रविवार को मकर संक्रांति थी। दुनिया के इस हिस्से में यह एक बेहद महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाई जाती है। सक्रांति का शाब्दिक अर्थ है - गति या चाल। जीवन के रूप में हम जिसे भी जानते हैं, उसमें गति निहित है। सौभाग्य से हमसे पहले जो इस दुनिया में आए वह चले गए और जो लोग हमारे बाद आने वाले हैं, वे हमारे जाने का इंतजार कर रहे हैं - इस बारे में अपने मन में कोई शक मत रखिए। यह पृथ्वी भी गतिशील है, इसी गतिशीलता का नतीजा है कि इससे जीवन उपजा है। अगर यह स्थिर होती तो इस पर जीवन होना संभव ही नहीं था। इसलिए इस सृष्टि में गतिशीतला नामक कोई चीज है, जिसमें हर प्राणी शामिल है, लेकिन अगर सृष्टि में गति है तो उस गति का विराम भी होना चाहिए। दरअसल, निश्चतला या स्थिरता की कोख से ही गति का जन्म होता है। जिसने अपने जीवन की निश्चलता का अहसास न किया हो, जिसने अपने अस्तित्व की स्थिरता को महसूस न किया हो, जिसने अपने भीतर और बाहर की निश्चलता को जाना या महसूसा न किया हो वह गति के चक्करों में पूरी तरह से खो जाएगा।

गतिशीलता एक निश्चित बिंदु या सीमा तक ही सुखद लगती है। यह ग्रह पृथ्वी बेहद सौम्य और खूबसूरत तरीके से घूम रही है - इसी वजह से मौसम बदलते हैं। कल को अगर यह अपनी गति बढ़ा दे और थोड़ा तेजी से घूमने लगे तो हमारा संतुलित दिमाग पूरी तरह से असंतुलित हो उठेगा और हर चीज नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। इसलिए गतिशीलता एक सीमा तक ही सुखद और अच्छी लगती है। एक बार अगर यह अपनी सीमा से बाहर निकल जाती है तो गतिशीलता यंत्रणा बन जाती है।

मकर संक्रांति वह दिन है, जब राशिचक्र में महत्वपूर्ण बदलाव होता है। इस गतिशीलता से जो नए बदलाव होते हैं, वे हमें पृथ्वी पर दिखाई देते और महसूस होते हैं। यूं तो साल भर में कई संक्रांतियां होती हैं, लेकिन दो संक्रातियों का विशेष महत्व है, पहली मकर संक्रांति और दूसरी इससे बिल्कुल उलट जून महीने में होने वाली मेष संक्रांति। इन दोनों के बीच में कई संक्रांतियां होती हैं, हर बार जब राशि चक्र बदलता है तो इसे संक्रांति कहा जाता है, जिसका आशय पृथ्वी की गतिशीलता को दर्शाना और हमें यह बताना है कि हमारा जीवन इसी गतिशीलता पर आधारित और पोषित है। अगर यह गतिशीलता रुक जाए तो हमारे जीवन से जुड़ा सब कुछ रुक जाएगा। हर 22 दिसंबर को अयनांत होता है, सूर्य के संदर्भ में जिसका मतलब होता है कि इस दिन पृथ्वी की गति या झुकाव अपनी चरमावस्था पर पहुंच जाता है। फिर इस दिन के बाद से गति उत्तर की ओर बढ़ने लगती है। इसके बाद धरती पर चीजें बदलनी शुरू हो जाती हैं। मकर संक्रांति के बाद से जाड़ा धीरे-धारे कम होने लगता है।

इस पृथ्वी से हम जो पाते हैं, उस संदर्भ में भी इसकी गतिशीलता भी काफी महत्व रखती है। एक समय ऐसा था, जब इंसान केवल वही खा सकता था, जो धरती उसे देती थी। इसके बाद हमने सीखा कि कैसे हम इस धरती से वो हासिल कर सकते हैं, जो हम चाहते हैं, यह प्रक्रिया कृषि कहलाई। जह हम शिकार करते थे या भोजन तलाशा और इकठ्ठा किया करते थे तो हमें वही मिलता था, जो वहां उपलब्ध होता था। यह कुछ ऐसा ही है कि जब आप अबोध शिशु होते हैं तो आपकी मां आपको जो देती है, बस आप वही खाते हैं। जब आप बच्चे होते हैं तो आप अपनी मनचाही चीजों की मांगने लगते हैं। फिर जब हम कुछ बड़े हो गए और वह मांगने और पाने लगे जो हम चाहते थे, लेकिन अभी भी आपको अपना मनचाहा सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना या जिस हद तक मां वह आपको देना चाहती है या देने की इच्छुक है। अगर आप अपनी मांग को इस हद से से ज्यादा खींचने की कोशिश करेंगे तो आपको वो सारी चीजें तो मिलेगी नहीं, हां कुछ और जरूर मिल सकता है। यही औद्योगिकीकरण कहलाता है। कृषि वह है, जिसमें आप अपनी मां से अपनी मनचाही देने की खुशामद करते हैं, जबकि औद्योगिकरण में आप अपनी मांगों से उसे विदीर्ण या छिन्न-भिन्न कर देते हैं। आप इसे अन्यथा न लें, मैं किसी चीज के खिलाफ नहीं बोल रहा हूं। मैं चाहता हूं कि आप उस तरीके या प्रक्रिया को समझें, जिससे हमारा दिमाग या इंसानी गतिविधियां एक स्तर से दूसरे स्तर तक संचारित हो रही हैं।

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यह दिन हमें याद यह दिलाता है कि आज हम जो कुछ भी हैं, वो सब इसी धरती से ही लिया हुआ है। मैं देखता हूं कि आज दुनिया में हर तरफ लोग देने की बात कर रहे हैं। मुझे समझ नहीं आता कि वे कहां से ये सब दे रहे हैं। अगर आप कुछ कर सकते हैं तो वह है सिर्फ लेना- अब लेने को आप बेहद सौम्य या सभ्य तरीके से भी ले सकते हैं या फिर आप छीन सकते हैं। क्या आप इस दुनिया में अपनी संपत्ति के साथ कहीं और से आए हैं? आपके पास देने के लिए है क्या? आप सिर्फ ले सकते हैं। हर चीज आपको मिली हुई है। उसे समझदारी से ग्रहण करें, बस इतना ही काफी है।

मकर संक्रांति को फसलों से जुड़े त्यौहार या पर्व के रूप में भी जाना व पहचाना जाता है। दरअसल, यही वह समय है, जब फसल तैयार हो चुकी है और हम उसी की खुशी व उत्सव मना रहे हैं। इस दिन हम हर उस चीज का आभार दर्शाते हैं, जिसने खेती करने व फसल उगाने में मदद की है। कृषि से जुड़े पशुओं का खेती में एक बड़ा योगदान होता है, इसलिए मकर संक्रांति का अगला दिन उनके लिए होता है। सोमवार को मट्टू पोंगल था। पहला दिन धरती का होता है, दूसरा दिन हमारा होता है और तीसरा दिन जानवरों व मवेशियों का। देखिए, उनकी जगह हमसे ऊपर इसलिए रखी गई है, क्योंकि हमारा अस्तित्व उन्हीं की वजह से है। वे हमारी वजह से नहीं हैं, हम उनकी वजह से हैं। अगर हम धरती पर नहीं होते तो वे सब आजाद और खुश होते। लेकिन वो अगर यहां नहीं होते तो हम जीवित नहीं होते।

इसलिए यह फसलों का त्यौहार है, यह गतिशीलता के महत्व को रेखांकित करने का त्यौहार है, गतिशीलता के जश्न के लिए, गतिशीलता जो जीवन बनी, गतिशीलता जो जीवन की प्रक्रिया और जीवन का आदि और अंत बनी। और उसी के साथ ‘शंकर’ शब्द आपको याद दिलाता है कि इस सबके पीछे जो है, वह है- शिव, जो पूर्ण निश्चल या अचल है, निश्चलता ही गति का आधार और मूल है। अगर सूर्य भी घूमने लगे तो हम मुसीबत में आ जाएंगे। वह गतिशील न होकर एक जगह अचल रहता है, इसलिए हर चीज की गतिशीलता अपने रास्ते पर रहती है। लेकिन उसकी स्थिरता या अचलता सापेक्षिक है, क्योंकि हो सकता है कि पूरा सौर मंडल गतिशील हो या पूरी आकाशगंगा गतिशील हो। अतः इससे परे जो अंतरिक्ष है इन सबको अपने में समाहित किए या थामे हुए है, वह भी पूर्ण रूप से स्थिर या अचल है।

जब कोई इंसान अपने भीतर की स्थिरता से संबंध बनाने की कोशिश करता है, तभी वह गतिशीलता का आनंद जान सकता है, अन्यथा मनुष्य जीवन की गतिशीलता से घबरा जाता है। उनके जीवन में आना वाला हर बदलाव या परिवर्तन उनके लिए दुख या पीड़ा का कारण बनता है। इन दिनों, आज का तथाकथित आधुनिक जीवन ही ऐसा है, जिसके हर बदलाव में आपको पीड़ित होना तय है। जहां बचपन एक तनाव है, किशोरावस्था या युवावस्था उससे बड़ा दुख है, प्रौढ़ावस्था असहनीय है, जबकि बुढ़ापा डरा और सकुचा हुआ और मृत्यु या अंत किसी घोर आतंक या खौफ से कम नहीं। जीवन के हर स्तर या चरण पर कुछ न कुछ समस्या है और वह इसलिए, क्योंकि इंसान को बदलाव से दिक्कत है। दरअसल, वह समझना ही नहीं चाहता कि जीवन की असली प्रकृति ही बदलाव है। आप गतिशीलता का तभी आनंद ले पाएंगे या जश्न मना पाएंगे, जब आपका एक पैर स्थिरता में जमा होगा। अगर आपको स्थिरता का अहसास है, तो गतिशीलता आपके लिए सुखद अनुभूति होगी। अगर आपको पता ही नहीं कि स्थिरता क्या है या आपका उससे कोई संबंध ही नहीं है तो फिर गतिशीलता आपको हैरान कर सकती है।

लोग इस गति के पीछे की चीजों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। कभी तारों को देखकर तो कभी अपने हाथों की लकीरों में और सभी प्रकार की आकृतियों के संकेतों को देखकर यहां तक कि चाय की पत्तियों में भी लोग किसी तरह से अपने जीवन की गतियों और चाल को समझना चाहते हैं। गतिशीलता के साथ यह संघर्ष, गतिशीलता के बारे में पीड़ा व उन्‍माद वगैरह इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि लोगों को स्थिरता का तनिक भी अनुभव नहीं है। अगर आपको स्थिरता का अहसास होगा तो गति आपको परेशान नहीं करेगी। यह वो चीज है, जो आपमें एक निश्चित लय पैदा करती है। हर लय की अपनी एक शुरुआत और एक अंत होता है, इसी तरह से हर गति की एक शुरुआत और एक अंत है। गति का अर्थ ही है, जो बदल सके या चलायमान हो। जबकि निश्‍चलता का मतलब है जो हमेशा रहे। गतिशीलता का अर्थ है बाध्यता और निश्‍चलता का मतलब है चेतना।

मकर संक्रांति का पर्व यह याद दिलाता है कि गतिशीलता का उत्सव मनाना तभी संभव है, जब आपको अपने भीतर निश्चतला का अहसास हो।

प्रेम व प्रसाद