एक स्वयंसेवक मदुरई में हुए एक मेगाप्रोग्राम का अनुभव साझा कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में सद्गुरु ने 10,000 से अधिक लोगों के लिए ईशा योग कार्यक्रम का आयोजन किया था।

मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक ही दिन में सद्गुरु को 10,000 लोगों को शांभवी में दीक्षित करते देखूंगा। मगर सद्गुरु आखिर सद्गुरु ही हैं।

कार्यक्रम के आखिरी दिन दीक्षा की प्रक्रिया के दौरान मैं कार्यक्रम स्थल पर स्वयंसेवा कर रहा था। आयोजन की चहल-पहल तथा उसके साथ होने वाले सभी कार्यकलापों में व्यस्त होने के बावजूद, मंच पर सद्गुरु द्वारा हजारों लोगों को दीक्षित करने की प्रक्रिया में जो सुंदरता और ऊर्जा थी, उसे न महसूस करना असंभव था।

कार्यक्रम के पहले दिन मैं हैरत में था कि 10,000 प्रतिभागियों के साथ एक खुले मैदान में कक्षा का माहौल और वातावरण कैसे कायम रखा जा सकता है। मगर मेरी चिंता फिजूल थी। सद्गुरु की मौजूदगी अपने आप में पर्याप्त थी। यह साफ जाहिर था कि प्रतिभागियों ने कक्षा के हर क्षण को आत्मसात किया था। मैं देख सकता था कि उनके चलने, बोलने और मुस्कुराने का तरीका कार्यक्रम के ढाई दिनों में रूपांतरित हो चुका था।

अब पीछे मुड़ कर देखता हूं तो मुझे लगता है कि मानवता के इतिहास में इससे भव्य कोई चीज शायद कभी नहीं हुई। सिर्फ उस स्थान पर होना और ऐसे महत्वपूर्ण अवसर में एक भूमिका निभाना मेरे लिए बहुत बड़े सौभाग्य की बात थी।

-एक स्वयंसेवक