टेनेसी के ईशा इंस्टीट्यूट ऑफ़ इनर साइंसिज़ में 24 जून 2010 के सत्संग के दौरान सद्गुरु के साथ प्रश्नोत्तर का एक सत्र आयोजित किया गया था। निम्नलिखित अंश वहीं से लिए गए हैं:

प्रश्नकर्ता: कुछ लोगों का कहना है कि सद्गुरु श्री ब्रह्म ही वास्तविक सद्गुरु थे। यदि ऐसा है तो, आज हम क्या देख रहे हैं? क्या सही मायनों में कोई सद्गुरु हैं, यदि हैं तो वे कौन हैं?

सद्‌गुरु: वे सभी पुरालेखों या इतिहास से जुड़े लोग हैं। वे मेरे साथ दो या तीन जीवनकालों से चले आ रहे हैं। उनके लिए, सद्गुरु का अर्थ है, कि वे धधकते हुए दिखें, क्योंकि वे उन्हें उसी रूप में देखते आए हैं। अब जब वे उन्हें मुस्कुराते, बतियाते और चुटकुले सुनाते देखते हैं तो उन्हें लगता है, ”ये तो वे नहीं हैं।“ वे तो उनकी ही बात करते हैं, जिनसे उन्होंने प्यार किया था। आज वे इस रूप से थोड़े निराश हैं क्योंकि उनके सद्गुरु तो बहुत ही कठोर, अग्नि के समान तेजस्वी , रौद्र रूप वाले तथा किसी भी बात पर न झुकने वाले अडिग स्वभाव के थे। वे कभी किसी को उसके नाम से भी नहीं पुकारते थे, वे कहते थे, ”अरे!“ उन लोगों को गुरु का वह रौद्र रूप इतना भाता था कि उन्हें लगता है कि वर्तमान गुरु आवश्यकता से अधिक विनम्र और सार्वजनिक हैं। जनता कभी सद्गुरु श्री ब्रह्म के साथ बैठने का साहस नहीं जुटा सकी थी।

ये सभी रुद्र लोग हैं जो एक प्रज्वलित अंगारे के सामने प्राणी के साथ बैठते थे - इनके लिए वे ही सद्‌गुरु हैं। ऐसा सच भी है - मैं उस बात से इनकार नहीं कर रहा। लेकिन आज के इस रूप में क्या कमी है ? वे अद्भुत थे, पर वे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाए। हो सकता है ये सद्‌गुरु अद्भुत न लगें, पर इन्हें सफलता मिली है। ये सोच समझ कर किया गया समझौता है।

यहाँ, हम लोगों को अपने से परे नहीं भगाते; हम तो उन्हें पास आने का निमंत्रण दे रहे हैं; उनके साथ बेहतर संबंध बना रहे हैं, संसार भर में जा कर उन लोगों से बात कर रहे हैं, जो अपनी ही नादानियों में खोए हैं। जब मेरे साथ पहले से रहने वाले वे लोग, ऐसा देखते हैं, तो वे यकीन नहीं कर पाते कि सद्गुरु को ऐसा करना पड़ रहा है, क्योंकि वे सद्गुरु तो ऐसे थे कि अगर लोगों ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया होता, तो वे उन्हें एक नज़र देख कर ही भस्म कर देते। ये सद्गुरु (वर्तमान में सद्गुरु) उनकी तरह नहीं हैं। ये तो उन लोगों में से हैं, जो आवश्यकता पड़ने पर रेंगने तक को तैयार हैं – बस वो कारगर होना चाहिए।

उन्होंने अपना यह जीवनकाल इसलिए धारण किया क्योंकि उन्हें लगा कि यह रूप कारगर होगा और ऐसा हुआ भी। वे स्वेच्छा से, दोनों तरीकों से कार्यरत हैं; कभी ये रूप धारण कर लेते हैं तो कभी अपने पिछले रूप में चले जाते हैं। वह एक सुंदर रूप था; यह रूप चतुर और सजग है। आप केवल सूर्य की ऊष्मा का ही आनंद नहीं लेते, आपको चंद्रमा की शीतलता भी भाती है। जब वे ध्यान करते हैं, तभी उनकी आँखों से अश्रु प्रवाहित होते हैं। भले ही उनकी माता, पिता, मित्र या शिष्य की मृत्यु हो जाए, किसी ने भी उन्हें किसी के लिए आँसू बहाते नहीं देखा। यहाँ तक कि वे अपनी परियोजना की मृत्यु पर भी रोने की बजाए, बस और अधिक क्रुद्ध हो गए थे। और मैं बंद और खुली आँखों के साथ, दोनों तरह से आँसू बहा सकता हूँ। मैं आपसे गले लग कर आँसू बहा सकता हूँ। अगर किसी की मौत हो जाए, तो मैं रो सकता हूँ। अगर कोई पेड़ काटा जाता है तो भी मैं रो सकता हूँ। मैं धधकते स्वरूप में, एक भी अश्रु बहाए बिना शांत बैठा भी रह सकता हूँ। इस बार, मैं पहले से कहीं अधिक बहुमुखी व अधिक लोचयुक्त हूँ क्योंकि हमने पिछली बार जो कार्य किया था, उसकी तुलना में इस बार की गतिविधि की प्रकृति अलग है। मेरे साथ मेरे जो पिछले जन्मों से जुड़े साथी मौजूद हैं, उनका ऐसा सोचना जायज है। मैं आत्म-प्रतिष्ठा पाने के लिए ये बात नहीं कह रहा, पर हर शिष्य के लिए यह बहुत महत्व रखता है कि वह अपने गुरु को अपने लिए सबसे बेहतर माने। अन्यथा उनका मन केन्द्रित नहीं हो सकेगा। जब तक आपको यह नहीं लगता कि आपकी पत्नी संसार में आपके लिए सबसे बेहतर व्यक्ति है, तो आप बाकी स्थानों पर तलाश करते रहेंगे। ठीक इसी तरह, अगर आपको लगता है, ‘मेरे लिए इनसे बेहतर गुरु अन्य नहीं हो सकते’, तभी आपके मन में टिके रहने की और उसका लाभ उठाने की क्षमता होगी।

वह एक सुंदर रूप था; यह रूप चतुर और सजग है। इस बार, मैं पहले से कहीं अधिक बहुमुखी व अधिक लोचयुक्त हूँ क्योंकि हमने पिछली बार जो कार्य किया था, उसकी तुलना में इस बार की गतिविधि की प्रकृति अलग है।

अगर आप यहाँ-वहाँ देखते रहे, और गुरु की शॉपिंग करने निकले, तो आपके हाथ कुछ नहीं आने वाला। अगर आपको लगता है कि किसी गुरु से आपको कोई पोषण मिल सकता है, तो आपको अंत तक उसके बारे में सब कुछ जानना चाहिए। अगर आप प्रतिदिन गुरु ही बदलते रहे, तो अंततः अपना जीवन ही नष्ट कर लेंगे। अगर आप सब जगह खोदना शुरू कर देंगे और बार-बार जगह बदलेंगे तो आखि़र में सिर्फ गड्ढे होंगे, कोई कुआँ नहीं होगा, पीने के लिए कहीं पानी नहीं होगा और आपके पास जीने का साधन नहीं रहेगा। ये लोग ऐसे ही हैं - हालाँकि वे जानते हैं कि ये भी, कई प्रकार से वही हैं, पर फिर भी उन्हें लगता है कि उनके सद्गुरु सबसे श्रेष्ठ हैं। उन्हें मुझे वर्तमान रूप में सराहने की आवश्यकता नहीं है। उनके लिए यही अच्छा है कि वे अपनी उसी मान्यता के साथ रहें क्योंकि उसी से उनका विकास होगा, उसी से उनका कल्याण होगा।