सद्‌गुरुहम अक्सर देखते हैं कि योग आसन करते समय आंखें बंद रखने के लिए कहा जाता है। क्यों है जरुरी आंखें बंद करना?  आइये जानते हैं आँखों की विशेषता और साथ ही आसनों के मूलाधार चक्र से सम्बन्ध के बारे में...

आंखें बंद करने से क्या लाभ होता है?

प्रश्न: सद्‌गुरु ज्यादातर आसनों में आंखें बंद रखने की सलाह क्यों दी जाती है?

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सद्‌गुरु: अगर आप आंखें बंद कर लेते हैं तो दुनिया आपके आगे से ओझल हो जाती है, लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब आपने अपने मन में कोई झूठी दुनिया न बना रखी हो। अभी मैं आपकी ओर देख रहा हूं, अगर मैं अपनी आंखें बंद कर लूं तो आप मेरे लिए कहीं नहीं हैं। इसी तरह अगर आप आंखें बंद कर लें तो बाहरी दुनिया आपके लिए गायब हो जाती है, बशर्ते आपकी कल्पना उड़ान न भर रही हो। जब आप आसन करते हैं तो आप हर चीज को अंदर की ओर करना चाहते हैं।

सब कुछ अंदर की ओर हो, इसका एक तरीका यह है कि आप अपनी आंखें बंद कर लें। जब आप कोई बहुत अच्छी चीज खाते हैं, जब आपको बेहद कष्ट होता है, जब आपको कोई बहुत अच्छी चीज मिलती है, जब आप वाकई किसी चीज के अनुभव को लेना चाहते हैं तो आप अपनी आंखें बंद कर लेते हैं। जब भी आप किसी चीज को अपने भीतर उतारना चाहते हैं तो यह स्वाभाविक रूप से होता है। पांचों इंद्रियों में आपकी दृष्टि बाहरी चीजों में सबसे ज्यादा उलझी रहती है। अगर आपकी आंखों की रोशनी चली जाए तो आपका बाहरी दुनिया के साथ तकरीबन आधा लेन-देन खत्म हो जाएगा।

बाकी की चार ज्ञानेंद्रियां यानी गंध, स्पर्श, स्वाद और श्रवण, मिलकर बाकी के पचास फीसदी हिस्से के बराबर होती हैं। अगर आप दृृष्टि खो देंगे तो आपकी सुनने और सूंघने की शक्ति बढ़ जाएगी, लेकिन देखा जाए तो किसी भी इंसान के लिए उसकी आंखें ही सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्री हैं। अगर आप एक कुत्ते की ओर ध्यान दें तो वह इस दुनिया को अपनी सूंघने की शक्ति के बल पर ही जानता है। आपको देखकर वह पता नहीं लगाता कि आप कौन हैं, बल्कि इसके लिए वह सूंघने की क्षमता का सहारा लेता है। लेकिन इंसान के मामले में यह सच नहीं है। उसके लिए उसकी आंखें ही सबसे महतवपूर्ण हैं। अगर आंखें बंद हो गईं तो उसके लिए बाहरी दुनिया की लगभग पचास फीसदी चीजों के कोई मायने नहीं हैं। यही वजह है कि आसन, प्राणायाम जैसी अंदरूनी चीजों पर असर डालने के लिए क्रियाएं आंखें बंद करके की जाती हैं।

पैर के अंगूठों का महत्व

प्रश्न: सद्‌गुरु, कुछ आसनों में पैर के अंगूठों या एडिय़ों को स्पर्श करना क्यों जरूरी होता है?

सद्‌गुरु: जब आप आगे की ओर झुकते हैं, तो आपकी एडिय़ों को हमेशा स्पर्श करना चाहिए, क्योंकि मूलाधार कसकर बंद होना जरूरी है। आगे की ओर झुकने में मूलाधार की ओर एक प्राकृतिक गति होती है, जिसे हम रोककर रखना चाहते हैं। एक तरह से देखें तो पैर का तलवा हमारे पूरे शरीर की एक छोटी सी अभिव्यक्ति होती है। अगर पैर के दोनों अंगूठे स्पर्श करने लगें तो पूरा शरीर ही अलग तरह से काम करने लगता है। अपने देश में अक्सर आप पाएंगे कि जब किसी की मौत हो जाती है तो किसी प्राकृतिक धागे से उसके पैर के दोनों अंगूठों को आपस में बांध दिया जाता है क्योंकि यह प्रक्रिया कुछ खास चीजों को शरीर में प्रवेश करने से रोक देती है।

आपको हमेशा यह पता नहीं होता कि आप कैसे वातावरण में हैं। जब दोनों अंगूठे बंध जाते हैं तो आप अपने आसपास की चीजों को अपने भीतर नहीं ले सकते। साथ ही आप खुद में एक पूरा सर्किट बन जाते हैं। वैसे भी आप एक संपूर्ण जीवन हैं। यह बात अलग है कि कुछ लोग अपने को आधा जीवन ही समझते हैं। अगर उनके पास कुछ चीजें नहीं हों तो वे अपने आपको खाली समझेंगे। योग का एक पहलू यह है कि अपनी ऊर्जाओं को इस तरह से सेट किया जाए कि अगर आप यहां बैठे हैं तो आप अपने को संपूर्ण महसूस करें। संपूर्ण महसूस करने के लिए आपको किसी बाहरी चीज या शख्स की जरूरत न लगे। अगर आप किसी से बातचीत या संपर्क करते हैं तो यह उस व्यक्ति की जरूरत के अनुसार हो सकता है, खुद को पूर्ण महसूस करने के लिए नहीं।

अपने को ऊपर उठाने का यह एक स्पष्ट तरीका है कि किसी के साथ बातचीत या संपर्क में आपका कोई निहित स्वार्थ नहीं हो। आप किसी नैतिकता की वजह से नहीं बल्कि अपने स्वभाव के कारण कर रहे हैं, क्योंकि आप अपने भीतर से संपूर्ण हैं। संपूर्णता का यह भाव लाने के लिए पैर के दोनों अंगूठों को साथ रखना महत्वपूर्ण है। कुछ खास किस्म के आसनों में या तो दोनों अंगूठे साथ होने चाहिए या आपके मूलाधार को सहारा मिलना चाहिए। इस तरह से आप खुद को एक संपूर्ण प्रक्रिया में लाने का लगातार प्रयास करते हैं, तब अपूर्णता का भाव या संपूर्ण न होने का भाव अपने आप चला जाएगा।

मूलाधार का महत्व

प्रश्न: सद्‌गुरु, अर्धसिद्धासन, वृक्षासन और योगमुद्रा जैसे आसनों में एड़ी को मूलाधार से स्पर्श करना चाहिए। अगर अपनी शारीरिक बनावट की वजह से किसी के लिए ऐसा करना संभव न हो पाए तो क्या किया जाए?

सद्‌गुरु: अगर आप आंशिक रूप से एड़ी पर बैठें तो यह पौने इंच की जगह मूलाधार को जरूर स्पर्श करेगी। इससे कोई फ र्क नहीं पड़ता कि आप आदमी हैं या औरत। एडिय़ां फिसलेंगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि एडिय़ां मूलाधार में कितने आराम से सेट हुईं। एक बार आपके शरीर में थोड़ा भी लचीलापन आ गया तो ये अपने आप वहीं टिकी रहेंगी। उदाहरण के लिए जब आप जानुर्शिर्शासन करते हैं, तो अपनी सुविधा के लिए एडिय़ों को दूर मत हटाइए। इन आसनों में सबसे अहम बात यह है कि आप मूलाधार पर पूरा दबाव डालना चाहते हैं।