लाल रंग - उल्लास का प्रतीक

सद्‌गुरु: परंपरा के अनुसार, देवी सदा लाल रंग में ही रहती हैं क्योंकि यह सबसे जीवंत रंग है - और स्त्रैण ऊर्जा उसका प्रतिनिधित्व करती है। देवी के स्थानों पर सदा, लाल रंग की अनेक रूपों में सक्रिय भागीदारी होती है।

भैरागिनी

सद्‌गुरु: एक समय था, जब इस देश में एक भी ऐसा घर नहीं था, जहाँ कोई प्रतिष्ठित स्थान, मंदिर या तीर्थ न होता हो और एक लंबे अरसे तक, अधिकतम तीर्थों का रख-रखाव, पुरुषों के नहीं, स्त्रियों के हाथों में था। केवल सार्वजनिक स्थानों को ही पुरुष संभालते थे। लिंगभैरवी की देख-रेख भैरागिनी माँओं द्वारा की जाती है, जो देवी पर केंद्रित निश्चित प्रकार की साधनाएँ करती हैं। यह शायद संसार के उन कुछ मंदिरों में से है, जहाँ सारा कार्य स्त्रियाँ ही संभालती हैं, परंतु यह सबके लिए है। लिंगभैरवी को इसी तरह बनाया गया है, इनका रख-रखाव इसी तरह किया जाएगा, जो बहुत अनूठा है - यह एक निश्चित प्रक्रिया है, जिसे केवल स्त्रैण ऊर्जा ही कर सकती है।