भक्ति को आमतौर पर मंदिर जाने और पूजा करने से जोड़कर देखा जाता है, ऐसा तथाकथित भक्तों के बाहरी कामों को देखकर सोचा जाता है। क्या है भक्त की भीतरी स्थिति?

सद्‌गुरुभक्ति बुद्धि का ही एक दूसरा आयाम है। बुद्धि सत्य पर जीत हासिल करना चाहती है। भक्ति बस सत्य को गले लगाना चाहती है। भक्ति समझ नहीं सकती मगर अनुभव कर सकती है। बुद्धि समझ सकती है मगर कभी अनुभव नहीं कर सकती। अब व्यक्ति के पास चुनाव का यही विकल्प है।

जब आप किसी चीज या किसी व्यक्ति से अभिभूत होते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से भक्त हो जाते हैं। लेकिन यदि आप भक्ति करने की कोशिश करते हैं, तो इससे समस्याएं पैदा होती हैं क्योंकि भक्ति और छल के बीच बहुत बारीक रेखा है। भक्ति की कोशिश आपमें कई तरह के भ्रम पैदा कर सकती है। तो आप भक्ति का अभ्यास नहीं कर सकते, लेकिन आप कुछ ऐसी चीजें जरूर कर सकते हैं जो आपको भक्ति तक पहुंचा सकें, भक्त बना सकें।

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भक्ति योग का सूत्र

अगर आप सिर्फ एक चीज को समझ लें, बल्कि आत्मसात कर लें तो आप स्वाभाविक रूप से एक भक्त बन जाएंगे। यह ब्रह्मांड काफी विशाल है। आपको नहीं पता कि वह कहां से शुरू होता है और कहां खत्म होता है। अरबों-खरबों तारामंडल हैं।

सौर मंडल के इस छोटे से कण में हमारी पृथ्वी एक सूक्ष्म कण है। पृथ्वी के इस सूक्ष्म कण में आपका शहर, जिसमें आप रहते हैं, वह और भी नन्हा सा, अति सूक्ष्म कण है। उस शहर में, आप एक ‘बड़े आदमी’ हैं!
इस व्यापक ब्रह्मांड में, यह सौर मंडल एक छोटा सा कण है। अगर यह सौर मंडल कल गायब हो जाए, तो ब्रह्मांड में इस पर ध्यान भी नहीं जाएगा। सौर मंडल के इस छोटे से कण में हमारी पृथ्वी एक सूक्ष्म कण है। पृथ्वी के इस सूक्ष्म कण में आपका शहर, जिसमें आप रहते हैं, वह और भी नन्हा सा, अति सूक्ष्म कण है। उस शहर में, आप एक ‘बड़े आदमी’ हैं! खुद को बड़ा, खास या महत्वपूर्ण समझना - यह नजरिये की एक गंभीर समस्या है। सिर्फ  इसी वजह से आपके अंदर कोई भक्ति नहीं है।

रात में बाहर निकलिए, बत्तियों को बुझा दीजिए और आसमान की ओर देखिए। आपको नहीं पता कि वह कहां शुरू होता है और कहां खत्म होता है। यहां आप धूल का एक अति सूक्ष्म कण हैं जो एक ग्रह पर घूम रहा है। आपको नहीं पता कि आप कहां से आए हैं या कहां जाएंगे। जब आप इस बात को आत्मसात कर लेंगे फि र आपके लिए भक्त बनना बहुत स्वाभाविक होगा। आप उस हर चीज के आगे झुकेंगे, जिसे आप देखते हैं। अगर आप बस बाकी सृष्टि के संदर्भ में अपनी ओर देखें, तो कोई और तरीका नहीं है। लोग अहंकारी मूर्ख सिर्फ  इसलिए बन गए हैं क्योंकि वे इस बात का नजरिया खो बैठे हैं कि वे कौन हैं और अस्तित्व में उनकी क्या बिसात है?

आप एक सरल चीज यह कर सकते हैं कि इस अस्तित्व में हर चीज को खुद से ऊंचा समझें। सितारे तो निश्चित रूप से ऊंचे ही हैं मगर सडक़ पर पड़े छोटे से कंकड़ को भी खुद से ऊंचा देखने की कोशिश करें। वैसे भी, वह आपसे अधिक स्थायी, आपसे अधिक स्थिर है। वह सदियों तक शांत होकर बैठ सकता है। अगर आप अपने आस-पास की हर चीज को खुद से ऊंचा मानना सीख लें, तो आप कुदरती तौर पर भक्त बन जाएंगे।

एक भक्त ऐसी चीजों के बारे में जानता है, जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। वह ऐसी चीजें समझ सकता है, जिन्हें समझने में आपको मेहनत करनी पड़ती है क्योंकि उसके भीतर ‘मैं’ नहीं होता। जब आप खुद से बहुत ज्यादा भरे हुए होते हैं, तो कुछ बड़ा घटित होने की गुंजाइश नहीं होती।

मंदिर और पूजा से परे है भक्ति

भक्ति का मतलब यह नहीं है कि आपको मंदिर जाना होगा, पूजा करनी होगी, नारियल तोडऩा होगा। एक भक्त यह समझ लेता है कि अस्तित्व में उसकी जगह क्या है। अगर आपने इसे समझ लिया है और इसे लेकर सचेतन हैं तो आप एक भक्त की तरह व्यवहार करेंगे। फि र आप किसी दूसरे तरीके से रह ही नहीं सकते। यह अस्तित्व में रहने का एक समझदारी भरा तरीका है।