ब्रह्मचारियों को लेकर अकसर लोगों की धारणा होती है कि ये वो लोग होते हैं जो समाज के किसी काम नहीं आते। लेकिन सद्‌गुरु ब्रह्मचर्य और ब्रह्मचारी के महत्‍व व उपयोगिता को बताते हुए कहते हैं कि ये रॉकेट की तरह होते हैं जो समाज को आध्‍यात्मिक शिखर पर ले जाते हैं।

सद्‌गुरु:

“ब्रह्मचर्य” शब्द में दो शब्द हैं- ‘ब्राह्मण’ और ‘चर्य’। ब्राह्मण का मतलब है, दिव्य, ईश्वरीय या परम, और चर्य का मतलब है रास्ता। अगर आप ‘परम आनंद’ के खोजी हैं, या कहें कि आप चैतन्य की राह पर हैं, तो आप ब्रह्मचारी हैं। चैतन्य की राह पर होने का मतलब है कि आपके पास अपनी बनाई हुई व्यक्तिगत कामों की सूची नहीं है। आप बस वह करते हैं, जो जरूरी है। आप व्यक्तिगत रूप से यह तय नहीं करते कि जीवन में आपको किस दिशा में जाना है, क्या करना है या आपकी पसंद-नापसंद क्या है। ये सब चीजें आपसे ले ली जाती हैं। अगर यह सब आप अनिच्छा से करते हैं, तो यह आपके लिए एक बड़ी यातना हो सकती है। अगर आप अपनी इच्छा से ऐसा करते हैं तो यह आपकी ज़िंदगी को बहुत ही बढ़िया और खूबसूरत बना देता है, क्योंकि फिर कुछ भी आपको परेशान नहीं करता, किसी चीज की आपको चिंता नहीं करनी होती। आप बस जरूरत के हिसाब से काम करते हैं, जीवन बहुत ही सरल हो जाता है। अपने आप को इस तरह समर्पित कर देने के बाद आपको आध्यात्मिक मार्ग के बारे में सोचने या अपनी आध्यात्मिकता की चिंता करने की जरूरत नहीं रह जाती। उसका खयाल रखा जाता है। आपको इसके लिए कोई कोशिश नहीं करनी पड़ती।

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जो व्यक्ति वास्तव में दिव्यता को पाने की चाह में आगे बढ़ रहा है, उसके लिए दुनिया के छोटे-मोटे सुख पूरी तरह निरर्थक होंगे। अपने भीतर अस्तित्व के सुखों का आनंद उठाने के बाद, बाहरी सुख पूरी तरह अर्थहीन हो जाते हैं।

कुछ लोगों को लगता है कि ब्रह्मचारी बहुत बड़ा त्याग कर रहे हैं और उन्हें जीवन से वंचित रखा जा रहा है। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। अगर कोई सिर्फ अपने कपड़ों से ब्रह्मचारी है, तो निश्चित रूप से उसका जीवन यातनापूर्ण है। लेकिन जो व्यक्ति वास्तव में दिव्यता को पाने की चाह में आगे बढ़ रहा है, उसके लिए दुनिया के छोटे-मोटे सुख पूरी तरह निरर्थक होंगे। अपने भीतर अस्तित्व के सुखों का आनंद उठाने के बाद, बाहरी सुख पूरी तरह अर्थहीन हो जाते हैं।

क्या इसका मतलब यह है कि हर किसी को ब्रह्मचारी बन जाना चाहिए? हां, बनना चाहिए, जरूरी नहीं कि जीवनशैली ब्रह्मचारियों की तरह हो लेकिन वह भीतर से ब्रह्मचारी हो। हर किसी को चैतन्य की राह पर चलना चाहिए। ब्रह्मचर्य का अर्थ सिर्फ शारीरिक संबंधों से दूर रहना नहीं है। यह सिर्फ एक पहलू है जिसे एक सहायक-सिस्टम के रूप में अपनाया गया है। ब्रह्मचारी बनने का मतलब है कि आप स्वभाव में ही आनंद-मग्न हैं। आप शादीशुदा होते हुए भी ब्रह्मचारी हो सकते हैं। यह संभव है- क्योंकि आपको स्वभावत: खुश रहना है, अपने पति या पत्नीम से खुशी नहीं निचोड़ना है। ऐसा ही होना चाहिए। पूरी दुनिया को ब्रह्मचारी होना चाहिए। हर किसी को स्वभाव से ही आनंद-मग्न होना चाहिए। अगर दो लोग साथ आएं, तो उन्हें आनंद बांटना चाहिए, न कि एक-दूसरे से आनंद चूसने की कोशिश करनी चाहिए।

भविष्य के लिए एक निवेश है ब्रह्मचारी

एक खास परंपरा क्यों बनाई गई है? अगर कोई अपने जीवन के अंतिम-काल में ही ज्ञान प्राप्तच करना चाहता है, तो इसके कई तरीके हैं। उस दिन मैं आपके साथ एक मुलाकात तय कर सकता हूं! लेकिन अगर कोई ज्ञान की खोज करना चाहता है, न सिर्फ खोज करना बल्कि और लोगों के लिए भी ज्ञान प्राप्ति का एक उपयोगी जरिया बनना चाहता है, तो ब्रह्मचर्य महत्वपूर्ण हो जाता है। ब्रह्मचारी भविष्य के लिए एक निवेश हैं ताकि आध्यात्मिकता को उसके शुद्ध रूप में कायम रखा जा सके और पीढ़ी दर पीढ़ी उसे आगे बढ़ाया जा सके। लोगों के एक छोटे, समर्पित समूह की जरूरत होती है। उन्हें एक खास रूप में दीक्षित किया जाता है, जो उनकी ऊर्जा को एक बिल्कुल अलग दिशा में मोड़ देता है। हर किसी को यह कदम उठाने की जरूरत नहीं है, न ही हम हर किसी को इसमें दीक्षित करते हैं क्योंकि यह आवश्यक नहीं है। सबको उस तरह की साधना में नहीं डाला जा सकता, जिसकी जरूरत होती है।

आप शादीशुदा होते हुए भी ब्रह्मचारी हो सकते हैं। यह संभव है- क्योंकि आपको स्वभाव से खुश रहना है, अपने पति या पत्नी से खुशी नहीं निचोड़ना है।

हम सभी ने आम खाए हैं, लेकिन हममें से कितनों ने आम के पेड़ लगाए हैं, उन्हें बड़ा किया है और फिर आम खाए हैं? बहुत से लोगों ने आम खाए क्योंकि किसी और ने आम के पेड़ लगाए। हर समाज में, हजार लोगों में से कम से कम दस लोगों को आम के पेड़ लगाने होते हैं। इसी तरह कुछ लोगों को ब्रह्मचर्य का रास्ता अपनाना होगा। समाज में ऐसे लोगों की जरूरत है जो दूसरों के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करने को तैयार हों। अगर किसी समाज में दूसरों की भलाई और खुशहाली के बारे में सोचने वाला कोई नहीं हो, तो वह समाज निश्चित रूप से बरबाद हो जाएगा। आजकल ऐसा ही हो रहा है। बहुत कम लोग हैं जो हर किसी के सुख के बारे में सोचते हैं।

ब्रह्मचारियों की क्या आवश्यकता है?

दरअसल यह मानव तंत्र एक खास तरह की ऊर्जा प्रणाली है। आप इसको बहुत जगह से खुला रखते हुए एक खास तरीके से दुनिया के साथ लेन-देन कर सकते हैं या आप एक क्लोज सर्किट सिस्टम बना कर इसके रास्तों को बंद कर सकते हैं ताकि वह बहुत इंटिग्रेटेड यानी समन्वित हो सके। रॉकेट इतना ऊपर जाता है क्योंकि वह सिर्फ एक दिशा में अपनी सारी ऊर्जा लगाता है। मान लीजिए उसकी ऊर्जा सभी ओर लगे, तो वह कहीं नहीं जाएगा, वह बस नष्ट हो जाएगा। हम एक ब्रह्मचारी को ऐसा ही बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह सिर्फ एक ओर ध्यान लगाए। एक ओर से प्रज्वलित होने वाली चीज सीधे ऊपर जाती है और ऐसा तंत्र बनाने का एक खास उद्देश्य होता है।

बहुत से लोगों ने आम खाए क्योंकि किसी और ने आम के पेड़ लगाए। हर समाज में, हजार लोगों में से कम से कम दस लोगों को आम के पेड़ लगाने होते हैं। इसी तरह कुछ लोगों को ब्रह्मचर्य का रास्ता अपनाना होगा।

जब आपके पास इस तरह का एक क्लोज सर्किट सिस्टम होता है, तो वह एक शक्तिशाली उपकरण होता है। इस उपकरण को बहुत से अलग-अलग रूपों में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह ऐसा हथियार है जिससे आप दुनिया पर एक आध्यात्मिक प्रक्रिया की बमबारी कर सकते हैं।

सन्यासी या भिक्षु तो हर संस्कृति में रहे हैं, क्योंकि जहां भी आत्म-ज्ञान की कोई शुद्ध प्रक्रिया रही है, वहां लोग हमेशा कुछ लोगों को इस तरह तैयार करना चाहते हैं कि वे पूरी तरह इंटिग्रेटेड सिस्टम यानी एक समन्वित प्रणाली बन जाएं। बाहर से कोई लेन-देन न हो। वह बस अपने आप में पूर्ण रहें। अगर आप एक खास तरीके से दुनिया को जगाना चाहते हैं, कुछ खास प्रक्रियाएं बनाना चाहते हैं और कुछ चीजों की पहुंच रखना चाहते हैं, तो ऐसे सिस्टम जरूरी हैं। अगर आप वायुमंडल के आगे उपग्रह भेजना चाहते हैं, तो आपको रॉकेट की जरूरत होगी। अगर आप सिर्फ वायुमंडल में उड़ना चाहते हैं, तो यह काम आप हवाईजहाज में कर सकते हैं। यही अंतर है। जब आप एक खास सीमा के आगे कुछ करना चाहते हैं, तो ब्रह्मचारी आवश्यक हो जाते हैं।