भारत में सन् 2020 तक विश्व की सबसे ज्यादा युवा जनसंख्या होगी, जिनमें पंद्रह साल से कम आयु के 36 करोड़ से अधिक बच्चे होंगे। परंतु 28 सरकारी स्कूलों में, एक प्रोजेक्ट टीम में नवीं कक्षा के छात्रों पर जो अध्ययन किए, उसके नतीजे दुखदायी हैं :

  • उनमें से 35 प्रतिशत अपनी मातृभाषा ही पढ़ या लिख नहीं सकते।
  • उनमें से 60 प्रतिशत को जोड़ना और घटाना नहीं आता।
  • उनमें से 65 प्रतिशत रक्ताल्पता (खून की कमी) से ग्रस्त हैं।

यह कार्यक्रम क्या करता है?


ईशा ने तमिलनाडू के ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी स्कूलों को गोद लेने की पहल अपनाई है। इसके अनुसार:

  • हमारा अनुभव, संसाधन और काम करने के तौर-तरीके सरकारी स्कूलों तक पहुंचाए जाएंगे।
  • प्रशिक्षित अध्यापकों व संशोधित कक्षाओं द्वारा गुणवत्ता शिक्षा का प्रसार होगा।
  • योग, खेल, कला व संगीत आदि पठन के अलावा हो सकने वाली गतिविधियों को शामिल किया जाएगा।
  • हेल्थ सप्लीमेंट व साफ-सफाई से जुड़ी द
  • इनके अतिरिक्त, प्रत्येक बच्चे के भीतर आनंद व उत्साह को बढ़ाने का प्रयास होगा।

इसका प्रभाव क्या रहा?


  • तमिलनाडू के 31 स्कूलों के 28000 छात्रों को लाभ मिल रहा है।
  • 176 नए अध्यापकों की नियुक्ति के साथ 40:1 का अध्यापकः छात्र अनुपात प्राप्त किया गया, जो कि पहले 70:1 था।
  • धीमी गति से सीखने वाले 71 प्रतिशत छात्रों में सुधार (3548 छात्र)। उनमें से कुछ कक्षा के अच्छे छात्रों में गिने जाने लगे हैं।
  • ऐसे छात्र तैयार किये जा रहे हैं, जो नियमित रूप से स्कूल जाते हैं, आत्मविश्वास से युक्त हैं और बेहतर प्रदर्शन दे रहे हैं। उनमें अपनी ओर से समाज के लिए योगदान देने की प्रबल इच्छा है।