संयुक्त राष्ट्र में धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं के सहस्राब्दि विश्व शांति सम्मेलन (मिलेनियम वर्ल्ड पीस समिट) के कार्य सत्र में 31 अगस्त 2000 को सद्गुरु का संबोधन

गरीबी और कार्रवाई की जरूरत

सद्‌गुरु: गरीबी किसी भी समाज के सीने पर एक जख्म की तरह है। यह एक इंसान को सिर्फ एक जैविक अस्तित्व में बदल देती है। किसी को इसका इस्तेमाल दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए नहीं करना चाहिए। अगर हमें वाकई दुनिया के गरीबों और भूखों की चिंता है, अगर हम अहंकार नहीं, बल्कि करुणा के वश में होकर काम करते हैं, तो हमें अपने स्वदेशी धार्मिक प्रणालियों के जरिये लोगों तक पहुंचना चाहिए। गरीबी को खत्म करने के नाम पर हमें संस्कृतियों को जड़ से उखाड़ते हुए उन्हें और गरीब नहीं बना देना चाहिए।

यहां हम गरीबी की बात कर रहे हैं और दूसरे हॉल में पर्यावरण क्षति पर चर्चा हो रही है। यह कौन तय करेगा कि गरीबी क्या है और समृद्धि क्या है? अगर आप समृद्धि के पश्चिमी मानकों पर जाएं और छह अरब लोगों को उस तरह की खुशहाली देना चाहें, तो दुनिया निश्चित तौर पर तबाह हो जाएगी।

हमें हमेशा विकास के आधुनिक सिद्धांतों पर नहीं, बल्कि स्थानीय कलाओं, शिल्प और कौशल को बढ़ावा देते हुए देशी समझ और बुद्धिमानी के साथ गरीबी को दूर करना चाहिए। विकास का आधुनिक सिद्धांत वैश्विक आत्महत्या है।

संयुक्त राष्ट्र में एक ठोस कदम यह उठाया जा सकता है कि दुनिया भर की शिक्षा प्रणालियों में, अलग-अलग धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन को सार्वभौमिक किया जाए। ताकि हर व्यक्ति अपनी आजादी और बुद्धिमानी से अपना तरीका चुन सके।