सद्‌गुरुकहीं न कहीं हम सब के दिमाग में यह बैठा हुआ है कि देश में शिक्षा की जिम्मेदारी बस कुछ मुट्ठी भर शिक्षकों की है, लेकिन क्या यह सही है? क्या यह जिम्मेदारी हम सबकी नहीं है?

स्कूलों और घरों में जिस तरह की शिक्षा हम आज बच्चों को देंगे, उसी से यह तय होगा कि यह दुनिया आज से पच्चीस साल बाद कैसी होगी। चूंकि इंसान दूसरे प्राणियों की तरह पैदा नहीं होता, इसलिए शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जब एक चीता, एक हाथी या कोई दूसरा जानवर पैदा होता है, तो वह अपने जन्म से ही काफी हद तक संपूर्ण होता है। एक चीते को पता होता है कि अच्छा चीता कैसे बना जाए। सिर्फ इंसानों के साथ ही समस्या होती है।

अपनी आबादी को प्रेरित करने का अवसर

अंग्रेजी में हम मानव जाति को ‘ह्यूमन बीईंग’ कहते हैं, मुझे लगता है कि उसकी जगह ‘ह्यूमन बिकमिंग’ कहना चाहिए - आपको ह्यूमन बीइंग बनने की जरुरत है।

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इसलिए हमारे जैसे देश में शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हमारी सवा अरब की आबादी है, जो दुनिया की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा है।
अगर हम सही वक्त पर सही चीज नहीं करेंगे तो हो सकता है कि आप एक इंसान को पैदा न कर एक जानवर को पैदा करें। हमने दुनिया में इंसानी रूप में कई जानवरों को पैदा किया है। इसलिए हमारे जैसे देश में शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हमारी सवा अरब की आबादी है, जो दुनिया की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा है। अगर हम इस आबादी को एक स्थिर, प्रेरित, फोकस्ड (लक्ष्य की ओर केन्द्रित) व स्किल्ड या योग्य आबादी में बदल दें तो हम दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार होंगे। अगले पच्चीस सालों में पूरी दुनिया हमारी तरफ देख रही होगी। लेकिन हमने अगर अपनी इस आबादी को अस्थिर, निरुत्साहित, अप्रशिक्षित और अनफोकस्ड या लक्ष्य रहित छोड़ दिया तो यह इस धरती पर आने वाला सबसे बड़ा विनाश होगा।

शिक्षक ही नहीं, हर नागरिक को शिक्षा से जुड़ना होगा

तो फिलहाल यह जिम्मेदारी हम सब पर है। उन सब लोगों पर, जो किसी न किसी रूप में शिक्षा के एक या दूसरे आयाम से जुड़े हुए हैं।

जब शिक्षा की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है, तो फिर इसकी जिम्मेदारी सिर्फ कुछ शिक्षकों पर, जिन्हें बहुत ही कम वेतन दिया जाता है, नहीं रह जाती और न ही यह काम बदहाल सरकारी शिक्षा विभाग का है।
यह जिम्मेदारी हम पर है कि हम यह सुनिश्चित करें कि इस देश की सारी वयस्क आबादी किसी न किसी रूप में शिक्षा की धारा से जुड़े। देश के हर व्यक्ति को इससे सरोकार रखना चाहिए। आज पर्यावरण के बारे में काफी बातें होती है और हर व्यक्ति इस दिशा में अपनी ओर से थोड़ा बहुत करने की कोशिश कर रहा है। इसी तरह से इस देश में रहने वाले हर व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में थोड़ा-बहुत योगदान जरूर करना चाहिए, क्योंकि आने वाली पीढ़ी इसी पर निर्भर करेगी। जब शिक्षा की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है, तो फिर इसकी जिम्मेदारी सिर्फ कुछ शिक्षकों पर, जिन्हें बहुत ही कम वेतन दिया जाता है, नहीं रह जाती और न ही यह काम बदहाल सरकारी शिक्षा विभाग का है। ऐसे नहीं होगा। यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यह बेहद जरूरी है कि इस देश का हर वयस्क, बल्कि हर नागरिक, चाहे जिस भी रूप में संभव हो, चाहे जितना हो सके, उतना ही, देश की शिक्षा-प्रकिया में शामिल हो।

शिक्षित लोगों की मुस्कुराहट गायब हो रही है

जब हम शिक्षा की बात करते हैं तो हमें यह भी समझना चाहिए कि शिक्षा के भीतर जीवन का पुट भी होना चाहिए।

अब चूंकि आपको एक सर्टिफिकेट मिल गया है तो अब आपको मुस्कुराने की जरूरत नहीं है, आप गुर्रा सकते हैं! अफसोस की बात है कि आज यही नजर आता है।
वर्ना आप दुनिया में हर जगह देखेंगे कि लोग जितने अधिक शिक्षित होते हैं, उनमें जीवन-कौशल उतना ही कम होता है। अगर लोग शिक्षित हो जाते हैं तो उनमें से अधिकांश लोग अपने बाकी जीवन में मुस्कुरा ही नहीं पाते, क्योंकि उनके पास एक योग्यता जो आ गई है। अगर आपके पास दिखाने के लिए एक सर्टिफिकेट नहीं है, और आप अपने लिए संभावनाएं खोलना चाहेंगे, तो आप हर हाल में मुस्कुराएंगे। अब चूंकि आपको एक सर्टिफिकेट मिल गया है तो अब आपको मुस्कुराने की जरूरत नहीं है, आप गुर्रा सकते हैं! अफसोस की बात है कि आज यही नजर आता है। ऐसा कहकर मैं सभी शिक्षित लोगों के खिलाफ टिप्पणी नहीं कर रहा हूं, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा ही हो रहा है। क्योंकि हमारी शिक्षा-प्रणाली बेहद एकांगी हो गई है, यह बहुआयामी है ही नहीं।

हर स्तर के व्यक्ति के लिए अलग शिक्षा व्यवस्था

जैसे कि पहले चर्चा हो चुकी है कि हमारा सरोकार अभी तक शिक्षा की चादर को किसी तरह से सब तरफ फैलाना रहा है। इसे सब ओर फैलाने के चक्कर में कई जगह से यह फट गई है, इसमें कई छेद हो गए हैं।

एक समय था कि जब इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की बात थी, लेकिल आज समय है कि हमारा सारा जोर क्वालिटी के निर्माण पर होना चाहिए।
अब समय आ गया है कि हम न सिर्फ इन छेदों को बंद करें, बल्कि इसे इतनी खूबसूरती से दुरुस्त कर आगे बढ़ाएं कि यह बेहतर शिक्षा व्यवस्था के तौर पर उभरकर सामने आए। हमारे बच्चे इसका आनंद ले सकें और हम लोग उस पर गर्व कर सकें। एक समय था कि जब इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की बात थी, लेकिल आज समय है कि हमारा सारा जोर क्वालिटी के निर्माण पर होना चाहिए। यह काम दो अलग-अलग समय पर नहीं होना चाहिए था, क्योंकि कोई भी देश, खासकर भारत जैसा देश, सिर्फ एक देश नहीं है। भारत के कई स्तर हैं। हमें हर स्तर के लिए एक अलग रूपरेखा तैयार करनी चाहिए थी। लेकिन हम लोगों में समानता व धर्मनिरपेक्षता को लेकर एक बेहद सतही समझ है, इसकी वजह से हमें लगता है कि हर किसी को एक जैसे स्कूल में जाना चाहिए, हर किसी को एक जैसी चीज सीखनी चाहिए। हो सकता है कि उनके जीवन के अनुभव अलग हो, उनके विवेक का स्तर अलग हो, लेकिन वे किस पृष्ठभूमि से आते हैं, यह फिर भी कई चीजें तय करता है। अफसोस की बात है कि हमने इन सारे पहलुओं पर विचार नहीं किया।