सद्‌गुरुमनुष्य होने के कारण हम बहुत सारी अलग-अलग गतिविधियां कर सकते हैं। हमारी गतिविधि चाहे जिस भी तरह की हो, आजकल तो सख्त से सख्त कारोबारी भी सिर्फ लाभ की नहीं बल्कि प्रभाव की भी बात कर रहे हैं। प्रभाव का मतलब यही है कि 'हम किसी के जीवन को छूना चाहते हैं’। चाहे कारोबारी लोग प्रभाव की बात करें, या आप किसी के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाएँ, मूल रूप से, कहीं न कहीं आप किसी के साथ कुछ समय के लिये ही सही, अपने बीच की सीमायें तोड़ना चाहते हैं।

एक योगी होने का अर्थ ये है कि आप अपनी व्यक्तिगतता की सीमाओं को मिटाने के लिये तैयार हैं।

एक योगी होने का अर्थ है - अपने व्यक्तित्व की सीमाओं को मिटाने के लिए तैयार होना। किसी तरह से, आप उन सीमा रेखाओं को मिटा देना चाहते हैं जो आप को ब्रह्मांड से अलग करती हैं। योग का अर्थ है कि आप उस ओर वैज्ञानिक ढंग से जायें। आप को कोई बहुत बड़ी गतिविधि नहीं करनी है, शारीरिक संबंधों में नहीं लगना है, किसी भी चीज़ में नहीं फँसना है। आप अगर जागरूकता से अपनी सीमायें मिटाते हैं, तो यहाँ बैठे बैठे, आपको किसी भी अन्य गतिविधि से अरबों गुना ज्यादा का अनुभव मिलेगा, और ये सब बहुत ही अदभुत होगा। योग का सीधा अर्थ है - अपनी सीमायें मिटाना।

अंधाधुंध प्रयास

इस धरती पर आपको हर तरफ जो मानवीय पागलपन दिखता है, वह सिर्फ इसलिये है क्योंकि मनुष्यों ने कड़ी सीमायें बना कर रखीं हैं। उन्होंने अपनी सीमाओं को इतना ठोस बना रखा है कि अगर दो लोग मिलते हैं, तो वे झगड़ते ही हैं। योग का अर्थ शरीर को तोड़ना, मरोड़ना नहीं है, न ही ये वजन कम करने या तनाव से मुक्ति दिलाने का कार्यक्रम है। इसका अर्थ सिर्फ यह है कि आप 'मैं बनाम ब्रह्मांड' की मूर्खता को समझ गये हैं। यह तो एकदम पागलपन है कि आप उसके साथ मुकाबला करें जो आप के जीवन का स्रोत है। आप जब ये समझ लेते हैं, तभी आप योग की ओर बढ़ते हैं।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे कैसे करते हैं। आप इसे असर कह सकते हैं, सेवा कह सकते हैं, जो चाहे कह सकते हैं। मूल रूप से जब आप समझ जाते हैं कि ये 'मैं बनाम बाकी का ब्रह्मांड' एक बेवकूफी भरा मुकाबला है तो आप अपनी सीमाओं को ढीला करना शुरू कर देते हैं - ये ही योग है। इसका मतलब होता है 'असफल न होने वाले’ तरीके से उस ओर बढ़ना। जब दो लोग प्रेम में पड़ते हैं या शादी करते हैं तो उन्हें लगता है कि वे योग में हैं, उन्होंने अपनी सीमायें तोड़ दी हैं, लेकिन कुछ समय बाद आप देखेंगे कि ये 'असफल न होने वाली’ बात नहीं थी।

क्योंकि आप ने केवल थोड़े समय के लिये ही सीमायें तोड़ी थीं, तो बदले का भाव आयेगा ही। यह ज़रूरी नहीं है कि कुछ समय के बाद दो लोग एक दूसरे के विरुद्ध हो जायें। साथ रहने में थोड़ा आराम हो सकता है। किन्हीं विरल क्षणों में लोग अपनी सीमायें तोड़ सकते हैं। लेकिन बाकी के समय तो ये एक दूसरे से फायदा लेने की ही बात है। चाहे उसका रूप कुछ भी हो, योग का मूलतः ये अर्थ है: पहली बात तो ये है कि आप अपनी स्वयं की सीमाओं को मिटाने के इच्छुक हैं, और दूसरी, अगर आप इसके आनंद को जानते हैं तो फिर आप ज़रूर चाहेंगे कि ये आप के आसपास हर किसी के लिये हो।

जीवन की विडंबना

जीवन की मूलभूत विडंबना यह है कि जीवन के साधन ही हमारे विरुद्ध हो जाते हैं। शरीर और मन के बिना यहाँ रहना संभव नहीं है। शरीर एवं मन जीवन के दो सबसे ज्यादा बुनियादी साधन हैं लेकिन ये दोनों ही मनुष्य के विरुद्ध हो गये हैं। आप इसे पीड़ा, दुःख, रोग या कोई भी नाम दे सकते हैं पर मूल रूप से जीवन के ये दो अति आवश्यक साधन ही आप के विरुद्ध हैं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

यदि आज हमारे पास करने के लिये कुछ महत्वपूर्ण काम है तो ये एक शानदार बात है। कुछ भी नहीं है - वाह, अदभुत ! लेकिन अधिकतर लोगों के लिये ऐसा है कि कुछ हो तो भी एक समस्या है और कुछ न हो तो ज्यादा बड़ी समस्या है।

तो हमारी मूल जिम्मेदारी ये है कि हम इन दो चीजों को ऐसे रखें कि वे हमारे विरुद्ध न हों बल्कि हमें सहयोग दें। अगर शरीर और मन हमारे विरुद्ध हो जाते हैं तो मनुष्य की संभावना कभी भी पूर्ण रूप से साकार नहीं होगी। मान लीजिये आप को सिरदर्द है - कोई बड़ी बात नहीं है, ये कोई कैंसर की बीमारी नहीं है - लेकिन सिरदर्द भी आप के जीवन को बर्बाद कर देगा। या मान लीजिये, आप की नाक हमेशा भरी रहती है - कोई बड़ी बात नहीं, सिर्फ सर्दी है। पहले तो आप कहेंगे, " इसमें क्या बड़ी समस्या है"? लेकिन अगर ये कुछ वर्षों तक जारी रहता है तो आप देखेंगे कि आप का जीवन खराब हो जायेगा, आप कुछ नहीं कर पायेंगे। कोई कैंसर या हृदय रोग के कारण नहीं, सिर्फ सर्दी के कारण भी सब कुछ बिगड़ जायेगा। अगर ये शरीर या मन आप के विरुद्ध हो जाता है, तो आप मनुष्यता की पूर्ण गहराई को, मनुष्य होने के पूर्ण आयाम की खोज नहीं कर पायेंगे।

हर चीज़ को अपने लिये उपयोगी बनाना

कुछ लोगों की एक समस्या है - वे इस तरह से जीते हैं, कि उन्हें लगता है सारा ब्रह्मांड उनके विरुद्ध है। जब आप का दुश्मन ऐसा है, तो फिर आप जी कैसे पायेंगे ? योग का अर्थ ये है कि हर चीज़, शरीर, मन, अस्तित्व, सब कुछ हमारे साथ ही काम करे या बेहतर ये होगा कि हम इन सब के साथ काम करें। अब अगर कुछ होता है तो ये बहुत अच्छा है पर अगर कुछ नहीं होता तो ये वाकई बहुत ही अदभुत है। यदि आज हमारे पास करने के लिये कुछ महत्वपूर्ण काम है तो ये एक शानदार बात है। कुछ भी नहीं है - वाह, अदभुत ! लेकिन अधिकतर लोगों के लिये ऐसा है कि कुछ हो तो एक समस्या है, और कुछ न हो तो ज्यादा बड़ी समस्या है।

योग का अर्थ ये है कि आप हर चीज़ का एक हिस्सा बन जाते हैं - आप का व्यक्तिगत अस्तित्व तो है पर आप की सीमायें ठोस नहीं हैं, वे छेददार हैं। इसके कारण, किसी न किसी रूप में, हम सब कुछ बन गये हैं और हम किसी भी चीज़ के साथ आराम से रह लेते हैं। अगर आप वास्तव में अपनी सीमाओं को खोल देते हैं और यदि अस्तित्व तथा उसका स्रोत आप के साथ काम कर रहे हैं तो जो होना चाहिये वह होगा। यही योग का अर्थ है - हर किसी चीज़ के साथ एक लय में होना। और ये बस इसलिये होता है क्योंकि आप ने अपनी सीमायें ढीली कर दी हैं । जब आप अपनी सीमाओं को छेददार बना देते हैं तो जीवन रिस रिस कर अंदर आता रहता है। फिर आप अपने शरीर और मन के बंदी बन कर नहीं रहते।

 

अधिकतर लोग अपने शरीर और मन के बंदी बन कर रह जाते हैं। उनके शरीर और मन, जीवन को चलाने का एक मंच बनने की बजाय, जेल बन जाते हैं। और जब तक वे अपने शरीर और मन के मुताबिक़ रह पाते हैं, तभी तक उन्हें जीवन ठीक लगता है। वे केवल स्वयं ही ऐसे नहीं रहते बल्कि दूसरों से भी अपेक्षा रखते हैं कि वे भी वैसे ही रहें। योगी अकेले रहते थे, इसलिये नहीं कि उन्हें दूसरों की परवाह नहीं थी, बस इसलिये कि वे अकेले ही मजे में थे। अगर उस समय के समाजों ने रुचि दिखाई होती तो शायद वे लोग भी समाजों में रहते।

लेकिन आज की पीढ़ी के लोग अपने जीवन की हर बात फेसबुक पर डालते हैं और बहुत ही नाराज़ होते हैं अगर कोई उसे न देखे - जैसे, मैं सुबह नाश्ता कर रहा हूँ - चित्र ! मैं आइसक्रीम चाट रहा हूँ - चित्र !!

आज की सब उगल देने वाली पीढ़ी

आज हम इतिहास के उस दौर में हैं, जिसमें आज की पीढ़ी कुछ भी पेट में छुपा कर नहीं रखती, हर छोटी बड़ी बात को लोगों के सामने विज्ञापित करती रहती है। उदाहरण के तौर पर, मेरे पिता की पीढ़ी में, उनके जीवन में जो भी व्यक्तिगत बातें होती थीं, वे किसी दूसरे से नहीं कहते थे, वे चुपचाप स्वयं ही उनको संभाल लेते थे और अपना जीवन चलाते थे। फिर मेरी पीढ़ी आयी। मैं जब विश्वविद्यालय में पढ़ता था तो बस बाहर, बगीचे में बैठा रहता था। रोज ही कोई न कोई आ कर मुझे अपनी पूरी रामकहानी सुनाता था। कोई बहुत रुचिकर बातें नहीं होती थीं, पर फिर भी वे बताना चाहते थे। सब बेवकूफी भरी बातें- कैसे उन्हें उनके माता पिता से तकलीफ थी, उनका शिक्षण, उनकी गरीबी, उनके स्त्री या पुरुष मित्र... अंतहीन बातें। उस समय मैं ये सब सुनता रहता था - सब के पास समस्यायें थीं। ऐसा लगता था कि बस मैं ही कोई अलग किस्म का जीव था जिसकी कोई समस्या नहीं थी।

मेरे पिता की पीढ़ी के लोग रोज डायरी लिखते थे। मेरी पीढ़ी में भी बहुत से लोग डायरी लिखते थे, अपने जीवन की हर बात, पर वे उसे किसी को दिखाना नहीं चाहते थे। अगर गलती से किसी ने उनकी डायरी का मुखपृष्ठ भी खोला तो वे बहुत नाराज़ होते थे, "मुझसे पूछे बिना तुमने मेरी डायरी खोली कैसे"? - ये लगभग एक अपराध जैसा था। लेकिन आज की पीढ़ी के लोग अपने जीवन की हर बात फेसबुक पर डालते हैं और बहुत ही नाराज़ होते हैं अगर कोई उसे न देखे - जैसे, मैं सुबह नाश्ता कर रहा हूँ – इसकी तस्वीर फेसबुक पर होगी! मैं आइसक्रीम चाट रहा हूँ – इसकी भी तस्वीर फेबूक पर होगी! कुछ भी और सब कुछ फेसबुक पर होता है।

एक तरह से आज की पीढ़ी सब कुछ उगल देने वाली पीढ़ी है, जो कुछ भी छुपा कर नहीं रख सकती। इसीलिये, ये समय बदलाव का सबसे अच्छा समय है। ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मैं इस समय स्पष्ट रूप से नहीं कह सकता। अगर हमें इस धरती पर लोगों को वाकई बदलना है तो वे मुख्यतः अगले 15 से अधिकतम 30 वर्षों तक उपलब्ध हैं। उसके बाद उन्हें छूना बहुत मुश्किल होगा। हाँ, हर समय ऐसे लोग होंगे जो बदलने के लिये तैयार होंगे और ऐसे लोग भी होंगे जो तैयार नहीं होंगे, लेकिन सामान्य रूप से इन 15 से 30 वर्षों में बहुत भारी संख्या में लोग बहुत ज्यादा तैयार होंगे। उसके बाद, बहुत सारे कारणों से, ये बहुत मुश्किल होगा।

यह संभावना सिर्फ एक सीमित समय के लिये है

तो हम यहाँ बिल्कुल सही समय पर हैं। अगर हम सही चीजें करें तो अधिकतम लोगों पर असर कर सकते हैं। लेकिन अगर ये सही समय चला गया, ये पीढ़ी चली गयी और सब लोग एक बार फेसबुक और बाकी सब चीजों से हट गये तो फिर ये मुश्किल होगा। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि अगले 25 -30 वर्षों में अगर हम सारी दुनिया में पर्याप्त रूप से, और शक्तिशाली ढंग से, योग को नहीं पहुंचाते, तो दुनिया के 90% से ज्यादा लोग किसी न किसी प्रकार के नशे की लत लगा लेंगे। एक बार जब वे ऐसे नशे में लग जायेंगे तो आप उनसे बात भी नहीं कर सकेंगे। दुनिया बहुत तेजी से उस तरफ जा रही है। आप अगर उन्हें बस यहाँ बैठकर अपनी सीमायें तोड़ने का योग मार्ग नहीं दिखाते, तो वे लोग रासायनिक नशे की ओर पहुंच जायेंगे और ये ठीक नहीं होगा। ये बस कुछ मिनटों तक या फिर कुछ घंटों तक रहता है, उसके बाद ये उन्हें जकड़ लेगा।

योग का पारम्परिक सिस्टम अपने आप में अद्वितीय है। हाँ, ये वैसा मनोरंजक नहीं है जैसे ज़ुम्बा डांस, लेकिन अगर लोग यौगिक प्रक्रियायें सही तरह से अपनाते हैं तो इससे ऐसी बातें संभव होंगीं जिनकी लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

ये सही समय है और पृथ्वी पर ये हमारा समय है। हम अगर प्रतिबद्ध हैं और दृढ़ निश्चयी हैं तो हम इस समय को मानवता के सम्पूर्ण इतिहास का सबसे अच्छा समय बना सकते हैं, क्योंकि हम आज पहले के किसी भी समय की अपेक्षा अधिक सक्षम हैं। कम से कम मनुष्यों के लिये अपना जीवन चलाने का इससे बढ़िया समय पहले कभी नहीं था। पर दुर्भाग्यवश मनुष्यों के सिवा अन्य जीवों के लिये ऐसा नहीं है। इससे पहले कभी, मनुष्यों को इतने ज्यादा आराम के साधन, इतनी ज्यादा सुविधायें उपलब्ध नहीं थीं। अगर हम आज सही चीजें नहीं करते तो बहुत देर हो जायेगी क्योंकि तब परिस्थितियां बहुत अलग होंगीं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि बनावटी बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स) की बढ़त के साथ ही अगले लगभग 70 वर्षों में, 40% से 50% लोग आत्महत्या कर सकते हैं, सिर्फ इसलिये कि उनके पास करने के लिये कुछ नहीं होगा और उन्हें अपना जीवन मूल्यहीन लगेगा।

योग : बदलाव का उत्प्रेरक

तो, योग की शिक्षा देना- ये कोई साधारण काम नहीं है, जो हम कर रहे हैं - ये बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है।शायद इस समय हर कोई इसे न समझ सके लेकिन अगर हम सही काम पर्याप्त तीव्रता के साथ करते रहें तो अगले 5 से 7 वर्षों में, योग इस दुनिया में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो जायेगा! अगर पिछले पांच वर्षों से तुलना करें, तो योग की मांग आज भी बहुत ज्यादा हो गई है। लेकिन एक बात और भी है। जब किसी चीज़ की माँग बढ़ जाती है तो अचानक ही सभी तरह की भ्रष्ट, मिलावटी, बनावटी चीजें सामने आ जाती हैं, क्योंकि ये एक बाज़ार बन जाता है। अगर कोई अच्छी गुणवत्ता वाला उत्पाद न हो तो लोग हर तरह की चीजें बना लेते हैं।

योग का पारम्परिक सिस्टम अपने आप में सबसे अलग है। हाँ, ये वैसा मनोरंजक नहीं है जैसे ज़ुम्बा, लेकिन अगर लोग यौगिक प्रक्रियायें सही तरह से अपनाते हैं तो इससे ऐसी बातें संभव होंगीं जिनकी लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। योग एक अदभुत प्रक्रिया है - ये आप के अस्तित्व की रचना को, उसके संयोजन को बदल सकती है। जब मैंने 12 वर्ष की उम्र में योग की सरल प्रक्रियाओं को करना आरंभ किया तो शारीरिक स्तर पर मेरी हर चीज़ बदल गई। ये बस इस पर निर्भर करता है कि आप इसे कितनी तीव्रता से करते हैं।

योग किसे और कैसे सिखायें?

योग का विज्ञान हर समय उपलब्ध है, पर कौन इसे आगे बढ़ाता है और कैसे, इससे बहुत अंतर पड़ता है। निर्देश दे कर योग सिखाने के अलावा, योग प्रदान करने के और भी कई तरीके हैं। एक प्रकार से देखिये तो, अगर आप ध्यानलिंग के पास गये हों, वहाँ एक योगी विराजमान हैं। उनके पास वो सब कुछ है जो योग में जानने योग्य है। वे बोल नहीं सकते पर इसका अर्थ ये नहीं है कि वे कोई कम असरदार हैं।

मैं जो भी करना चाहता हूँ, उसके लिये मेरे पास सम्पूर्ण ऊर्जा है, लेकिन कई बार शरीर वो नहीं कर पाता जो मैं करना चाहता हूँ। अगर आप इसके लिये तैयार हैं कि आप अपने से परे जा कर भी कुछ करें, तो खास तौर से युवाओं के लिए ये संभावना मौजूद हैं। आप में से जो इस दिशा में आगे जाना चाहते हैं, वे अपनी इच्छा हमें बतायें। हम देखेंगे कि क्या करना है।