इस बार के स्पॉट में सद्गुरु बढ़ते तापमानों के बारे में बात कर रहे हैं। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि हमारी पीढ़ी इतनी सक्षम है, कि अगर क्रोध और द्वेष के रूप में हमारे भीतरी तापमान बढ़ने लगे तो विध्वंस हो सकता है - इसीलिए भीतरी संतुलन का महत्व आज इतना बढ़ गया है...

सद्‌गुरु सद्‌गुरु : भारत में गर्मियों का आगमन हो गया है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि दुनिया में गर्मी बढ़ने जा रही है और इसका मतलब सिर्फ तापमान से नहीं है। जब दुनिया में सब कुछ बढ़ रहा हो, तो हमारे जीवन में सबसे अहम चीज होती है, संतुलन। यह जानना बहुत जरूरी है कि चाहे बाहरी हालात कुछ भी हों, हम स्थिर, केंद्रित, शांत और संतुलित कैसे रह सकते हैं। विज्ञान और तकनीक ने हमें निर्माण और विनाश की ऐसी क्षमता दी है, जैसी पहले कभी नहीं थी। अगर हम इस क्षमता को एक रचनात्मक संभावना में बदलना चाहते हैं, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम किस तरह के इंसान बनाते हैं। अब तक, हम अपने आस-पास चीजों को बनाने में व्यस्त रहे हैं। पिछले सौ सालों में इंसानों ने धरती पर इतनी सारी चीजें बनाई हैं, जो पिछली पीढ़ियों ने 10,000 सालों में नहीं बनाई थीं। उसने हर तरह की उपयोगी और गैर जरूरी चीजें बनाई हैं।

जब हमारे पास ऐसी क्षमता होती है, तो यह बहुत अहम है कि हम ऐसी चीजें न बनाएं जो हमें और किसी दूसरे जीवन को नष्ट करने की क्षमता रखती हो बल्कि ऐसी चीजों का निर्माण करें जो जीवन को विकसित और पोषित करती हैं। आज इंसानों के पास जैसी शक्ति और क्षमता है, उसे देखते हुए संतुलित रहना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वरना, आप बहुत ज्यादा विनाश कर सकते हैं।

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आज इंसानों के पास जैसी शक्ति और क्षमता है, उसे देखते हुए संतुलित रहना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
इसके लिए आपके पास अपना परमाणु बम होना जरूरी नहीं है। मगर यह संभावना भी बहुत दूर नहीं है। जिस तरह की स्थितियां बन रही हैं, हो सकता है कि भविष्य में परमाणु बम बनाने की विधि इंटरनेट पर उपलब्ध हो जाए। बस उसकी सामग्री आसानी से उपलब्ध नहीं होती, मगर यह स्थिति भी बदल सकती है।

संतुलन बनाये रखें

उसके बाद अगर आपके पड़ोसी का कुत्ता आपके बगीचे में सू-सू करेगा, तो आपका मन करेगा कि आप उसे बम से उड़ा दें, लेकिन आखिरकार आप पूरे शहर को उड़ा डालेंगे। क्योंकि आपके पास जो हथियार होगा, वह इसी तरह का है। दुनिया में आजकल यही हो रहा है। एक व्यक्ति को मारने के लिए पूरे देश पर बम फेंके जाते हैं।

संतुलित और शांत होने का मतलब मरने की हद तक गंभीर होना नहीं है। अच्छे इरादों वाले गंभीर लोग सबसे खतरनाक इंसान बन सकते हैं। जो लोग मानते हैं कि वे ईश्वर के आदेश पर काम कर रहे हैं, वे धरती पर सबसे भयावह चीजें करते हैं और सोचते हैं कि वे सबसे बड़ी सेवा कर रहे हैं। आध्यात्मिक मार्ग पर चलते समय आपको बुरी तरह गंभीर नहीं होना चाहिए। तीव्रता एक अलग चीज होती है, तनावपूर्ण होना अलग चीज। तीव्रता से आप केन्द्रित होते हैं। तनाव से ध्यान बंटता है। जब आप तीव्र और गहन हों, पर साथ ही आपके अंदर सब कुछ शांत, आसान और सहज हो, तब आपके अंदर जो जीवन है, उसे आपके और हर किसी के फायदे के लिए बेहतरीन रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जीवन में यही चीज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

हमसे पहले किसी और पीढ़ी ने इतनी चीजों की कल्पना नहीं की थी, जो आज हमारे लिए सामान्य चीजें हैं।

हमसे पहले किसी और पीढ़ी ने इतनी चीजों की कल्पना नहीं की थी, जो आज हमारे लिए सामान्य चीजें हैं। मसलन, जो व्यक्ति यहां मौजूद नहीं है, उससे बात करना पहले के जमाने में चमत्कारी चीज होती। अगर सौ साल पहले, आप सौ मील दूर किसी व्यक्ति से कुछ बातें कर पाते, तो आपको संदेशवाहक, पुत्र या खुद ईश्वर समझा जाता। आज हम कोई भी संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचा सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

ये क्षमताएं काफी शक्तिशाली हैं। इस स्थिति में हम क्या और कैसे कुछ बताते हैं, क्या करते हैं और क्या नहीं करते, अपने जीवन को कैसे संचालित करते हैं, कैसे सांस लेते हैं, बैठते हैं, अपने आप को कैसे संभालते हैं और सबसे बढ़कर, अपने भीतर किस तरह हैं, यह बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर आप एक नन्हीं सी चींटी होते तो लोगों के ऊपर आपके चढ़ने से कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन अगर आप एक हाथी होते, तो आपको अपना पैर सोच-समझकर रखना पड़ता, वरना बहुत ज्यादा विनाश हो सकता है। आज हम इंसानों के फुटप्रिंट डायनोसोर से भी बड़े हो गए हैं। इसलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम अपने पैर रखते समय सजग और सचेत रहें।

इस सन्दर्भ में, यह बहुत महत्व रखता है कि पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की गई है। इसका मतलब मुख्य रूप से दुनिया को संतुलित और शांत रहना सिखाना है। अगर आप कुढ़ते नहीं हैं, परेशान और क्रोधित नहीं होते, आग-बबूला नहीं होते, तो हम आपके हाथों में कोई भी चीज रखकर आश्वस्त हो सकते हैं कि आप उसे हर किसी के फायदे के लिए इस्तेमाल करेंगे। अभी समस्या यह है कि दूसरे लोगों की वजह से आप चिढ़ते हैं, उत्तेजित और क्रोधित होते हैं, वे आपको कुंठित या द्वेषपूर्ण बना सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो आपको दूसरों को ठेस और नुकसान पहुंचाने का कारण मिल जाता है। पूर्ण विशवास और स्पष्ट अंतःकरण के साथ आप भयावह चीजें कर सकते हैं। जो लोग ईश्वर के नाम पर सबसे भयावह चीजें कर रहे हैं, वे स्पष्ट अंतःकरण के साथ ऐसा कर रहे हैं क्योंकि क्यों लगता है कि वे दैवी इच्छा को पूरा कर रहे हैं।

एक बार जब नकारात्मक भावनाएं आपके सिस्टम का हिस्सा बन जाती हैं, तो आप इस नकारात्मकता को व्यक्त करने की कोई न कोई वजह तलाश ही लेते हैं। आप कितना नुकसान कर सकते हैं, यह सिर्फ क्षमता का सवाल है।

क्रोध से परे

एक बार जब नकारात्मक भावनाएं आपके सिस्टम का हिस्सा बन जाती हैं, तो आप इस नकारात्मकता को व्यक्त करने की कोई न कोई वजह तलाश ही लेते हैं। आप कितना नुकसान कर सकते हैं, यह सिर्फ क्षमता का सवाल है। जब आप चिढ़ते या कुढ़ते हैं, तो आगे जाकर उत्तेजित, क्रोधित, द्वेषपूर्ण होना या विस्फोटक आवेश में आना बस उसके बाद की स्थितियां होती है। अगर आप किसी चीज या किसी इंसान को लेकर थोड़ी सी भी चिढ़ महसूस करते हैं, तो आपको इसे ठीक करने की जरूरत है। क्रोध का विस्फोट होने तक इंतजार न करें। जब आप दूसरों को खुद से अलग रखते हैं, तभी क्रोध आता है। जब आप हर किसी अपना हिस्सा मानते हैं, तो आपको गुस्सा नहीं आता।

जब आप क्रोध से परे चले जाते हैं, तो आप मेरा हिस्सा बन जाते हैं। जब आप क्रोध से परे होते हैं, तो आप एक शांत जीवन होते हैं। जब आप एक शांत जीवन बन जाते हैं, जब आप अपनी प्रकृति से ही सुखद होते हैं, तो आपके कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। फिर आप वह करेंगे, जो जरूरी है क्योंकि आप अपने आप में प्रसन्न होते हैं। आपको दूसरों से खुशी निचोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती। मानव समुदायों ने आज जो असाधारण क्षमता हासिल कर ली है, उसे देखते हुए अगर आप क्रोध से परे चले जाते हैं, तो आप एक जबर्दस्त संभावना बन सकते हैं। मेरी कामना और आशीर्वाद है कि आप सब ऐसी संभावना में विकसित हों।

Love & Grace