सद्गुरु: जबमुझे किसी से कुछ बात करनी होती है, तो मैं बैठते ही बस उसकी ओर देखता हूं और मुझे यह सोचने की जरूरत भी नहीं पड़ती कि मुझे क्या बोलना चाहिए। मैं बस उन्हें अपने एक अंश की तरह देखता हूं। जब आप हर किसी को खुद के रूप में देखते हैं, तो इसमें कोई समस्या या परेशानी नहीं होती। इसमें कोई महानता नहीं है। इसके लिए आपको आत्मविश्वास, संकोच या किसी और चीज की जरूरत नहीं है। आपको किसी और से बात करने के लिए इन चीजों की जरूरत पड़ती है। अगर आप हर किसी को खुद के रूप में देखेंगे, तो आप वही करेंगे, जो किया जाना चाहिए।

‘मैं कभी जवाब नहीं देता’

मैं कभी किसी को जवाब नहीं देता। मैं सिर्फ उनके सवालों को गहरा करता हूं क्योंकि आपको अज्ञानता की शक्ति – न जानने की शक्ति को समझाना एक महत्वपूर्ण चीज है। ‘मैं नहीं जानता’, यह एक जबर्दस्त संभावना है। जानने की इच्छा तभी एक गहन और तीव्र प्रक्रिया बन पाएगी जब आपके शरीर की हर कोशिका चीख-चीख कर कहेगी, ‘मुझे नहीं पता।’ इसलिए मैं कभी उत्तर नहीं देता। लोग शैक्षिक सवाल नहीं पूछते। वे अपने बारे में सवाल पूछते हैं। इसलिए मैं कभी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देता। मैं हमेशा जिज्ञासु को जवाब देता हूं। अगर एक व्यक्ति कोई प्रश्न पूछता है, तो मैं उसे कुछ बोल सकता हूं, अगर कोई और व्यक्ति वही सवाल पूछता है, तो मैं उसे कुछ और बोल सकता हूं क्योंकि मैं कभी प्रश्न को नहीं देखता। मैं हमेशा प्रश्न पूछने वाले को देखता हूं।