ये तो हम सब जानते हैं कि हमारे आस-पास अनगिनत तरह की आवाजें हैं, जिनमें से कुछ को हम सीधे अपने कानों से तो कुछ को मोबाइल, रेडियो आदि उपकरणों की मदद से सुन पाते हैं, और कुछ को सुन हीं नहीं सकते। यानी सृष्टि है तो ध्वनि है। लेकिन यह सोचना भी बहुतों के लिए शायद मुश्किल होगा कि ध्वनि है तो सृष्टि है। आइए जानते हैं कैसे ?

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शब्द और उनके अर्थ इंसान द्वारा बनाए गए हैं। इन्हें अर्थपूर्ण बनाना एक साजिश है। क्या आप सुन सकते हैं कि ये झींगुर क्या कह रहे हैं? आप नहीं समझते, लेकिन वे बात कर रहे हैं।
हम अक्सर शब्द को महत्वपूर्ण मानते हैं, लेकिन शब्द से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, ध्वनि। शब्द का एक अर्थ होता है जो इंसान के दिमाग में बनता है। जबकि ध्वनि इस सृष्टि का गुण है, रचना का सार है। अगर आप ध्वनि को छू रहे हैं,तो आप इस सृष्टि को स्पर्श कर रहे हैं। दूसरी तरफ अगर आप एक शब्द को स्पर्श कर रहे हैं तो आप इंसान के मनोवैज्ञानिक ढांचे में प्रवेश कर रहे हैं। देखा जाए तो इंसान का मनोवैज्ञानिक ढांचा एक खास तरह का पागलपन है। हम इसका आनंद उठा सकते हैं, हम इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन मूलरूप से यह एक खास तरह का भ्रम है। ध्वनि इस सृष्टि का बुनियादी पहलू है। अगर ध्वनि पर आपका अधिकार है तो एक तरह से इस सृष्टि पर आपका अधिकार हो जाएगा, क्योंकि यह सृष्टि ध्वनियों का एक जटिल मिश्रण है। एक तरह से इसे समस्त रचना का ब्लूप्रिंट कहा जा सकता है। लेकिन अर्थ इंसानी रचना है। आपको पता ही है कि अलग-अलग भाषाओं में एक ही शब्द के अलग-अलग मायने होते हैं। अब 'बनाना’को ही ले लीजिए, अंग्रेजी का 'बनाना’और हिंदी का ‘बनाना’। एक ही शब्द के मायने अलग-अलग हैं, क्योंकि इनकी रचना की गई है। ध्वनि ऐसी चीज नहीं है, जिसका निर्माण किया गया हो।

ध्वनि इस सृष्टि का एक हिस्सा है, ध्वनि इस अस्तित्व का एक हिस्सा है, ध्वनि इस सकल रचना के निर्माण का एक घटक है। अभी पूरी की पूरी सृष्टि एक खास तरीके से गुंजायमान हो रही है। यह अलग बात है कि आप इसे सुन नहीं सकते। लेकिन शब्द और उनके अर्थ इंसान द्वारा बनाए गए हैं। इन्हें अर्थपूर्ण बनाना एक साजिश है। क्या आप सुन सकते हैं कि ये झींगुर क्या कह रहे हैं? आप नहीं समझते, लेकिन वे बात कर रहे हैं। वे भी आप ही की तरह हैं। उनमें से कुछ झींगुर बस ध्वनि पैदा कर रहे हैं, आलाप ले रहे हैं। वे बस यूं ही ध्वनि का आनंद ले रहे हैं। इस रचना का आनंद लेने का मतलब है: इसकी ध्वनि का आनंद लेना। अगर आपके भीतर इसे सुनने की उत्सुकता नहीं है, अगर आपके भीतर उस ओर ध्यान देने की इच्छा नहीं है तो आप इस रचना के किसी भी पहलू का आनंद नहीं ले सकते। आप केवल अपने दिमाग में मौजूद एक मनोवैज्ञानिक पैटर्न का ही आनंद उठा रहे हैं।

सृष्टि का आनंद लेने का मतलब है, इसकी ध्वनि का आनंद लेना। अगर आपके भीतर इसे सुनने की उत्सुकता नहीं है, अगर आपके भीतर उस ओर ध्यान देने की इच्छा नहीं है, तो आप इस रचना के किसी भी पहलू का आनंद नहीं ले सकते।
यही वजह है कि ज्यादातर लोग अधिकतर समय बोलना चाहते हैं, बात करना चाहते हैं - इसलिए नहीं कि उनके पास कुछ कहने को है, इसलिए क्योंकि उन्हें अर्थ का पता लगाना है। मौन हो या ध्वनि, दोनों ही जबर्दस्त प्रभावशाली होते हैं। यही वजह है कि जब हम आध्यात्मिक प्रक्रिया की बात करते हैं तो सबसे पहले हम मौन की बात करते हैं। अगर आप मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत स्थिर हैं, तो हो सकता है हम आपसे 30 दिन या 60 दिनों तक मौन रहने के लिए कहें। अगर आप मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर हैं तो हम कहेंगे, ठीक है बस तीन दिन तक मौन रहें। तीन दिन में ही लोग पागल हो जाते हैं। कई बार कहा जाता है कि बस आधे दिन का मौन रखिए - केवल दोपहर तक मौन, उसके बाद जितना चाहे बक-बक कीजिए। कई लोग बड़ी मुश्किल से दोपहर तक का मौन भी रख पाते हैं। आपमें से जो लोग बहुत ज्यादा बातें करते हैं, वे जानते हैं कि अर्थ अर्थहीन होता है। आप बस बातें कर सकते हैं। आजकल बहुत सारे लोग तो इस बात में एक्सपर्ट हैं कि वे बिना किसी मतलब के ही बोल सकते हैं। लगता है उन्होंने ध्वनि के महत्व को समझ लिया है! वे बिना किसी मतलब के ही बोले जा सकते हैं।

अगर आप पंछी होते तो हम आपको माफ कर देते। अगर आप झींगुर होते तो भी कोई बात नहीं थी। अगर आप संगीतकार होते तो भी अर्थहीन ध्वनि पैदा करने में कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन अगर आप बोल रहे हैं, तो आपसे उम्मीद की जाती है कि आप कुछ तो अर्थपूर्ण बोलेंगे, कुछ तो मतलब की बात बोलेंगे।

सृष्टि का आनंद लेने का मतलब है- इसकी ध्वनि का आनंद लेना। अगर आपके भीतर इसे सुनने की उत्सुकता नहीं है, अगर आपके भीतर उस ओर ध्यान देने की इच्छा नहीं है, तो आप इस रचना के किसी भी पहलू का आनंद नहीं ले सकते।