सद्‌गुरु: योगिक परंपरा में, शिव को ईश्वर नहीं, बल्कि आदियोगी यानी प्रथम योगी माना जाता है। वह आदिगुरु, पहले गुरु थे, जिनसे योगिक विज्ञान उत्पन्न हुआ। योग का ज्ञान देते समय शिव ने कई अलग-अलग तरीकों से योग संचारित किया, जिसने लोगों के दिमाग में बहुत से भ्रम पैदा किए हैं।

उनकी पहली शिष्य थी, उनकी पत्नी पार्वती। जब उन्होंने पार्वती को ज्ञान देना चाहा, तो उन्होंने एक तरीके से योग सिखाया। पार्वती ने शिव से पूछा, ‘मुझे किस तरह ज्ञान हासिल करना है? उसका तरीका क्या है?’ वह सीखने के लिए उत्सुक थीं और उनके सामने एक शिष्य की तरह बैठीं। वह जटिल प्रक्रियाएं करना चाहती थीं। शिव हंसकर बोले, ‘वह सब छोड़ो। तुम सिर्फ आकर मेरी गोद में बैठ जाओ।’ यह एक स्त्री को अपनी गोद में लाने की एक पुरुष की तरकीब लग सकती है, मगर उन्होंने सिर्फ पार्वती को अपनी गोद में ही नहीं लिया, बल्कि अपना हिस्सा बना लिया।

अगर आप किसी को अपना हिस्सा बनाना चाहते हैं, तो आपको अपना एक हिस्सा त्यागना होगा, वरना ऐसा नहीं हो पाएगा। आप अखंड रहकर किसी को अपना हिस्सा नहीं बना सकते। तो शिव ने पार्वती को अपना हिस्सा बना लिया और पार्वती ने परमज्ञान प्राप्त कर लिया।

मगर जब उनके सात शिष्य आए, जिन्हें आज सप्तऋषियों के रूप में जाना जाता है, तो शिव ने इस तरह ज्ञान दिया मानो परम सत्य लाखों मील दूर हो। जटिल क्रियाओं और बहुत तरह की साधना से असाधारण माहौल प्रकट हुआ।

जब शिव के करीबी मित्र – गण आए, तो उन्होंने न तो उन्हें अपनी गोद में बैठने को कहा, न ही साधना सिखाई। वह बस बोले, ‘बस मेरे साथ रहो, और मेरे नशे में डूबे रहो।’ वे शिव के नशे में इतने चूर हो गए कि वे बस साथ-साथ नाचते रहे और एक साथ रहने लगे, उनके लिए यही योग था।

योग सिखाते समय शिव ने अनेक भाषाएं बोलीं क्योंकि योग का मतलब कभी परम तत्व से नहीं होता। योग का संबंध सिर्फ उस व्यक्ति से होता है, जो अभी यहां बैठा है। क्योंकि ईश्वर का कुछ नहीं किया जा सकता। समाधान की जरूरत आपको है क्योंकि समस्या भी आपको है।

आपके अंदर अपने जीवन के हर छोटे से छोटे पहलू को बड़े दुख या बड़ी खुशी में बदलने की संभावना है – दोनों संभव हैं। थोड़े से अंतर के साथ एक ही क्रियाकलाप आपके अनुभव में बहुत बड़ा अंतर ला सकता है। जिसे आप बहुत बढ़िया प्रेम संबंध मानते हैं, अगर आप अपने अंदर थोड़ी सी अनिच्छा ले आएं, तो वह एक भयानक बलात्कार बन जाता है। इसलिए समाधान की जरूरत आपको है, परम सत्ता को नहीं।

इसीलिए आपको ऊपर देखने की जरूरत नहीं है, आपको बस अपने अंदर झांकने की जरूरत है। योग एक इंसान को संपूर्ण रूप से बेहतर बनाने और अपनी ऊर्जा को सही दिशा देने की प्रक्रिया और प्रणाली है ताकि व्यक्ति अपने भीतर अपनी उच्चतम संभावनाओं को पा सके।