छह कलात्मक रूप से तराशे गए ग्रेनाइट की प्रतिमाएं, ध्यानलिंग की भीतरी परिक्रमा में बनाई गई हैं। इन पर छह उन दक्षिण भारतीय ऋषियों की गाथा उकेरी गई है, जिन्होंने आत्म-ज्ञान पाया। हर तख़्ते पर उनके असाधारण जीवनों के क्षण अंकित हैं। अक्का महादेवी के दृश्य में उनके प्रेम तथा अनासक्ति को दर्शाया गया है, जहाँ वे राजा के कहने पर, अपने आभूषणों व यहाँ तक कि वस्त्रों का भी त्याग कर देती हैं और देह से परे होने की भीतरी अवस्था में आ जाती हैं। कनप्पा नयनार के दृश्य में दिखाया गया है कि वे अपनी बच्चों सी भावुकता में, शिव को अपना नेत्र अर्पित कर देते हैं। तीसरे दृश्य में शिवभक्त नयनार मीपोरुल की करुणामयी कथा को दिखाया गया है। उनके लिए शिव का सिर्फ एक प्रतीक, उनके जीवन से भी बढ़ कर था। चौथे पैनल के दृश्य में, सदाशिवब्रह्मेंद्र, एक निर्माणकाया योगी को दिखाया गया है। वे अपनी कटी भुजा की परवाह न करते हुए, अपने आनंद में मग्न चलते जा रहे हैं। इसके बाद पूसलार व उनके चमत्कारिक प्रसंग को दिखाया गया है, जहाँ उनके आंतरिक मंदिर को भगवान शिव द्वारा मान्यता दी गयी थी। छठे पैनल में, सद्गुरु को तीन जीवनकाल पहले की अवस्था में दिखाया गया है। उस समय ईशा का जन्म हुआ था, जब दिव्य गुरुदेव ने एक असहाय साधक पर अनुग्रह किया था।