पांचाली

थी वो अग्नि से पूरी तरह प्रज्वलित,

सिर्फ ही हो सकती थी उसका जन्म स्रोत

अग्नि - जूनून, स्वाभिमान, शर्म और क्रोध की।

थी उसमें इतनी अग्नि -

कि ऊंचा उठना या हार मानना संभव नहीं था।

उसकी सुन्दरता और जूनून में सभी खो गए

आह! कितना सुंदर जाल था वो।