ध्यान से महामुद्रा तक

सदगुरु: ध्यान शब्द का प्रयोग कई चीजों के लिये किया जाता है। अगर आप किसी एक चीज़ पर एकाग्र हैं, तो लोग कहते हैं कि आप ध्यान कर रहे हैं। यदि आप एक ही विचार लगातार सोच रहे हैं तो भी लोग इसे ध्यान कहते हैं। जब आप सिर्फ एक ध्वनि, एक मंत्र या किसी और चीज़ का लगातार उच्चारण करते हैं, तो उसे भी ध्यान कहा जाता है। अगर आप मानसिक रूप से अपने आसपास हो रही चीज़ों के प्रति या अपनी शारीरिक व्यवस्था में हो रही चीज़ों के प्रति सजग हैं तो उसे भी ध्यान की संज्ञा दी जाती है।

शाम्भवी इनमें से किसी भी प्रकार में नहीं आती। इसीलिये हम इसे ‘महामुद्रा’ या ‘क्रिया’ कहते हैं। मुद्रा क्या है? मुद्रा शब्द का शाब्दिक अर्थ है - बंद करना। आप कुछ बंद कर देते हैं। पहले के किसी भी समय की तुलना में, आजकल के समय में ऊर्जा का खर्च होना सबसे बड़ी समस्या है। इसका कारण यह है कि मानवता के इतिहास के पहले के किसी भी समय की तुलना में, आज के समय में मनुष्य की संवेदनाओं से जुड़ा सिस्टम कहीं ज्यादा उत्तेजित रहता है। उदाहरण के लिये, अब हम सारी रात तेज़ रोशनी में बैठ सकते हैं। आप की आंखों की व्यवस्था इसके लिये तैयार नहीं की गयी है। वे इस तरह से बनीं हैं कि उन्हें बारह घंटे प्रकाश मिले और बारह घंटे अंधकार या एकदम हल्का प्रकाश। तो अब आपके दृष्टि यंत्रों (आंखों) को पागलों की तरह काम करना पड़ता है ।

इंद्रियों को बहुत ज्तादा उत्तेजित करना: व्यवस्था पर अत्यधिक बोझ

पुराने ज़माने में आपको कोई बड़ी आवाज़ तभी सुनाई देती थी जब कोई शेर दहाड़ता था, या हाथी चिंघाड़ता था या ऐसी ही कोई अन्य, उत्तेजित करने वाली आवाज़ की जाती थी, अन्यथा सब जगह शांति रहती थी। आजकल हर समय भयानक शोरगुल रहता है और आप के कान इस अत्यधिक बोझ को सहन करते रहते हैं। पहले कुछ रंगभरा देखने के लिये आप को सूर्यास्त की राह देखनी पड़ती थी और इससे पहले कि आप परिवार वालों को देखने के लिए बुला सकें, वह गायब हो जाता था। अब तो बस आप को टीवी शुरू करना है, और आप के सामने हर तरह के रंग बहुत ही तेजी से हर समय चकाचौंध करते रहते हैं।

तो इस तरह से अपनी इंद्रियों के द्वारा आप जितना कुछ ग्रहण कर रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं था। जब इन्द्रियाँ इस स्तर पर काम कर रहीं हैं, तो अगर आप बैठ कर ॐ या राम कहते हैं तो ये बस बहुत तेज़ी से, अंतहीन रूप से दोहराना ही हो जायेगा। तो जब तक मनुष्य अपने भीतर एक शक्तिशाली प्रक्रिया न कर रहा हो, वो आज के समय में बिना दिन में सपने देखे आंखें बंद करके बैठ ही नहीं सकता। अगर आप कम से कम 90 दिन से शाम्भवी क्रिया कर रहे हैं, तो सुबह उठने के 30 मिनट बाद आप की कोर्टिसोल को जागृत करने की क्षमता किसी सामान्य व्यक्ति की तुलना में कई गुना ज्यादा होगी

ऊर्जा की बर्बादी को रोकना

यही कारण है कि हमने महामुद्रा की बात की है, क्योंकि ये एक सील है। जैसे ही आप ताला लगा कर सील कर देते हैं तो आप की उर्जायें बाहर जाने की बजाय अपने आप को एक अलग ही दिशा में घुमा देती हैं। अब बात बन जाती है, जो होना चाहिये वो होता है। शायद ही कोई अन्य क्रिया लोगों को पहले ही दिन इस तरह ऊपर उठा देती है, जैसा शांभवी महामुद्रा करती है। इसका कारण ये है कि यदि आप महामुद्रा सही ढंग से लगाते हैं तो आप की अपनी उर्जायें एक ऐसी दिशा में घूम जाती हैं जिसमें वे अपने आप कभी नहीं घूमतीं। अन्यथा आप की इंद्रियों को लगातार मिलने वाले संदेशों के कारण आप की ऊर्जाओं का खर्च ही होता रहता है। ये वैसा ही है कि जब आप किसी चीज़ को लगातार देखते रहते हैं तो कुछ समय बाद आप थक जाते हैं। सिर्फ आप की आँखें ही नहीं थकतीं, आप भी थक जाते हैं।

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क्योंकि जब भी आप किसी चीज़ पर ध्यान देते हैं तो आप की ऊर्जा खर्च होती है। अगर प्रकाश की एक किरण आप की ओर आती है तो आप इसे देख सकें, इसके लिये आप की ऊर्जा खर्च होती है। जब कोई आवाज़ आप की ओर आती है तो उसे सुनने में आप की ऊर्जा लगती है। हम इसको इस तरह से बदलना चाहते हैं कि आप को कुछ मिले, आप का कुछ फायदा हो। आप को 21 मिनट की एक क्रिया कराने के लिये हम आप को मानसिक एवं भावनात्मक रूप से तैयार करने में इसीलिये इतना समय लगाते हैं, कि उससे आप की ग्रहणशीलता एक सही, आवश्यक स्तर की हो जाये।

शाम्भवी के ठोस प्रभाव का वैज्ञानिक सबूत

शाम्भवी पर बहुत सा वैज्ञानिक शोधकार्य हो रहा है।आज का समय ऐसा है कि यदि आप के अंदर कुछ अच्छा हो रहा है तो वह काफ़ी नहीं है। उसकी प्रयोगशाला में जाँच और नाप-तोल होनी चाहिये और उसके अच्छे होने के प्रमाण मिलने चाहिये। तो वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि जो लोग शाम्भवी क्रिया करते हैं उनकी कार्टिसोल ( तनाव को कम करने वाले हार्मोन्स) को सक्रिय करने की क्षमता काफी ज्यादा होती है। बीडीएनएफ, ज्ञान तंतुओं को सुदृढ़ करने वाला तत्व जो मस्तिष्क द्वारा उत्पन्न किया जाता है, वह भी बढ़ता है।

कोर्टिसोल को जागृत करने की क्रिया जागरूकता के अलग-अलग स्तरों को निश्चित करती है। आत्मज्ञान प्राप्ति को भी जागरूक होना कहते हैं। क्यों ? क्या आप पहले से ही जागे हुए नहीं हैं ? नहीं, आप अपने जीवन के हर क्षण में जागरूकता के एक समान स्तर पर नहीं होते। अगर आप कम से कम 90 दिन से शाम्भवी क्रिया कर रहे हैं तो सुबह उठने के 30 मिनट बाद आप की कोर्टिसोल को जागृत करने की क्षमता, किसी सामान्य व्यक्ति की तुलना में कई गुना ज्यादा होगी।

शरीर में सूजन, बढ़ती उम्र का असर, और तनाव को कम करने वाली

नियमित रूप से शाम्भवी क्रिया करने से आप के शरीर में सूजन को कम करने वाले तत्व भी बहुत बढ़ते हैं। और आप का डीएनए बताता है कि 90 दिन तक क्रिया करने के बाद, कोशिकाओं के स्तर पर आप 6.4 वर्ष छोटे हो जाते हैं। जिम्मेदार वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है और इन सब बातों से भी अधिक सुंदर बात ये है कि आप की शांति कई गुना बढ़ जाती है जब कि आप का मस्तिष्क एकदम सक्रिय रहता है। ये शाम्भवी का सबसे अलग आयाम है।

अमेरिका में जो भी अध्ययन किये गये हैं, वे अधिकतर बौद्ध ध्यान प्रक्रियाओं के बारे में हैं, योग के अन्य आयामों के बारे में नहीं। बौद्ध ध्यान प्रक्रियाओं का एक महत्वपूर्ण भाग ये है कि उनसे लोग शांतिपूर्ण, आनंददायक हो जाते हैं पर साथ ही उनके मस्तिष्क की सक्रियता भी कम हो जाती है। शाम्भवी के बारे में जो महत्वपूर्ण बात है, वो ये है कि लोग शांतिपूर्ण, आनंददायक तो हो ही जाते हैं पर साथ ही उनके मस्तिष्क की सक्रियता भी बढ़ जाती है।

अभी आप के साथ केवल एक ही समस्या है, और वह है आप के मस्तिष्क की सक्रियता। अगर आप में से दिमाग़ी गतिविधि को निकाल दिया जाये तो आप एकदम शांत और अद्भुत हो जायेंगे, लेकिन साथ ही साथ किसी भी संभावना से रहित भी हो जायेंगे।

बिना समस्याओं के शांति एवं संभावना

आप का मस्तिष्क कार्यरत होना ही चाहिये। आप ने देखा होगा कि आध्यात्मिकता के नाम पर लोग सामान्य रूप से, बस बैठ कर राम-राम या कोई अन्य मंत्र जपते रहते हैं। आप अगर सिर्फ डिंग-डाँग-डिंग को भी बार-बार जपते रहें तो भी आप शांतिपूर्ण हो जायेंगे। यह बस एक लोरी की तरह है। अगर कोई दूसरा आप के लिये नहीं गा रहा है तो आप स्वयं अपने लिये गा सकते हैं। ये आप के लिये सहायक होगा। बहुत से लोग इस तरह की चालें चलते हैं, जो उन्होंने अचेतन होकर बना ली हैं। वे अपने आपको बार-बार कुछ कहते रहते हैं। फिर ये चाहे कोई तथाकथित पवित्र ध्वनि हो या कोई भी ऊटपटांग शब्द हो, अगर आप इसे बार-बार दोहराते रहेंगे तो आप में कुछ सुस्ती आयेगी ही। इस सुस्ती को अक्सर लोग गलती से शांति समझ लेते हैं।

अभी आप के साथ केवल एक ही समस्या है, और वह है आप के मस्तिष्क की सक्रियता। अगर आप में से दिमाग़ी गतिविधि को निकाल दिया जाये तो आप एकदम शांत और अद्भुत हो जायेंगे, लेकिन साथ ही साथ किसी भी संभावना से रहित भी हो जायेंगे। मूल रूप से मनुष्य की समस्या बस ये है कि वह अपनी संभावनाओं को समस्याओं के रूप में देखता है। अगर आप संभावना को हटा दें, यदि आप का आधा मस्तिष्क ले लिया जाये तो समस्या भी समाप्त हो जाएगी। तो संभावनाओं को बढ़ाना और फिर भी कोई समस्या न होने देना, यही सबसे अलग बात है शांभवी महामुद्रा की।

 

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