नवंबर 2012 में सद्‌गुरु ने गुजरात के औद्योगिक शहर अहमदाबाद में दो दिन बिताए थे। अहमदाबाद मैनेजमेंट असोसियेशन के न्यौते पर उनके सभागृह में सद्‌गुरु ने ईशा योग पर अपनी एक वार्ता दी, जिसमें एक हजार से भी ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। सद्‌गुरु के सुनने के बाद वहां पहुंचे लोगों की योग और अध्यात्म से जुड़ी तमाम शंकाओं का समाधान हुआ और ईशा योग प्रोग्राम करने के लिए अहमदाबाद स्वयंसेवियों के पास लोगों के फोन आने लगे। वहां ईशा योग का पहला कार्यक्रम इसी साल अप्रैल में आयोजित हुआ और 17 से 23 जुलाई तक दूसरे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। पेश है, अहमदाबाद में ईशा योग कार्यक्रम के आयोजन का वर्णन व उस दौरान हुए लोगों के अनुभवनों की कुछ बानगी।

अहमदाबाद में आनंद लहर

पिछले साल अहमदाबाद में सद्‌गुरु की वार्ता ने वहां के लोगों में ईशा योग को लेकर जो प्यास जगाई, वह समय के साथ बढ़ती गई। ईशा योग के कार्यक्रम के आयोजन की मांग वहां से लगातार आने लगी। जनवरी 2013 में ईशा के शिक्षकों ने अहमदाबाद की यात्रा की, ताकि कार्यक्रम आयोजित करने के लिये एक हॉल बुक किया जा सके। इसके लिए आनंद उत्सव नामक एक छोटे से खूबसूरत हॉल को बुक किया गया। यहां पहली बार कार्यक्रम आयोजित हो रहा था इसलिए छोटे हॉल का विचार हुआ। इसके लिए 17 अप्रैल की तारीख भी घोषित कर दी गई। इस कार्यक्रम की घोषणा होते ही इसमें हिस्सा लेने वालों का तांता लगना शुरू हो गया। देखते ही देखते वह छोटा सा हॉल पूरी तरह से भर गया। आखिरकार 64 लोगों ने उस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और जीवन रूपांतरित करने वाले विज्ञान का अनुभव किया।

भाग लेने वालों के अनुभव व उत्साह को देखते हुए ईशा स्वयंसेवियों ने तय किया कि अगला कार्यक्रम जल्द व बड़़का होना चाहिए। इसके लिए स्वयंसेवियों ने उचित स्थान की तलाश शुरू कर दी। इसमें कई चीजें देखनी थीं, मसलन-हॉल का आकार, वहां पहुंचने में आसानी, पार्किंग की व्यवस्था, बड़ी मात्रा में बनने वाले भोजन के लिए जगह वगैरा। सौभाग्य से शहर के बीचों-बीच एक उपयुक्त जगह मिल गई, जहां 17 जुलाई से कार्यक्रम तय हुआ।

फिर दौर शुरू हुआ स्वयंसेवियों के साथ मीटिंग्स का। स्वयंसेवियों ने अपना काम शुरू कर दिया। एक प्रतिभागी जब अपनी व्यवसायिक व्यस्तता के चलते स्वयंसेवा नहीं कर पाया तो उसकी बुर्जुग मां ने कमान संभाल ली। इस 60 वर्षीया मां गीता सहगल ने खुद ऑटो में घूम-घूमकर शहर भर में कार्यक्रम के बैनर लगाए। स्वयंसेवियों ने खुद को तीन से चार के समूहों मे बांटकर हर सुबह अलग-अलग पार्क में जाकर वहां सैर के लिए आने वाले लोगों को निमंत्रण पत्र देने का काम किया। कई लोगों ने अपने जान-पहचान के लोगों को ईमेल व एसएमएस भेजे व लोगों से व्यक्तिगत तौर पर मिलकर भी कार्यक्रम के बारे में बताया। शहर के मुक्चय इलाकों में लगे इश्तहारों व अखबार में आई खबर ने यह संदेश हजारों लोगों तक पहुंचा दिया। खैर, हॉल के आकार के चलते हमें रजिस्ट्रेशन को सीमित करना पड़ा और अंतत: 134 लोगों ने दो समूहों में कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यह अब तक का हिंदी में होने वाला ईशा योग का सबसे बड़ा कार्यक्रम बन गया।

कार्यक्रम में हर तरह के लोग थे, छात्र, गृहणियां, व्यापारी, सॉफ्टवेर इंजीनियर, रिटायर्ड लोग, डॉक्टर आदि। तीसरे दिन से ही प्रतिभागी अपने जीवन में आ रहे बदलाव के बारे में बताने लगे। अब सभी को पूरी उत्सुकता से रविवार को होने वाली शांभवी महामुद्रा की दीक्षा का इंतजार था।

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स्वयंसेवियों के लिये रविवार का दिन चुनौती भरा होने वाला था। इतने सारे लोगों के नाश्ते व भोजन की व्यवस्था का अनुभव किसी को नहीं था। लेकिन जोश की कमी नहीं थी। रविवार को दीक्षा दिवस  की व्यवस्था में अपना योगदान देने के लिए मुंबई, सूरत व वड़ोदरा से स्वयंसेवी आ गए। हॉल के अंदर दीक्षा का कार्यक्रम शुरू हुआ और बाहर रसोईघर में स्वयंसेवियों ने पूरे समर्पण, भक्ति व आनंद के साथ भोजन तैयार करना शुरू कर दिया। गुरु की कृपा से सराबोर वह दिन सभी के लिए यादगार बन गया। कार्यक्रम खत्म होने से पहले ही प्रतिभागी अगले आयोजन के बारे में पूछने लगे। लगता है, आनंद की यह लहर पूरी तीव्रता के साथ गुजरात पहुंची है।

- स्वामी ऋजुडा, ईशा योग टीचर।

मेरा अनुभव और गहरा हुआ

बात उन दिनों की है, जब हम लोग कार्यक्रम से संबंधित परचे अहमदाबाद में बांट रहे थे। करीब दो हफ्ते तक हमने अहमदाबाद के सभी हिस्सों में परचे बांटे और कुछ खास जगहों पर बैनर भी लगाए। इस के दौरान मुझे अलग-अलग तरह के लोगों से मिलने का मौका मिला। मैंने लोगों को ईशा के कार्यक्रम से मिलने वाले शारीरिक और मानसिक फायदों के बारे में समझाया।

रजिस्ट्रेशन टीम को कार्यक्रम के लिए कम से कम 120 लोगों का रजिस्ट्रेशन करने का लक्ष्य दिया गया था। इससे पहले के कार्यकम में 60 लोग थे और इस बार हमारा इरादा इस आंकड़े को दुगना कर देने का था। कार्यक्रम शुरू होने से एक दिन पहले तक हम केवल 60 लोगों का रजिस्ट्रेशन ही कर सके थे। हमें थोड़ी घबराहट सी होने लगी कि हम अपने लक्ष्य को कैसे हासिल कर पाएंगे। हमने अपनी कोशिशें जारी रखी। 17 जुलाई को कार्यक्रम की शुरुआत होनी थी। उस दिन परिचय सत्र था, जो शाम को शुरू होना था। हम दिल थामकर इंतजार कर रहे थे कि पता नहीं कितने लोग आएंगे। जैसे ही समय नजदीक आया, हम यह देखकर हैरान रह गए कि लोगों की भीड़ वहां उमड़ रही है। हॉल खचाखच भर गया और स्वयंसेवियों को बाहर जाना पड़ा।

अंत में 134 प्रतिभागियों के साथ क्लास शुरू हुई। हमें यह जानकार बेहद खुशी हुई कि कहीं भी किसी भी हिंदी क्लास में यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा था। एक स्वयंसेवी के तौर पर क्लास में होने का फायदा यह है कि आपको फिर से एक बार क्लास करने का मौका मिल जाता है। जब भी मैं सद्‌गुरु को किसी विडियो में या स्वामी जी के माध्यम से बोलते हुए सुनता हूं, मुझे कुछ न कुछ नया मिलता है। इस बार मेरा अनुभव और गहरा हो गया। पूरे कार्यक्रम के दौरान हमें हर रोज 4-5 घंटे ही सोने को मिलता और इसके वावजूद पूरा दिन ताजगी भरा होता था। इससे हर रोज आठ घंटे सोने का मेरा भ्रम दूर हुआ। जब यह कार्यक्रम खत्म हुआ तो मैंने लोगों के भीतर एक बड़ा बदलाव देखा। एक प्रतिभागी से विदा लेते वक्त मुझे उसकी आंखों में चमक दिखाई दी। आंखों ही आंखों में उसने मुझे धन्यवाद कहा। मुझे इस बात की संतुष्टि है कि मेरे थोड़े से योगदान ने दूसरे लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाया है।

- रामचंद्रन, स्वयंसेवी, अडानी ग्रूप अहमदाबाद में इंजीनियर

जीने का समूचा तरीका ही बदल गया

जीवन में पहली बार मुझे बेहद सीधी और सहज भाषा में आध्यात्मिक जीवन की ऊंचाइयों को छूने का तरीका जानने को मिला। जीवनशैली के बारे में योग विज्ञान की तकनीकों को समझने का मौका मिला। जीवन के प्रति मेरी कई गलतफहमियां दूर हुईं। मैंने अनुभव किया कि शारीरिक दर्द के रहते हुए भी पीड़ा से दूरी बनाई जा सकती है और आनंदित जीवन जिया जा सकता है। भोजन के प्रति सजगता तो ऐसी पैदा हुई है कि अब जीवन भर वही भोजन करूंगा, जिनकी शरीर को वास्तव में जरूरत है। योगाभ्यास व क्रियाओं ने शरीर में बदलाव लाना शुरू कर दिया है। हमेशा तरोताजा महसूस करता हूं। मन शांत रहता है। दरअसल, जीने का समूचा तरीका ही बदल गया है और वाकई में आत्म-बोध का बीजारोपण हो चुका है।

- के.एस.ओझा, प्रतिभागी, अहमदाबाद।

अपार ऊर्जा का अहसास

ईशा योग प्रोग्राम के रविवार के सत्र में मेरा अनुभव जबरदस्त रहा। मैं उस दिन को भूल नहीं सकता। शांभवी महामुद्रा करने के बाद मुझे अपने शरीर में अपार ऊर्जा का अनुभव हुआ। अब उसका आभ्यास करने के बाद मुझे अपने भीतर एक बड़ा बदलाव महसूस हो रहा है। मेरे विचार बदल गए हैं। मुझे निडरता और साहस का अहसास हो रहा है। आलस मेरी सबसे बड़ी कमजोरी थी, लेकिन शांभवी महामुद्रा का आभ्यास करने के बाद से मेरा आलस खत्म हो चुका है। ऐसे अनुभव के लिए मैं ईशा और सदगुरु का शुक्रगुजार हूं।

- अशोक भागदेव, प्रतिभागी, अहमदाबाद।