतिरिक्त प्रतिभा या दिमाग है, बल्कि इसकी वजह सिर्फ  उनके पास भावना की सुरक्षा का होना है। जब तक वे पच्चीस साल के नहीं हो जाते और उनकी उच्च शिक्षा पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनकी सभी चीजों की जिम्मेदारी परिवार द्वारा उठाई जाती है। उन्हें किसी चीज के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। माता-पिता अपने बच्चों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, बदले में बच्चे भी अपने अभिभावक के लिए समर्पित होते हैं। उन्हें जीवन के किसी और पहलू का खयाल नहीं रखना पड़ता। लेकिन अमेरिकी बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता। जब तक वे अपनी उच्च शिक्षा पूरी करते हैं, तब तक उनके तीन बॉयफ्रेंड या छह गर्लफ्रेंड बदल चुकी होती हैं और वे भावना की उथल-पुथल, ईर्ष्या, समस्याओं व तमाम तरह के संघर्षों से गुजर चुके होते हैं। इससे पहले कि वे अपने पैरों पर खड़े हों, वे काफी दुनिया देख चुके होते हैं, जो उन्हें काफी हद तक अक्षम बना देती है।

ऐसा नहीं है कि विश्वविद्यालयों में जो कुछ होता है, वही सब कुछ तय करता है, लेकिन इससे पता चलता है कि वे लोग अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। अगर आप अमेरिका में कहीं से भी बीस लोगों को चुन लीजिए तो आप देखेंगे कि उनमें से आठ लोग कुछ भी सार्थक नहीं कर रहे। इसके पीछे मुख्य वजह वो भावना की उथल-पुथल रही है, जिससे वह अपने जीवन के बारह-तेरह साल की उम्र में गुजरे थे। उस समय उन लोगों ने उन चीजों का सामना किया, जिसका सामना करने की उनकी उम्र ही नहीं थी। जिसका नतीजा हुआ कि किसी के भी पास भावना की सुरक्षा जैसी कोई चीज नहीं है।

अमेरिका में ये सामाजिक समस्या बन चुकी है

आज कोई दावा करता है कि वह आपसे प्रेम करता है और हो सकता है कि कल सुबह वह किसी और के साथ दिखाई दे। यह डर महिला और पुरुष दोनों में होता है, जो उन्हें किसी भी चीज या काम पर केंद्रित नहीं होने देता।

अगर पति या पत्नी में से कोई भी जरा भी भावना के स्तर पर असुरक्षित हो तो सबसे पहली चीज होगी कि वे नहीं चाहेंगे कि उनका साथी ध्यान करे। वे तुरंत टोकेंगे, ‘ये आंखें बंद करके तुम क्या कर रहे हो?’ यह बहुत ही बेतुकी बात है। 
 हिंदुस्तानी कारोबारी समुदाय में बेटा जैसे ही इक्कीस साल का और बेटी अठारह की होती है, उनकी शादी कर दी जाती है। इसके बाद भी वे पढऩे के लिए कॉलेज या विश्वविद्यालय जाते हैं, लेकिन अब वे शादीशुदा होते हैं और एक दूसरे के प्रति समर्पित व निष्ठावान होते हैं। जब तक वे तेईस या चौबीस साल के होते हैं, वे पूरी संजीदगी से वैवाहिक जीवन जी रहे होते हैं और उनका जीवन भी काफी सुरक्षित होता है। वे जीवनभर के लिए आपस में बंधे होते हैं, इस बारे में उनमें कोई दो राय होती ही नहीं है। वहां आपको इस बारे में सोचने की जरूरत ही नहीं होती कि जब आप घर जाएंगे तो आपकी पत्नी वहां होगी भी या नहीं। ऐसे खयाल आपके दिमाग में आ ही नहीं सकते, क्योंकि वहां आपस में पूरी तरह से समर्पण होता है। जीवन का केवल एक पहलू पूरी तरह से सुरक्षित होने का अहसास भर आपको कुछ भी करने की सामर्थ्य देता है। पुरुष में जब यह डर बैठा होता है कि उसके घर से बाहर जाने पर पीछे से क्या होगा तो वह कुछ भी सार्थक काम नहीं कर पाता। इसी तरह से अगर महिला को डर सताता है कि पुरुष बाहर जा रहा है तो पता नहीं वापस लौटेगा या नहीं, तो वह भी कुछ सार्थक नहीं कर पाती।

किसी भी इंसान और मानव समाज को खिलने के लिए भावना से जुड़ी सुरक्षा एक बेहद अहम पहलू है। दुर्भाग्य से आजादी की बचकानी सोच के चलते हम भावना की सुरक्षा को खो बैठे हैं। उस रूप में हम लोगों को कई चीजों के बारे में अक्षम बना रहे हैं। हो सकता है कि अमेरिका की कुछ आबादी इतनी मजबूत हो, जो किसी भी हाल में आगे बढक़र चीजों को कर दिखाए, लेकिन ज्यादातर लोग अस्थिर हो चुके हैं। उन्हें हमेशा यह डर सताता है कि अगर उनसे कुछ गलत हो गया तो उसका नतीजा क्या होगा। मान लीजिए, इस शनिवार को आपको छुट्टियों में बाहर जाना था, लेकिन तभी कोई जरूरी काम आ जाने की वजह से आप नहीं जा पाए। ऐसे में हो सकता है कि सोमवार की सुबह आपको तलाक की नोटिस मिल जाए।

हो सकता है कि यह हर घर का सच न हो, लेकिन अमेरिका में बड़े पैमाने पर ऐसा हो रहा है। वहां अब यह कोई व्यक्तिगत समस्या न रहकर एक सामाजिक समस्या बन चुकी है। हालांकि हर समाज में कुछ व्यक्तियों में ऐसी समस्याएं होती हैं, लेकिन जब यह एक गंभीर सामाजिक समस्या बन जाए, जब बहुत से लोग एक सी समस्याओं का सामना करने लगें तो हमेंं देखना होगा कि उनके भावना के स्थिर पर जीवन को मजबूत कैसे किया जाए। इसके बिना लोग सार्थक जीवन नहीं जी सकते। हमारे कार्यक्रम में बहुत से दंपति आते हैं। अगर पति या पत्नी में से कोई भी जरा भी भावना के स्तर पर असुरक्षित हो तो सबसे पहली चीज होगी कि वे नहीं चाहेंगे कि उनका साथी ध्यान करे। वे तुरंत टोकेंगे, ‘ये आंखें बंद करके तुम क्या कर रहे हो?’ यह बहुत ही बेतुकी बात है। ऐसा करके आप भाग नहीं रहे हैं, आप बस अपनी आंखें बंद कर रहे हैं। लेकिन यही तो उन्हें खतरा है कि एक बार आपने आंखें बंद कर लीं तो आप कहीं भी जा सकते हैं।

समर्पण की संसकृति को वापस लाना जरुरी

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि समर्पण की संस्कृति को वापस लाया जाए। जिन लोगों ने इस देश को तिनके से जोड़ कर बनाया था, उन्होंने खुद एक स्थिरता से भरपूर जीवन जिया था। 

अगर पति या पत्नी में से कोई भी जरा भी भावना के स्तर पर असुरक्षित हो तो सबसे पहली चीज होगी कि वे नहीं चाहेंगे कि उनका साथी ध्यान करे। वे तुरंत टोकेंगे, ‘ये आंखें बंद करके तुम क्या कर रहे हो?’ यह बहुत ही बेतुकी बात है। 
  बिना एक स्थायी जीवन जिए वे इस महान देश का निर्माण नहीं कर सकते थे, क्योंकि कोई महिला या पुरुष उस स्थिति में कोई सार्थक काम नहीं कर सकता, जब उसकी सारी भावनाएं बिखरी हुई हों। किसी भी इंसान को जीवन में खूबसूरत तरीके से काम करने के लिए भावना के स्तर पर उसकी कुछ न कुछ संतुष्टि होनी जरूरी है। जब तक कि वे भावना की सुरक्षा से परे नहीं जाते और ये चीजें उनके लिए और मायने नहीं रखतीं, तब तक वे इसके बिना काम नहीं कर पाएंगे। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में उस स्थिति में पहुंच जाता है तो फि र उसके लिए कोई चीज मायने नहीं रखती।

लोगों के जीवन में इन दोनों चीजों में से एक का होना जरूरी है- या तो लोग ध्यान करने लगें या फिर वे भावना के स्तर पर सुरक्षित हों। अगर लोगों को भावना के स्तर पर सुरक्षित बना पाना संभव न हो तो फिर उनके लिए एक ही रास्ता बचता है कि उन्हें ध्यान की ओर मोड़ दिया जाए, क्योंकि यह उनके जीवन के तमाम पहलुओं में उनकी मदद करेगा। यह उनकी भावनाओं को शांत कर स्थिर करेगा, लोगों का आध्यात्मिक विकास होगा और उनका दिमाग भी अपेक्षाकृत बेहतर काम करेगा। फि लहाल हर तरह की आजादी होने के बावजूद वे लोग बेहतर जीवन नहीं जी रहे। वे लोग हताशा भरा जीवन जी रहे हैं।

जब मैं पहली बार नैशविल (अमेरिका का एक शहर) आया तो शहर के बीचोंबीच स्थित एक अपार्टमेंट में ठहरा था। मैं सुबह छह बजे अपार्टमेंट से बाहर आया तो मैंने देखा कि कुछ लोग मुंह में ब्रश दबाए गाड़ी चला रहे हैं। कुछ लोग गाड़ी चलाते समय कॉफ़ी की चुस्की ले रहे हैं। उन्हें देखकर लग रहा था कि बिस्तर से उठते ही उन्होंने अपनी पैंट पहनी होगी और बिना नहाए धोए सीधे आकर गाड़ी में बैठ गए होंगे। जब आप इस तरह से जीवन जीते हैं तो आपका मन व आपकी भावना कभी भी स्थिर नहीं हो सकतीं। दरअसल, आजादी के नाम पर आपने रोकने-टोकने वाली सभी चीजों को हटा दिया है। और अब इसी तरह से लोग रह रहे हैं। जो हाल भारत की सडक़ों पर ट्रैफिक का देखने को मिलता है, वही हाल अमेरिकी लोगों के जीवन में भावना का देखने को मिलता है। हर कोई जिधर चाहे उधर जा रहा है। लेकिन किसी को पता नहीं कि वह कहां जा रहा है। उनके लिए एक ही चीज महत्वपूर्ण है कि उन्हें आजाद होना हैं। आजादी के नाम पर आप उन सारे ढांचों को खो बैठे हैं, जो आपके विकास के लिए बनाए गए थे।