ईशा योग केंद्र में उत्सवों की शुरुआत  12 जुलाई को शाम 6 बजे हुई। उत्सव रात में 12:30 तक चले। उत्सव-श्रृंखला इस प्रकार थी:

सुबह 10:00 बजे से  शाम में 6:00 बजे तक - ब्रह्मचारिओं और आश्रम के निवासियों के द्वारा गुरु पादुका स्रोत गाया गया। सभी को कलाई पर बाँधने के लिए अभय सूत्र बांटे गए।

शाम 6 :00 बजे से 7 :00 बजे तक - आदियोगी की मूर्ति से पर्दा हटाया गया।

शाम 7:00 बजे से 7:45 बजे तक - लिंग भैरवी महाआरती का आयोजन हुआ।

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शाम 7 :45 बजे से रात 10 :00 बजे तक - ब्रह्मचारिओं और आश्रम के निवासियों के द्वारा गुरु पादुका स्रोत गाया गया।

रात 10:00 बजे से 12:30 तक - लोगों ने सद्‌गुरु के साथ सत्संग में भाग लिया।

गुरु पूर्णिमा को ईशा योग केंद्र में बहुत भव्य तरीके से मनाया गया। इस उत्सव में 15,000 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया।

 

सभी लोग - पहली आदियोगी मूर्ति - के पर्दा हटाये जाने के समय मौजूद थे। यह मूर्ति आदियोगी शिव के चेहरे की है। यह चेहरा आनंद से भरा हुआ है, और अनंत को पाने की प्रेरणा देता है। यह मूर्ति ईशा के यू. एस. के टेनेसी में स्थित आश्रम में भेजी जाएगी। इस मूर्ति को खुद सद्‌गुरु ने डिज़ाइन किया है। यह 21 फ़ीट ऊँची है, और इसका वज़न 30 टन से ज्यादा है। इस मूर्ति की गढ़ाई करीब तीन महीने में 15 लोगों की टीम के द्वारा की गयी है। इसी टीम ने आश्रम में ध्यानलिंग के बाहर मौजूद नंदी की मूर्ति भी तैयार की है। यह मूर्ति आदियोगी के आध्यात्मिक योगदान का आभार प्रकट करने के लिए बनाई गयी है। आदियोगी की मूर्ति से पर्दा उठाने का यह उचित अवसर था - क्योंकि इसी दिन आदियोगी शिव ने खुद को गुरु के रूप में बदल दिया था। इसी दिन उन्होंने सप्तऋषियों को योगिक विद्या सिखाना शुरू किया, और वे आदिगुरु कहलाये। उन्हीं के सिखाये गए योग के द्वारा मनुष्य को अपनी सीमाओं से परे जाने के साधन मिले।

मूर्ति से पर्दा हटाये जाने के बाद लिंग भैरवी महाआरती का आयोजन हुआ। रात के भोजन के बाद सबको सद्‌गुरु के साथ सत्संग का अवसर मिला।