सद्‌गुरुइंसान की आदत है तुलना करने की। ऐसे में जब हम योगाभ्यास करते हैं तो कई बार हमारे मन में यह बात उठ सकती है कि मैं किसी दूसरे की तुलना में कहां तक पहुंचा हूं। लेकिन क्या यह सोच सही है? फिर क्या करें?

प्रश्न : सद्‌गुरु, मैं पिछले डेढ़ साल से योग का अभ्यास कर रहा हूं। मैं जितनी अधिक प्रतीक्षा कर रहा हूं, मेरी कुंठा उतनी ही बढ़ती जा रही है। मैं कैसे जान सकता हूं कि मैं आध्यात्मिकता के पथ पर कहां पर हूं? मैं किस लेवल तक आ गया हूं?

सभी लेवल तुलनात्मक हैं

सद्‌गुरु : सभी लेवल यानी स्तर, सापेक्ष  यानी सिर्फ तुलनात्मक हैं। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से एक कदम आगे होना चाहते हैं, जिसे योगाभ्यास करते हुए, केवल एक वर्ष हुआ है?

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जिस दिन आप कहीं जाने की रुचि के बिना, सजग भाव से इसे करेंगे, उसी दिन इसी सरल प्रक्रिया के दौरान, आपके भीतर कुछ विस्फोट हेागा।
जब तक आपके दिमाग में इस तरह की सोच रहेगी, तब तक आध्यात्मिकता संभव नहीं है। जब आपके भीतर कुंठा भर जाए, मन कहे ‘भाड़ में जाए योग, मैं तो योग करके कहीं पहुंच ही नहीं रहा,’ तब भी इसे बस यूं ही करते रहें। सारी यौगिक प्रक्रिया को इस तरह तैयार किया गया है कि आप सजग भाव के बिना योग कर ही नहीं सकते। जिस दिन आप कहीं जाने की रुचि के बिना, सजग भाव से इसे करेंगे, उसी दिन इसी सरल प्रक्रिया के दौरान, आपके भीतर कुछ विस्फोट हेागा। जब तक आप सोचते रहेंगे, ‘मैं किस स्तर पर हूं? क्या मैं एक स्तर आगे जा रहा हूं’ तब तक तो आप रैट-रेस में ही शामिल हैं - आप कहीं नहीं जा रहे। इसलिए स्तरों को भूल जाइए।

मोह या मुक्ति - किस ओर बढ़ रहे हैं आप?

आपको जुड़ाव तो रखना है, लेकिन उलझना नहीं है, मोह में नही बंधना। यही तो सार है। बस सुबह के समय अपना अभ्यास करें। और पूरा दिन, उन सभी पहलुओं का ध्यान रखें जो आपको सिखाए गए हैं।

आप अपने शरीर, मन, भाव व ऊर्जा के बल पर, खुद को उलझा देते हैं या आप इन्हीं चार का इस्तेमाल करते हुए, अपने-आप को मुक्त कर लेते हैं – जिससे आप आनंद और आश्चर्य से भरे ऊँचे से ऊँचे आयामों तक पहुँचने लगते हैं।
आपको इसे इस तरह करना है कि आपके जीवन का हर पहलू योग में बदल जाए। बैठना, उठना, खाना, सोना - सब कुछ योग बन जाए। योग का अर्थ है, कुछ ऐसा, जो आपको अपने ऊंचे स्वरुप और प्रकृति तक जाने में मदद करता है। आप अपने शरीर, मन, भाव व ऊर्जा के बल पर, खुद को उलझा देते हैं या आप इन्हीं चार का इस्तेमाल करते हुए, अपने-आप को मुक्त कर लेते हैं – जिससे आप आनंद और आश्चर्य से भरे ऊँचे से ऊँचे आयामों तक पहुँचने लगते हैं। मुक्ति के और बंधन के साधन अलग नहीं हैं।

सभी में शरीर, मन, भाव व ऊर्जा काम कर रहे हैं, लेकिन वे अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग स्तर पर काम करते हैं। किसी एक व्यक्ति में शरीर प्रभावी हो सकता है, तो किसी दूसरे इंसान में मन प्रभावी हो सकता है, किसी अन्य में भावनाएं प्रभावी हो सकतीं हैं, किसी चौथे में ऊर्जा प्रभावी हो सकती है। हर व्यक्ति में ये चारों अलग-अलग अनुपात में मौजूद होते हैं, परंतु होते ये चारों तत्व ही हैं। आप इन चारों तत्वों का मिश्रण हैं। जब तक आप इस तरह का योग नहीं करते, जो कि चारों को आपके लिए उपयुक्त अनुपात में बनाए रखता है, तब तक आप आगे नहीं जा सकेंगे।

अभ्यास को एक अर्पण बना दें

बुनियादी अभ्यास का उद्देश्य बुनियादी पहलुओं को खोलना है। अलग-अलग लोगों को अलग-अलग समय लगने की कई वजहें हैं। इस बारे में चिंता मत कीजिए।

तो बेकार की बात रोक कर बस अभ्यास करने के लिए सबसे आसान तरीका है - अपने अभ्यास को अर्पित कर देना।
आपने एक कमिटमेंट किया है, बस उसे पूरा कर दीजिए। अगर आप इसे बस ऐसे ही करना नहीं जानते, तो इसे अर्पण मान कर कर दीजिए। ‘यह मेरे लिए नहीं है। मैं हर दिन योग करके अपने गुरु को समर्पित करूंगा।’ अपने भीतर की रैट रेस या चूहा दौड़ को खत्म करने का यह आसान तरीका है।

अगर आप लगातार खुद से यह पूछते रहेंगे कि ‘मैं किस स्तर पर हूं? क्या मैं किसी ऐसे से बेहतर हूं, जिसने मुझसे पहले या बाद में अभ्यास करना शुरु किया था?’, यह एक अंतहीन विचार-प्रक्रिया होगी। तो बेकार की बात रोक कर बस अभ्यास करने के लिए सबसे आसान तरीका है - अपने अभ्यास को अर्पित कर देना। चाहे यह आध्यात्मिकता हो या फिर कुछ और, जीवन आपको कुछ इसलिए नहीं देता कि आप उस चीज़ को चाहते हैं। आपको जीवन में कुछ इसलिए मिलता है, क्योंकि आपने खुद को इसके योग्य बनाया है। धन हो या प्रेम या फिर कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया, इस संसार में कुछ भी आपको इसलिए मिलता है क्योंकि आप सही तरह के काम करते हैं, नहीं तो यह नहीं मिलेगा।

एक दिन, एक आदमी सेप्टिक टैंक में गिर गया और गरदन तक उसका पूरा शरीर गंदगी में डूब गया। उसने बाहर आने की बहुत कोशिश की पर नहीं आ सका। कुछ देर बाद, वह चिल्लाने लगा, ‘आग! आग!’ पड़ोसियों ने यह आवाज सुनी तो फायर बिग्रेड को बुलवाया और फायर ब्रिगेड वाले उसके पास भागे आए। उन्होंने यहां-वहां देखा, आग तो कहीं नहीं दिखी। फिर उन्हें टैंक में गिरा आदमी दिखाई दिया। उसे बाहर निकाल कर पूछा, ‘आग-आग क्यों चिल्ला रहे थे? आग कहां लगी है?’ वह आदमी बोला, ‘अगर मैं ‘शिट-शिट’ चिल्लाता तो क्या तुम आते?’ तो आपको सही तरह के काम करने होंगे, तभी आपके साथ सही तरह की चीज़ें घटित होंगी।