32 देशों से 800 से अधिक प्रतिभागी अपने आंतरिक विकास के लिए ईशा योग केंद्र के प्राण-प्रतिष्ठित स्थान में साधनापद कार्यक्रम में 7 महीने बिता रहे हैं।

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अगर हम किसी ऐसी चीज़ में अपना समय और ऊर्जा लगाते हैं, जिसकी हम वाकई मेंपरवाह करते हैं, तो इससे हमेशा बेहतरीन नतीजे मिलते हैं, और जब ये किसी आध्यात्मिक साधक के लिए विकास का मार्ग भी बन जाए तो इससे ज्यादा तृप्ति किसी औरचीज़ से नहीं मिल सकती। सद्‌गुरु द्वारा ध्यान से तैयार की गई सेवा बिलकुल एक ऐसा ही एक अवसर है।

बहुत अच्छे योजनाबद्ध तरीके से ये सुनिश्चित किया जाता है कि हर साधना पद प्रतिभागी को सभी सेवाओं में हिस्सा लेने का अवसर मिले। एक सेवा से दूसरी सेवा में जाने के लिए ज़बरदस्त लचीलेपन की जरूरत होती है, और साधना पद के प्रतिभागियों का ये अनुभव रहा है कि ये प्रक्रिया उनके भीतरी प्रतिरोध को मिटा कर, उनके भीतरी विकास में मदद करती है।

अन्न सेवा

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अन्न का मतलब है भोजन। ईशा योग केंद्र में हर दिन हज़ारों लोगों कोभोजन परोसा जाता हैं। सद्‌गुरु ने ईशा योग केंद्र के भोजन कक्ष का नाम भिक्षा हॉल रखा है, और यहाँ अन्नदान के रूप में दो बार ही भोजन परोसा जाता है। सुबह 10 बजे सुबह का भोजन, और शाम को 7 बजे रात का भोजन।

हो सकता है कि आनंद से भोजन करने को एक दुनियावी काम माना जाए, लेकिन अन्न सेवा के दौरान प्रतिभागियों को ये जानने का मौक़ा मिलता है कि इसे वाकई मेंकैसे किया जाता है। इसमें भोजन को बहुत ही ध्यान से एक विशेष क्रम में परोसा जाता है...और कई प्रतिभागी सलाद से पहले चावल परोसने की गलती कर चुके हैं!

भूखे आध्यात्मिक साधकों को भोजन परोसना सभी को शामिल करने और समर्पण की भावना पैदा करने का सबसे अच्छा तरीका है, और ये हमें जागरूक बनाता है कि सबसे सरल गतिविधि भी कितनी महत्वपूर्ण है। प्रतिभागियों में सेइस गुण को बढ़ाने के लिए साधनापद में सेवा को शामिल किया गया है।

कुछ शारीरिक गतिविधि करते समय ध्यानमय होना बहुत आसान है

“अन्न सेवा, स्वयंसेवा का सबसे अच्छा अनुभव था! सेवा के दौरान शारीरिक रूप से सक्रिय रहना बहुत अच्छा है (क्योंकि आम तौर पर मेरी सेवा ऑफिस में होती है), और मुझे एहसास हुआ कि कोई शारीरिक काम (अन्न सेवा) करते हुए ध्यानमय होना ज्यादा आसान है, कुछ मानसिक (ऑफिस सेवा) करने की तुलना में!” - जेनेविव, 30, कनाडा

अनिच्छा की कई परतें टूट गईं

“मुझे याद है कि मैं लोगों को सिंक में फेंका गया खाना उठाते देखकर सोचती थी – ‘मैं ये नहीं करना चाहती’ कुछ दिनों बाद मैंने खुद ज़बरदस्ती वो काम किया, और मुझे ये देखकर बुत आश्चर्य हुआ कि मुझे उस पूरी प्रक्रिया में आनंद मिला। उसके बाद अगर कोई मुझसे पूछता कि सिंक कौन साफ़ करेगा, तो मैं कहती – ‘मैं उम्मीद कर रही हूँ, कि मुझे करने को कहा जाए।’ अन्न सेवा मेरे जीवन के सबसे ज्यादा तृप्ति प्रदान करने वाले कामों में से एक था, और मैंने उस स्थान में, उन लोगों के साथ, और अपने भीतर बहुत ही अच्छा समय बिताया।”- बियांका, 27, ऑस्ट्रेलिया

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भिक्षा हॉल में भी ध्यानलिंग जैसी पवित्रता है

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“भिक्षा हॉल में मौजूद हर व्यक्ति को इस तरह से भोजन परोसना जैसे की वे खुद सद्‌गुरु हों – इस गतिविधि में मिले आनंद को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। मैंने तय कर लिया है कि जब अगली बार मेरे परिवार जन मुझे ईशा के महत्वपूर्ण स्थानों में ले जाने के लिए कहेंगे, तो मैं उन्हें ध्यानलिंग, लिंग भैरवी, आदियोगी के साथ-साथ भिक्षा हॉल भी ले जाऊंगा। क्योंकि ये वो जगह है, जहां ध्यानलिंग और लिंग भैरवी जितनी ही पवित्रता रखी जाती है।” श्रीकांत, 26, आंध्र प्रेदश

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लिंग सेवा

ध्यानलिंग एक शक्तिशाली ऊर्जा रूप है, और आत्म-ज्ञान और मुक्ति का ऐसा द्वार है, जिसका सान्निध्य पाने के लिए हर दिन हज़ारों भक्त ईशा योग केंद्र आते हैं। बस ध्यानलिंग के घेरे में बैठना ही किसी व्यक्ति को ध्यानमय बनाने के लिए काफी है। लिंग सेवा सद्‌गुरु द्वारा भेंट की गई एक संभावना है जहां आप खुद को इस पवित्र स्थान में समर्पित कर सकते हैं और इसका अनुभव करने की संभावना सभी के लिए उपलब्ध करा सकते हैं।

लिंग सेवा ऐसी चीज़ है जिसका सभी साधनापद प्रतिभागी इंतज़ार करते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनकी नियमित सेवा क्या है – चाहे वे फाइनेंस में हों, आईटी में हों, बागवानी में हों, क़ानून विभाग में हों, ग्राफ़िक डिज़ाइन में हों या अनुवाद करते हों – किसी को भी कभी भी 10 दिन की लिंग सेवा में भेजा जा सकता है! सेवा का ये अवसर इसी तरह से तैयार किया गया है, और विकास करने का अनूठा अवसर है।

ऐसा लगा जैसे मैं घर वापस पहुँच गया हूँ

“मैं हमेशा ध्यानलिंग न जाने का कोई बहाना ढूंढ लेती थी। मैं वहाँ जाकर हमेशा थोड़ी असहज हो जाती थी, क्योंकि मुझे समझ नहीं आता था कि वहाँ क्या हो रहा है। लेकिन लिंग सेवा की प्रक्रिया के दौरान आप खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं, चाहे आपकी पसंद नापसंद कुछ भी हो। आप बस वही करते हैं, जो करने की जरूरत है, ताकि इस जगह के वातावरण को एक विशेष तरीके से बनाए रखा जा सके। समर्पण के इस भाव ने मुझे ध्यानलिंग से एक बिलकुल नए तरीके से जोड़ दिया है। इस स्थान में मुझे ये अनुभव होने लगा है कि मुझे कहीं और जाने की जरूरत नहीं है, कि सब कुछ बस यहीं है। इसे शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल है। ऐसा लगा जैसे मैं अपने भीतर ही अपने घर वापस आ गई हूँ।”- एनाबेल, 22, जर्मनी

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पहली बार मुझे समझ आया कि भक्ति वाकई क्या है

जब शुरू में मुझे पता चला कि मैं ईशा आईटी डिपार्टमेंट में काम करूंगी तो मैं परेशान हो गई, क्योंकि मुझे उन्हीं कंप्यूटरों पर काम करना पड़ता जिनसे मैं सात महीने दूर भागना चाहती थी! तो लिंग सेवा बिलकुल सही समय पर आई। मैं हर तरह के लोगों से मिली, जो हर उम्र के और अलग-अलग पृष्ठभूमियों (बैकग्राउंड) से थे। ध्यानलिंग आने वाले मेहमनों का स्वागत करते हुए मुझे ये समझ आया कि उनके साथ वो थोड़ा सा समय कैसे बिताना चाहिए। उन 10 दिनों तक मैं बहुत जल्दी उठती थी, और देर से सोती थी, और हर समय पूरी तरह तैयार रहती थी, जिससे मेरे सारी परेशानी गायब हो गई। मुझे कभी समझ नहीं आता था कि भक्ति क्या होती है। मैं सोचती थी, ये प्रेम और समर्पण है। पर अब लगता है ये उनसे ऊंची चीज़ है, क्योंकि प्रेम आपको दूसरों से अलग रख सकता है, लेकिन जब मेरे अंदर भक्ति जागृत हुई तो ये मेरे हर काम का गुण बन गई।नैथली,34,कनाडा

मैंने नौ दिन में नौ महीनों से ज्यादा प्रगति की

मेरा रूममेट हर दिन सुबह 3 बजे उठता था और रात में 10 बजे के बद सोता था। ये देखकर मुझे लगा कि लिंग सेवा में शायद बहुत शारीरिक काम होगा। मैंने लिंग सेवा में जाने से पहले मिस्टिक्स म्यूसिंग्स का ध्यानलिंग अध्याय भी पढ़ा जिससे मैं खुद को तैयार कर सकूं। मुझे बिलकुल नहीं पता था, कि इसका शारीरिक काम और मेरी मानसिक बकवास से कोई लेना देना नहीं है। उन नौ दिनों में मैंने एक इन्सान के रूप में इतनी प्रगति की है, जितनी मैं नौ महीनों में या उससे भी ज्यादा समय में नहीं कर पाता। - गुहान, 22, तमिल नाडू, भारत

प्रोग्राम स्वयंसेवा

सबसे अच्छी छुट्टी तब होती है, जब कोई काम नहीं करना पड़ता, लेकिन साधना पद में, लोग अपने सामान्य काम से ब्रेक लेने की सोचते हैं, सिर्फ इसलिए कि वे प्रोग्राम स्वयंसेवकों के रूप में और ज्यादा काम कर सकें। लेकिन कोई बाली में छुट्टी मनाने से ज्यादा ईशा कार्यक्रम में स्वयंसेवा करने की क्यों सोचेगा? जानने के लिए आगे पढ़ें...

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बीएसपी स्वयंसेवा ने मुझे देने का आनंद सिखाया

350 साधनापद प्रतिभागियों के लिए एक भाव स्पंदन कार्यक्रम आयोजित किया गया था, और हम सिर्फ 108 स्वयंसेवक हीथे। हम मुश्किल से एक रात में चार घंटे सो रहे थे, लेकिन मैंने ऐसी शक्तिशाली ऊर्जा का अनुभव पहले कभी नहीं किया है – मेरे अपने भाव स्पंदन कार्यक्रम के दौरान भी नहीं। जब मैं स्वयंसेवा करके बाहर आया तो मैं बदल गया था। मुझे एहसास हुआ कि देने का आनंद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है – जब आपको कृपा का स्पर्श प्राप्त होता है तब आप उस आयाम में जीना चाहते हैं। बाकी सभी चीज़ें अब मुझे बहुत ही तुच्छ लगती हैं। मेरा साधनापद वाकई उसी समय शुरू हुआ।- प्रांशु, 27, महाराष्ट्र, भारत

ईशा योग केंद्र में हमेशा एक के बाद एक कार्यक्रम होते रहते हैं, इसलिए स्वयंसेवा करने और कार्यक्रम का हिस्सा बनने का अवसर आश्रम में रहने वाले सभी लोगों के लिए उपलब्ध होता है। इससे न सिर्फ सद्‌गुरु के रूपांतरण के साधन सभी को उपलब्ध कराने की कोशिशों में मदद मिलती है, बल्कि इससे हम एक शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रक्रिया का हिस्सा भी बन सकते हैं।

डमरू सेवा और संगीत का अर्पण

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अगर आप ये सोचते हैं कि ईशा ऑफिस का वातावरण कॉर्पोरेट ऑफिस की तरह है तो आप तब गलत साबित होंगे जब आपको अंगवस्त्रम पहनें डमरू बजाते स्वयंसेवक नज़र आएँगे। वे दोपहर में पूरे आश्रम में घूमकर ये सुनिश्चित करते हैं कि सभी ऊर्जा से भरपूर और पूरी तरह जागृत हों। इसमें हिस्सा लेने के लिए आपका संगीतकार होना जरुरी नहीं है, बस इच्छुक होने की जरूरत है।

डमरू सेवा का पहला अनुभव

जनरल स्वयंसेवा के दौरान जब मैंने पहली बार सफ़ेद अंगवस्त्र पहनें कुछ स्वयंसेवकों को डफली बजाते देखा, तो मैंने सोचा क्या मुझे कभी ये करने का अवसर मिलेगा। साधनापद शुरू होने के कुछ दिनों बाद हमारी टीम से पूछा गया कि क्या हम डमरू सेवा करना चाहते हैं। मुझे जाने की इच्छा कम थी, क्योंकि बाहर बहुत गर्मी थी, और मैं सोच रहा था कि क्या मैं पूरी गतिविधि पूरी कर पाऊंगा। पर जैसे ही हमने सेवा शुरू की, हम आगे बढ़ते रहे। अचानक से गर्मी का असर खत्म हो गया। ये बहुत सुंदर अनुभव था और हम डिपार्टमेंट में वापस आ गए, और साथ ही हमने ये फैसला किया कि अगले महीने फिर से डमरू सेवा करेंगे। एशिन पॉल, 27, कर्णाटक, भारत

ध्यानलिंग में संगीत बजाते समय रचनात्मकता प्रकट होती है

ध्यानलिंग के लिए एक अर्पण के रूप में संगीत बजाने से मेरे अंदर कई चीज़ें बदल रही हैं। वहाँ की गुम्बद में होने वाले ध्वनि के कम्पन अनूठे हैं और हर स्वर में एक तीव्रता और सुंदरता आ जाती है जिससे संगीत आसानी से प्रवाहित होता है। मेरे लिए, वहाँ संगीत की रचना करना एक बहुत बड़ा आशीर्वाद है, और मेरा बजाने के और वाद्य यंत्र से जुड़ने के तरीके में बहुत बदलाव आया है। जब मैं ध्यानलिंग में बजता हूँ, तो ऐसा कगता है रचनात्मकता प्रकट हो रही हो। उस स्थान की ऊर्जा की वजह से मैं नई तरह का संगीत बजाने का खतरा उठा सकता हूँ, पर साथ ही मैं संतुलन में और अर्पण की स्थिति में रहता हूँ। मैं बस आँखें बंद करके संगीत से जुड़ जाता हूँ, ऐसा लगता है मैं एक खूबसूरत आकाश में चला गया हूँ...मेरा वजूद मिट जाता है। गैब्रिएल,39,ब्राज़ील

माटू मने फार्म में बिताया समय

माटू मने के नाम से जाना जाने वाली ईशा की गोशाला में गायें और बैल पाए जाते हैं। गायों और बैलों की देखभाल करना के लिए सख्ती और कोमलता दोनों की जरूरत है, जिसकी वजह से ये स्थान विकास के लिए एक सटीक स्थान है।

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अपनी सीमाएं टूटती हुई महसूस की मैंने

पशुओं की डॉक्टर होने के वजह से, मुझे माटू मने में सेवा दी गई थी। सेवा की शुरुआत में मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मैं फिर से पशुओं की देखभाल कर सकती थी, लेकिन जैसे जैसे दिन गुजरते गए, मुझे पता चला कि पशुओं के रोगों का उपचार होने के अलावा भी बहुत सी चीज़ें हैं, जैसे उन्हें खाना देना, पानी देना, उनका गोबर उठाना और उसका इस्तेमाल खाद के रूप में करना। और ये गतिविधियाँ करते हुए मुझे धीरे-धीरे एहसास हुआ कि मेरे अंदर ये सभी काम करने के प्रति कितना विरोध था। मैंने कभी कोई काम इतनी जागरूकता से नहीं किया है, और कभी अपने आस-पास की प्रकृति को इतनी सुंदरता से महसूस नहीं किया है। मैं यहाँ तीन महीनों से काम कर रही हूँ, और आज मुड़कर देखने पर लगता है कि मैं वो व्यक्ति नहीं हूँ जो मैं पहले थी। मैं अपनी सेवा से जुड़े सभी लोगों और अपने कोऑर्डिनेटर के प्रति बहुत कृतज्ञ हूँ क्योंकि उन्होंने मुझे एक बिलकुल अलग व्यक्ति बना दिया है।- सोनिका, 24, कर्णाटक, भारत

पृथ्वी प्रेम सेवा

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ये सेवा प्रकृति के साथ होने और खुद को मिट्टी और धूप में डुबोने का खूबसूरत अवसर है। सद्‌गुरु ने इसे इसलिए डिज़ाइन किया था कि लोग पांच तत्वों के साथ गहरा संपर्क बना सकें, जो कि योग का बुनियादी पहलू है।

कल्पना कीजिए, एक इंजिनियर, एक गायक, एक अकाउंटेंट और एक सॉफ्टवेर डेवलपर साधनापद में आते हैं और उनसे घंटों शारीरिक काम कराया जाता है। प्रकृति से जुड़ना और वेल्लिंगिरी पर्वतों के पास होना अपने आप में एक आशीर्वाद है, और इसी वजह से वे पूरे आनंद से ये काम करते हैं।

पृथ्वी प्रेम सेवा में पेड़ लगाना, निराई, फूल उठाना और आसपास के खेतों में जाकर अमरुद, नीबू और सीताफल तोड़ना शामिल है।

जीवन मेरे अपने विचार और भावनाओं से ज्यादा बड़ा बन गया है

जब मुझे बताया गया कि मुझे पृथ्वी प्रेम सेवा करनी है, तो प्रकृति से गहरा लगाव होने की वजह से मैं बहुत उत्साहित था। शुरूआती पहला महीना मुश्किल था क्योंकि हम पूरी तरह से धूप और बारिश में थे और पूरा दिन मिट्टी में बिताते थे। लेकिन जैसे ही शरीर को इसकी आदत पड़ गई, मैं इसका आनंद लेने लगा। जैसा कि सद्‌गुरु कहते हैं, जीवन हमारे चारों तरफ है – लेकिन मैं अपने ही मानसिक नाटक में फंसा होने की वजह से आस-पास का जीवन नहीं देख पा रहा था। अब जब मैं कीड़े, मकोड़ों, सुंदर तितलियों और घास के तिनकों को देखती हूँ तो मैं बहुत ही आनंद और सम्मान के साथ देखती हूँ, इससे मेरा व्यक्तित्व पिघल रहा है।-गौरी, 28, महाराष्ट्र

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इससे मैं सांस्कृतिक रूप से और समृद्ध हो गई

खेतों में हर दिन जाने और हर तरह के लोगों के साथ समय बिताकर मैं सांस्कृतिक तौर पर ज्यादा समृद्ध महसूस करती हूँ, क्योंकि ये दिखाई देता है कि हम सभी इंसान ही हैं, लेकिन हम सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से थोड़े अलग हैं। एक दूसरे के बीच ये अंतर देखना और भारतीय और अन्य देशों के लोगों से दोस्ती करना अपने आप में एक आनंद है।–मिकुस, 32, लाटविया

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साधनापद की दिनचर्या काफी मुश्किल भीसाबित हो सकती है। अगले लेख में, हम कुछ टिप्स साझा करेंगे जो साधनापद में बहुत मददगार साबित हो सकते हैं।

सम्पादक की टिपण्णी: साधनापद के बारे में ज्यादा जानने और अगले साधनापद के लिए रजिस्टर करने के लिए यहाँ जाएं:here.