सद्‌गुरुहम अपने जीवन में बहुत सी चीजें जोड़ते रहते हैं, उन्हें पकड़ कर रखते हैं कि जीवन आसान बन जाए। आज के स्पॉट में सद्‌गुरु बता रहे हैं कि ऐसा न करके बस ये सझने की कोशिश करें कि आप जीवन हैं, और बाकी सब कुछ सहायक चीजें हैं।

मेल

आह! कितना आनंद है
यह जानने में कि
आपका अपना शरीर
बदल जाएगा एक दिन
हरी-हरी पत्तियों और लाल-लाल फूल में

समय बीतने के साथ
नहीं रह जाएगा कोई अंतरांगी सबूत
हमारी भौतिक मौजूदगी का।
जिस घास पर हम चलते हैं
वह, हम खुद हैं।

हर पत्ता, हर फूल
हम खुद हैं।
सिर्फ चेतना के स्तर पर
जाना जा सकता है
इस मेल को,
है इसी मेल में
सार - जीवन के हर रूप का।

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हाल ही में मेरा एक बेहद निकट का व्यक्ति गुजर गया। उस समय मैं अमेरिका स्थित ईशा केंद्र में था, मैं जीवन से भरी उस हैरतअंगेज घाटी को देख रहा था, और मैं उसके गुजरने के बारे में जागरूक हुआ। तभी मेरे भीतर से दो कविताएं फूट पड़ीं। उनमें से एक आपके लिए यहां पेश है। अगर मांस और रक्त में रहते हुए इस मेल को आप जान पाते हैं और जब यह ज्ञान आपके अनुभव में पूर्ण होता है तो उसे ही आम तौर पर आत्मज्ञान कहा जाता है। लेकिन चलिए, हम लोग मुक्ति की बात नहीं करते - बहुत सारे लोगों के लिए खुद को स्वस्थ, सेहतमंद, शांत और खुश रखना भी खुद में एक बड़ा मुद्दा होता है। कुछ लोग अपने इन सवालों का जवाब दवाओं, शराब व ड्रग्स में ढूंढने की कोशिश करते हैं तो बाकी लोग अलग-अलग तरीकों को आजमाकर खुश और शांत होने की कोशिशों में लगे रहते हैं।

अपनी एक अभिव्यक्ति में शंकरन पिल्लै एक बेहद गुस्सैल पति था, जो अपनी पत्नी को खूब भला बुरा कहता रहता था। एक बार वह ऐसे ही अपनी पत्नी को गालियां दे रहा था कि अचानक वह बीच में रुका और पत्नी से बोला, ‘मैं तुम पर हमेशा चिल्लाता और डांटता रहता हूं, लेकिन तुम मुझ पर कभी नहीं चिल्लाती। तुम हमेशा शांत रहती हो। क्या तुम चुपचार ईशा योग करती रहती हो? आखिर इतनी शांत रहने का तरीका क्या है?’ पत्नी ने उसकी तरफ देखा और कहा, ‘मैंने बस अभी टॉयलेट साफ किया है।’ शंकरन ने पूछा, ‘आखिर शांत रहने और टॉयलेट साफ करने का आपस में क्या संबंध है?’ पत्नी ने जवाब दिया, ‘मैंने उसके लिए तुम्हारे टूथ ब्रश का इस्तेमाल किया।’

जब तक आप साइक्लोजिकल एक्टिविटीज या मानसिक हलचल में खोए हुए हैं, तब तक शांत रहने और खुश रहने के लिए खूब कोशिश करनी पड़ती है। इंसान अपना मानसिक संरचना को संभाल पाने में नाकाम क्यों रहता है, इसकी एक सीधी सी वजह यह है कि वह दूसरे से बेहतर होना चाहता है। एक बार शंकरन पिल्लै अपने एक दोस्त के साथ वेलिंगिरी पहाड़ों में ट्रेकिंग कर रहे थे। तभी उनकी निगाह एक शेर पर पड़ी, जो उन लोगों की तरफ भूखी निगाहों से देख रहा था। शंकरन पिल्लै ने अपने पास से दौड़ने वाले जूतों की एक नई जोड़ी निकाली और उन्हें पहनने लगे। दोस्त ने कहा, ‘बेवकूफ इंसान, दौड़ो। तुम ये जूते क्यों पहन रहे हो? क्या तुम्हें लगता है कि इससे तुम शेर से ज्यादा तेज भाग लोगे?’ शंकरन पिल्लै ने शांत भाव से जवाब दिया, ‘मुझे शेर से तेज नहीं भागना है, मुझे तो बस तुमसे तेज भागना है।’ दरअसल, शेर कभी भी दो लोगों को एक साथ नहीं खाता।

खुद को जीवन की तरह महसूस करना

बहुत सारे लोगों का यही काम करने का तरीका बन गया है, वे बस किसी तरह अपनी बगल के इंसान सेे कुछ बेहतर करना चाहते हैं। इसी चीज को हम बदलने की कोशिश कर रहे हैं।

पूरी सृष्टि में इंसान ही ऐसा जीव है, जो निराश व अवसादग्रस्त दिखाई देता है- आखिर क्यों? क्योंकि वह खुद को जीवन की तरह महसूस नहीं करता। इंसान बस विचारों, भावनाओं, सोच, पूर्वाग्रहों और मूर्खताओं की एक पोटली होता है।
आप दूसरों की ओर देखें तक नहीं कि वह कैसे और कहां दौड़ रहा है। बस इतना कीजिए कि आप जो भी कीजिए, उसमें अपना सबसे बेहतर देने की कोशिश कीजिए, आप अपनी पूरी ताकत से दौड़ लगाइए। फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरा आपसे बेहतर दौड़ रहा है या खराब दौड़ रहा है। असली चीज है कि आप खुद को जीवन की तरह महसूस कीजिए। जीवन की प्रकृति चिंता, अवरोधों, दिक्कतों, असंतोष, गुस्से या किसी और चीज में नही है। अगर आप जीवन के किसी और रूप पर नजर डालें, फिर चाहे वह घास का तिनका हो या कोई पेड़ या फिर कोई पशु - अगर उसकी बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाएं तो उसके भीतर जीवन पूरे उत्साह में दिखाई देता है। पूरी सृष्टि में इंसान ही ऐसा जीव है, जो निराश व अवसादग्रस्त दिखाई देता है- आखिर क्यों? क्योंकि वह खुद को जीवन की तरह महसूस नहीं करता। इंसान बस विचारों, भावनाओं, सोच, पूर्वाग्रहों और मूर्खताओं की एक पोटली होता है।

खुद को वाकई जीवन की तरह महसूस करने का एकमात्र तरीका है कि आप खुद को अपनी साइक्लोजिकल ऐक्टिविटीज या मानसिक हलचल से दूर कर लीजिए। आदियोगी ने परम संभावना तक पहुँचने के लिए जो एक सौ बारह तरीके दिए थे, वे सब आपको उस जगह पर ले जाते हैं, जहां आपका मन हर ओर भटकने की बजाय एक उद्देश्यूर्ण तरीके से काम करने लगता है। शराब पीना, गोलियां खाना या फिर आंखें बंद कर एक खास तरीके से सांस लेने जैसी सारी चीजें, वे कोशिशें हैं जहां आपका मन आपको कुछ स्पेस दे। अगर आप इन चीजों का स्थायी समाधान चाहते हैं तो आपको जो आप वास्तव में हैं और जो आप नहीं हैं, उसमें एक स्पष्ट दूरी बनानी होगी। जो भी चीजें आप नहीं हैं, वे आपके साथ बस थोड़े से समय के लिए होती हैं, जैसे - आपका शरीर, आपके विचार, आपका परिवार, आपके मित्र, आपका काम, आपकी संपत्ति, और ऐसी सारी चीजें।

आप सिर्फ जीवन हैं कुछ और नहीं

इंसान को अगर कोई चीज सबसे ज्यादा उलझाए रखती है तो वह है उसका अपना शरीर और मन। अब आप इन दोनों चीजों को कैसे संभालते हैं, इसी से तय होता है कि आप इनसे तकलीफ झेलेंगे, या आप एक सटीक जीवन जीएंगे।

इस चाहत को शांत करने का एक ही तरीका है कि या तो जीवन न होने का दिखावा किया जाए या फिर आत्म-ज्ञान हासिल कर लिया जाए। दोनों का नतीजा एक ही होगा, लेकिन दोनों की दुनिया अलग होगी।
एक जीवन के रूप में जीने के लिए कोई खास मेहनत नहीं लगती। मैं तो बस आपको याद दिला रहा हूं कि आप एक जीवन हैं। लोग अपनी समस्याओं से बचने के लिए खुद को शराब, ड्रग्स के नशे में, बहुत ज्यादा खाने में या किसी दूसरी चीज में डुबो लेते हैं, क्योंकि कहीं न कहीं वे इस नतीजे पर पहुँचने लगते हैं कि जीवन के रूप में जीने में समाधान नहीं है। लेकिन यह किसी तरह का समाधान नहीं, बल्कि यह तो छल है। मैं चाहता हूं कि आपमें यह चेतना आए कि आप एक जीवन हैं। यही वजह है कि मैं आपको लगातार याद दिलाता रहता हूं कि आप एक दिन मरने वाले हैं।

आप एक मशीनी जीव की तरह न जिएं, जो चल सकता है, बात कर सकता है या वे सब काम कर सकता है जो आप कर सकते हैं, लेकिन बस जीवंत ही नहीं रह सकता। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करते हैं, लेकिन जो भी करते हैं, उससे साबित होता है कि आप एक जीवन हैं। यहां तक कि आपका मरना भी साबित करता है कि आप एक जीवन थे, वर्ना आप मर ही नहीं सकते थे। आप इस सच्चाई से भाग ही नहीं सकते, न तो जीवन की किसी ट्रिक से और न ही मौत से। यह कोई जाल नहीं है, बल्कि यह एक जबरदस्त संभावना है। आप जिस धरती पर चलते हैं, उसमें जीवन बनने की चाहत होती है। अगर उसमें यह चाह नहीं होती तो कभी भी यह धरती एक पेड़ के रूप में खड़ी नहीं होती। बुनियादी रूप से इस सृष्टि या ब्रम्हांड की हर चीज जीवन का रूप लेने की चाह रखती है, बल्कि एक उंचे स्तर के जीवन का रूप लेना चाहती है। इस चाहत को शांत करने का एक ही तरीका है कि या तो जीवन न होने का दिखावा किया जाए या फिर आत्म-ज्ञान हासिल कर लिया जाए। दोनों का नतीजा एक ही होगा, लेकिन दोनों की दुनिया अलग होगी।

डिप्रेशन से निकलने का मार्ग

सबसे आसान व बुनियादी चीज जो आप खुद के साथ और अपने आसपास के लोगों के साथ कर सकते हैं, वह है एक संपूर्ण जीवन बनना। इसके लिए आपको किसी खास तरह से रहने की जरूरत नहीं है।

हो सकता है कि आपको सुनने में यह बुरा लगे, लेकिन जब तक कि आप यह महसूस नहीं करते कि डिप्रेशन आपका ही पैदा किया रोग है, तब तक उसमें से निकलने का कोई रास्ता नहीं है।
आप जीवन हैं, बाकी सारी चीजें - आपका शरीर व मन भी, जीवन की सहायक चीजें हैं। सहायक चीजें जीवन को मदद और विस्तार देने के लिए हैं, न कि जीवन पर कब्जा जमाने के लिए। अगर आप अपने जीवन के हर पल में सजग हैं, कि हर चीज जो आपके पास है, चाहे वह विचार हों या भावनाएं, वे बस केवल सहायक चीज हैं, तब डिप्रेशन का सवाल ही नहीं उठेगा। लेकिन कुछ डिप्रेशन लड़ाके हैं, उन्हें लगता है कि मुझे यह नहीं कहना चाहिए। यहां ऐसे बहुत से लोग हैं, जो इंसानों की बीमारी और उनकी समस्याओं के बारे में बात करके जीवन यापन ही नहीं कर रहेए बल्कि ढेर सारा पैसा कमा रहे हैं। ऐसे लोगों को यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा कि आप समस्याओं के मूल में जाकर उनके हल की बात करें। हो सकता है कि आपको सुनने में यह बुरा लगे, लेकिन जब तक कि आप यह महसूस नहीं करते कि डिप्रेशन आपका ही पैदा किया रोग है, तब तक उसमें से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। बस दवा कंपनियां तो आपकी उस पीड़ा को सेलिब्रेट करती हैं।

जो आप नहीं हैं, उस पर से पकड़ ढीली करें

इसके लिए आपको बस इतना करना होगा कि आपको इसमें फर्क करना होगा कि क्या आप हैं और क्या आप नहीं हैं? जो आप नहीं है, उसे आपको एक खास तरह से लेना होगा, जो कि उस वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करेगा।

कल्पना कीजिए कि कल आप मरने वाले हैं। जब आप मरेंगे तो आपको हर हाल में हर चीज पर से अपनी पकड़ छोड़नी ही होगी।
लेकिन जिस चीज को भी आप पकड़ कर रखे हुए हैं, अगर आप जरुरत पड़ने पर उस पकड़ को ढीली नहीं करेंगे, तब तक आप जीवन में समस्याओं की ओर बढ़ते रहेंगे। पूरी चेतना के साथ इस पर गौर करें कि आप जीवन में चीजों को किस तरह से पकड़े हुए हैं। आपको कोई भी चीज बाहरी तौर पर छोड़ने की जरूरत नहीं है। सवाल यह है कि क्या आप अपने भीतर से अपनी पकड़ को ढीली करना चाहते हैं? कल्पना कीजिए कि कल आप मरने वाले हैं। जब आप मरेंगे तो आपको हर हाल में हर चीज पर से अपनी पकड़ छोड़नी ही होगी। आपने शायद फिल्मों में मरने के ऐसे कई नाटकीय दृश्य देखें होंगे, जहां कोई मरता हुआ किरदार अपनी पकड़ ढीली छोड़ता है और जिदंगी खत्म हो जाती है। अगर आप जीवन जीते हुए अपने शरीर, विचारों, मन व भावनाओं से अपनी पकड़ छोड़ दें तो आपका जीवन उत्साह से खिल उठेगा। यह कुछ ऐसा ही है, मानो कोई गोल्फ खेल रहा हो या साइकिल चला रहा हो- अगर आप इसे कस कर पकड़े रहेंगे तो यह कहीं नहीं जाएगा। अगर आप अपनी पकड़ ढीली छोड़ देंगे तो जीवन का सफर आसान हो जाएगा।