क्षितिज: ऐसा लगता है कि शिक्षित होना मुझ पर एक तरह की तार्किकता लादता है, जो हमें खुलेपन से रोकती है। दूसरी बात - लगता है कि आर्थिक समृद्धि और संभावनाओं के प्रति खुलने के बीच एक विपरीत संबंध है। क्या ये विचार सही हैं?

सद्‌गुरु: मैं आपके सवाल को दूसरी तरह से रख रहा हूं। आप यह पूछना चाहते हैं कि, ‘क्या अशिक्षित या फिर गरीब लोगों में आध्यात्मिक संभावनाएं अपेक्षाकृत ज्यादा होती हैं?’ बुनियादी रूप से शिक्षा शब्द का अर्थ है अपने दिमाग को उपजाऊ बनाना, जिससे वह लगातार नई संभावनाओं को अपने भीतर उतार सके। लेकिन क्या शिक्षा नई संभावनाओं के लिए एक बाधा भी बन सकती है? बेशक। इस मामले में कोई भी चीज बाधा बन सकती है, जैसा कि आपने खुद दो चीजों का जिक्र किया - शिक्षा और धन-दौलत। मैं बताना चाहूंगा कि सिर्फ शिक्षा या धन-दौलत ही नहीं, बल्कि सत्ता, शोहरत, पद जैसी चीजें भी बाधा बन सकती हैं। लेकिन इनमें से कोई भी चीज जरिया भी बन सकती है। तो यह सिर्फ पैसा या शिक्षा ही नहीं है, जो आपको खोल या बंद कर सकती है। बात सिर्फ इतनी है कि आप उससे खुद को कैसे जोड़ते हैं। अगर आपने शिक्षा पर गौर किया हो, तो यह खुद में एक संभावना है। जीवन के कुछ खास आयामों में शिक्षा एक संभावना है, जो बाहरी दुनिया में आपके लिए कई चीजें खोलती है। सबसे बड़ी बात कि शिक्षा वह संभावना है, जो आपको नई संभावनाओं तक पहुंचने के लिए तैयार करती है।

 

 

पैसा और धन-दौलत के साथ भी वही बात लागू होती है। अगर आपके पास पैसा या दौलत है तो यह आपके लिए दुनिया में कई संभावनाएं खोलती है और साथ ही आपके भीतर भी कई संभावनाएं लाती है। मान लीजिए किसी दिन आपकी इच्छा होती है कि आज काम पर न जाएं, बस बैठ कर ध्यान करें। लेकिन अगर आपकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि आपको हर रोज के भोजन के लिए काम करना पड़ता है, तो आपको उस दिन भी काम करना होगा। अगर आप ध्यान लगाना भी चाहें तो आपकी भूख आपको सडक़ पर ले जाएगी। लेकिन अगर आपके पास पैसे हैं, ऐसे में अगर आप ध्यान की इच्छा करते हैं, तो आप आराम से बैठकर ध्यान कर सकते हैं, यह संभावना आपके लिए खुली हुई है। तो क्या शिक्षा और दौलत किसी न किसी रूप में हमारी आध्यात्मिक तरक्की में बाधक हैं? ऐसा हो सकता है और अफसोस की बात है कि ऐसा बहुत से लोगों के लिए हो रहा है।

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पैसे या शिक्षा के साथ कोई गड़बड़ी है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इनके साथ खुद को किस तरह से जोड़ते हैं।

ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि पैसे या शिक्षा के साथ कोई गड़बड़ी है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इनके साथ खुद को किस तरह से जोड़ते हैं। अगर आप उन्हें सिर्फ साधन के तौर पर देख रहे हैं तो इसमें कोई परेशानी नहीं है। लेकिन अगर आप जो कुछ भी हैं, उसका सारा भाव सिर्फ आपकी डिग्री या आपके बैंक में जमा धन से तय हो रहा है, तो बेशक शिक्षा और दौलत दोनों ही बाधक हैं। ये सिर्फ आपकी आध्यात्मिक उन्नति में ही बाधक नहीं हैं, बल्कि आपकी शारीरिक व मानसिक सेहत के लिए भी बाधक हैं। लेकिन अगर आप उन्हें सिर्फ एक साधन के तौर पर देख रहे है, कहीं पहुंचने के एक उपकरण के तौर पर देख रहे हैं तो ये कहीं से बाधक नहीं हैं। बल्कि ये आपके लिए बेहद उपयोग साबित हो सकते हैं, क्योंकि ये आपके लिए बहुत ज्यादा संभावनाएं लेकर आते हैं। ये कई मायनों में आपके जीवन को स्वतंत्र करते हैं। तो शिक्षा और दौलत दोनों ही अपने आप में बाधा नही हैं, लेकिन अगर आप चाहें तो इन्हें बाधा बना सकते हैं।

 

मेरे लिए मुद्दा यह नहीं है कि आपकी पीड़ा का कारण क्या है, मेरे लिए मुद्दा यह है कि लोग पीडि़त हैं। मैं परवाह नहीं करता कि वे गरीब हैं या अमीर। मैं किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करता।

मेरा काम लोगों के साथ है। मुझे इसकी परवाह नहीं है कि आप अमीर हैं या गरीब, या फिर आप अपराधी हैं या पुलिसवाले। मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है, क्योंकि ये सब आपकी समस्या है। मेरी समस्या बस ये है कि आप एक इंसान हैं। चाहे आप भूख से पीडि़त हों या फिर बदहजमी से, है तो ये पीड़ा ही। मैं भूख और बदहजमी दोनों को एक जैसी करुणा से देखता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि पीड़ा आखिर पीड़ा ही होती है। चाहे आप भूख से परेशान हों या फिर बदहजमी से। बस फर्क सिर्फ इतना है कि भूख से तो तुरंत राहत दिलाई जा सकती है, लेकिन बदहजमी से आपको तुरंत राहत नहीं दिलाई जा सकती।

 

 

मेरे लिए मुद्दा यह नहीं है कि आपकी पीड़ा का कारण क्या है, मेरे लिए मुद्दा यह है कि लोग पीडि़त हैं। मैं परवाह नहीं करता कि वे गरीब हैं या अमीर। मैं किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करता।

इस संस्कृति की एक बड़ी समस्या है कि हमने गरीबी को कुछ ज्यादा ही गौरवान्वित किया है। यह गलतफहमी जीवन के आध्यात्मिक पहलू से निकलकर आई है। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले कुछ खास लोगों ने जान-बूझकर गरीबी को चुना। जब गौतम बुद्ध अपना राजपाट त्यागकर भिक्षुओं की तरह अपने महल से निकले तो इसका अपना अलग ही महत्व था। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वह दुनिया से कह रहे थे कि गरीबी जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका है। उन्होंने इसे एक खास तरीके के रूप में चुना था।