डॉ जयप्रकाश और सद्‌गुरु ने एक इन कन्वर्सेशन सीरीज के संवाद में हिस्सा लिया और देश में प्रजातंत्र और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की, पढ़ते हैं इसके कुछ अंश...

डॉ. जेपी: सद्‌गुरु, इससे मेरे मन में सवाल उठता है कि जब हमारे संत और गुरु, हमारे धर्म और सामाजिक मूल्य हमें नैतिक मूल्यों की शिक्षा देते हैं, फिर भी अगर समाज में अनैतिकता है तो इसका मतलब है कि यह सब पर्याप्त नहीं है। भारत में जब हम सार्वजनिक या व्यक्तिगत जीवन में भ्रष्टाचार या ऐसे ही किसी और दुराचार के बारे में बात करते हैं, तो हम संस्थागत तरीकों की बजाय नैतिकता और आदर्शों की बात करते हैं।

सद्‌गुरुसद्‌गुरु: नहीं, जहां तक मुझे लगता है, भारत में कोई भ्रष्टाचार नहीं है। कहां है भारत में भ्रष्टाचार? बस डाका है। भ्रष्टाचार का मतलब तो यह है कि आप मेरे पास आते हैं और मुझे कोई पक्षपात करने को कहते हैं। मैं यह करने को तैयार हूं, लेकिन मेज के नीचे से मैं आपसे दो रुपये चाहता हूं। यह भ्रष्टाचार है। अब अगर मै आपका सिर तोड़ दूँ और आपके पास जो भी है, छीनकर ले जाऊं, तो यह भ्रष्टाचार नहीं है!

देश के क़ानून को सरल बनाना होगा

डॉ. जेपी: लेकिन जब तक देश का कानून और उसे लागू कराने वाली प्रणाली इतनी ताकतवर नहीं होगी कि वह यह संदेश दे सके कि गलत व्यवहार के लिए सजा और अच्छे व्यवहार के लिए इनाम है, तब तक मुझे नहीं लगता कि मूल्यों की कदर होगी। तो आपको क्या लगता है हमें ऐसी कौन सी संस्थागत प्रणाली बनानी चाहिए जो सार्वजनिक शुद्धता और नागरिकों के अंदर उच्च स्तर के बर्ताव को सुनिश्चित कर सके?

सद्‌गुरु: देखिए, भारत में जो सबसे महत्वपूर्ण काम करने की जरूरत है, वह यह है कि कानूनों को इतना आसान बना दिया जाए कि हर कोई उन्हें समझ सके। अभी ये कानून इतने जटिल हैं, इतने अस्पष्ट हैं कि इन्हें कोई भी ठीक से नहीं समझता। कानून की इसी अस्पष्टता और संदिग्धता के चलते इतने छिद्र बन गये हैं कि भ्रष्टाचार लगातार फैलता जा रहा है। अगर कानून में कोई संदिग्धता नहीं होती, तो काम करने की एवज में किसी को पैसा मांगने की हिम्मत नहीं होती। इनमें से ज्यादातर कानून अंग्रेजों के बनाए हुए हैं। वे कानूनों में अस्पष्टता चाहते थे, ताकि वे अपने हिसाब से जैसे चाहें, वैसी उनकी व्याख्या कर सकें। अगर वे आपको कल सुबह गिरफ्तार करना चाहते, तो इसके भरपूर कारण उनके पास थे। अब भी हमने उन्हीं कानूनों को लागू कर रखा है और यह बात आज भी उतनी ही सच है कि कानून आज भी आपको बिना किसी जुर्म के गिरफ्तार कर सकता है। वे आपको कोई भी नंबर बता देंगे और कहेंगे कि कानून की इस धारा के तहत आपको अंदर किया गया है। वे कह सकते हैं कि आपने यह किया है, क्योंकि कानून अपने आप में इतना अस्पष्ट है। अगर आप किसी दूसरे देश पर कब्जा करते हैं तो उन्हें वश में रखने के लिए यह ठीक है, लेकिन अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए नहीं। उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु में किसी बिल्डिंग की मंजूरी लेने में 12 से 14 महीने लग जाते हैं। 14 महीनों के दौरान कई चीजें बदल सकती हैं। हो सकता है कि 14 महीने बाद आपकी इमारत बनाने में दिलचस्पी ही खत्म हो जाए।

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इस काम के लिए आपको तकरीबन 16 विभागों में जाना पड़ता है। आपकी फाइल किस स्तर पर पहुंची, इसका रोजाना हिसाब-किताब रखना पड़ता है। और हां, सरकारी फीस के अलावा भी एक तय फीस है, जो आपको देनी ही पड़ती है। आप इतना सब करते हैं, तो भी 14 महीने का वक्त लगता है। अंत में आप पाते हैं कि आपने इतना ज्यादा पैसा और वक्त खर्च कर दिया है। तब प्रतिशोध में आप कानून तोड़ते हैं। अगर उसने कहा कि 10 हजार वर्ग फुट में मकान बना लो, तो आप 15 हजार वर्ग फुट में बनाना चाहते हैं। आखिर आपने पैसा और वक्त दोनों खर्च किए हैं। ऐसे में बिना किसी समस्या के सभी कानूनों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। अमेरिका में हम एक बड़ा केंद्र बना रहे हैं। उन लोगों ने इमारतों का निर्माण करने के लिए एक नियमावली बनाई हुई है। आपका आर्किटेक्ट हर हाल में सर्टिफाइड होना ही चाहिए। नियमों का ज्ञान उसे होना ही चाहिए। इसके अलावा 250 पन्नों की एक नियमावली आपको दे दी जाती है। बेहतर है कि आप इसे पढ़ लें। आप जो चाहें, वह बना सकते हैं। कोई विभाग नहीं, कोई अनुमति नहीं, लेकिन इमारत पर कब्जे से पहले उनके अधिकारी उसका निरीक्षण करने आएंगे। अगर यह नियमों के मुताबिक बनी है तो ठीक है, लेकिन अगर उसे बनाने में नियमों का उल्लंघन किया गया है, तो आपकी इमारत को नीचे ढहा दिया जाएगा और आपको अंदर कर दिया जाएगा। कितना आसान है!

एक इमारत की मंजूरी लेने के लिए कई सारे सरकारी विभागों में चक्कर लगाने की बजाय कुछेक लोगों को ही इसके लिए जिम्मेदार बना दिया गया है। अगर मैं इस देश का नागरिक हूं, तो आप यह क्यों सोचते हैं कि मैं एक अपराधी ही हूं? मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इसकी मंजूरी आप क्यों दे रहे हैं? बस मुझे तो यह बताइए कि इस देश में इमारत बनाने का यह तरीका है। मैं उसी तरीके से बना लूंगा। अगर मैं उस तरीके से, उन नियमों के हिसाब से काम नहीं करता, तो मेरी इमारत को ढहा दीजिए। यह तो बस एक उदाहरण है। जिन देशों में कानून गैरजरूरी तरीके से जटिल और अस्पष्ट हैं, वहां आप ऐसे लाखों उदाहरण देख सकते हैं। यही चीज भ्रष्टाचार के लिए जमीन तैयार करती है।

नेताओं की बुराई करना छोड़, प्रजातंत्र में हिस्सा लेना होगा

डॉ. जेपी: आंध्र प्रदेश में एक कहावत है कि तमिलनाडु में आप रिश्वत दीजिए और आपका काम हो जाएगा, लेकिन आंध्र प्रदेश में आप रिश्वत दे दो तो भी आपको परेशान किया जाएगा। इस देश के कानून में बहुत सारे छिद्र हैं जिससे भ्रष्टाचार को खूब बढ़ावा मिलता है। हम राजनीति और भ्रष्टाचार के मसले पर नहीं जाना चाहते, क्योंकि हम सभी राजनेताओं से नफरत करना पसंद करते हैं।

सद्‌गुरु: मैं इसकी अनुमति नहीं दूंगा, क्योंकि यह एक तरह का फैशन, सनक और मजबूरी बन गई है कि आप जहां भी जाते हैं, लोग राजनीति के बारे में बातें करते नजर आते हैं। वे राजनेताओं को बुरा मानते हैं, भले ही उनके बारे में जानते हों या नहीं। चाय की दुकान से लेकर ऑफिसों तक और हर जगह यही सब चल रहा है। अगर आप एक जिम्मेदार नागरिक हैं, तो आपको पता होगा कि प्रजातंत्र का मतलब क्या है? प्रजातंत्र का मतलब है, लोगों की सरकार। ये राजनेता कोई आसमान से नहीं टपके हैं। वे आपमें से ही हैं, जो कुछ करने के लिए आगे आए हैं। अब पता नहीं, किस वजह से वे ऐसे बन गए हैं। आपको यह भी नहीं पता कि उनमें से कितने खल बन गए हैं और कितने नहीं। हम इस मसले को आम बना कर पेश करते हैं क्योंकि उन्हें नीचा दिखाकर उसकी शिकायत करने में हमें खुशी मिलती है। अगर देश आपके लिए महत्वपूर्ण है और आपको लगता है कि आपने इस देश को धोखेबाजों के हाथ में सौंप दिया है, फिर भी अगर आप आराम से बैठे हैं और इस सबका मजा ले रहे हैं तो दंड आपको मिलना चाहिए, भ्रष्टों को नहीं। प्रजातंत्र कोई ऐसा खेल नहीं है, जिसमें आप दर्शक हैं। यह तो वह खेल है, जिसमें हिस्सा लेना पड़ता है। जब मैं प्रजातंत्र में हिस्सा लेने की बात कहता हूं तो ज्यादातर लोग समझते हैं कि अगर पांच साल में एक बार बाहर निकलकर वोट डाल दिया तो जिम्मेदारी पूरी हो गई।

नहीं, प्रजातंत्र के तमाम कारक हैं, जिनके जरिये आप अपने देश, प्रदेश, शहर और गली की शासन प्रणाली में रोजमर्रा के आधार पर हिस्सा ले सकते हैं। मैं अकसर लोगों से सुनता हूं - ‘मैं नहीं जानता।’ सवाल है कि क्यों नहीं जानते आप? दरअसल, आपको इसकी परवाह नहीं है। इसकी वजह यह है कि एक देश का विचार इस देश के लोगों के भीतर गहरे तक पहुंचा ही नहीं है। एक देश की पहचान के मुकाबले धर्म, जाति, संप्रदाय, परिवार आदि से हमारी पहचान ज्यादा मजबूत और प्रभावी है। इसी वजह से ये सब चीजें हो रही हैं।

पता नहीं, मुझे आपको यह बात बतानी चाहिए या नहीं, लेकिन मैं कोशिश करता हूं। एक बार मैं आंध्र प्रदेश के एक राजनैतिक परिवार की महिला के साथ यात्रा कर रहा था। मुझे पता था कि परिवार में चीजें किस तरह से चल रही हैं। मैंने मजाक में कहा, ‘अगर मौका मिले तो शायद आपके पिता देश को चार हिस्सों में बांटकर और अपने चारों बच्चों को दे देंगे।’ उन्होंने गंभीरता के साथ कहा, ‘इसमें गलत ही क्या है? हमारे पिता हमें प्यार करते हैं।’ इस बात को सुनकर मुझे धक्का भी लगा और हैरानी भी हुई।

प्रजातंत्र को पूरी तरह से पाना अभी बाकी है

डॉ. जेपी: यह तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

सद्‌गुरु: हां, अब हमें यह समझने की जरूरत है कि एक देश के तौर पर हम सामंतवादी व्यवस्था से प्रजातांत्रिक व्यवस्था की ओर जा रहे हैं। व्यवस्था बदल चुकी है, लेकिन हमारे दिमाग अभी तक नहीं बदले। हम अभी भी सामंतवादी ही हैं। बहुत से लोग शिकायत कर रहे हैं कि हमें भ्रष्ट होने का मौका ही नहीं मिला। वे यह शिकायत नहीं कर रहे हैं कि देश में भ्रष्टाचार है। शिकायत बस यह है कि हमें देना पड़ता है और वे ले रहे हैं। मैं स्थिति की दूसरी तरफ ले जाना चाहूंगा। अगर आप कल सुबह इसका परीक्षण करना चाहते हैं तो हैदराबाद शहर से सारी पुलिस को हटा दीजिए। फिर देखिए कि कितने लोग लाल बत्ती पर रुकते हैं। मेरे जैसे कुछ मूर्ख रुक जाएंगे। मैं जहां भी जाता हूं, लाल बत्ती पर रुकता हूं और ऐसे में हर कोई मुझे देखता है, मानो कह रहा हो कि यह मूर्ख कौन है जो चलते यातायात को रोक रहा है। वे मुझे देखते हैं, मानो पूछ रहे हों कि आखिर तुम्हारी दिक्कत क्या है? यहां कोई पुलिसवाला तो है नहीं।

तो इन सारी बातों का निचोड़ यह है कि हमारी शराफत और ईमानदारी बहुत नीचे चली गई है, बल्कि यह शराफत और ईमानदारी का सवाल ही नहीं है। बात बस यह है कि हम अभी भी सामंतवादी हैं और प्रजातांत्रिक होने की कोशिश कर रहे हैं। इसीलिए भारत में प्रजातंत्र अभी भी विकास की स्थिति में है, जिसे अभी बहुत ज्यादा विकास की जरूरत है और किसी ने भी लोगों को यह समझाने की कोशिश नहीं की है कि प्रजातंत्र है क्या! दरअसल, इस मामले में अभी अपने यहां पर्याप्त काम नहीं हुआ हैं। यह अभी तक हमारे शैक्षणिक तंत्र का भी हिस्सा नहीं बना है। प्रजातंत्र के बारे में लोगों को शिक्षित बनाने के लिए सामाजिक संगठनों और खुद सरकार को भी बड़े पैमाने पर पहल करनी चाहिए थी। जब हम अपने धर्म, जाति या संप्रदाय, यहां तक कि परिवार को वोट देते हैं, तो यह प्रजातंत्र नहीं है। यह बस सामंतवाद है।

प्रजातंत्र, व्यावहारिक प्रजातंत्र सिर्फ तभी बन सकता है जब आप जाएं और अपना वोट डालें, लेकिन आपको यह पता न हो कि आपकी पत्नी या पति ने किसे वोट दिया और आप यह जानना भी नहीं चाहें। अगर आपके अंदर इस तरह की ईमानदारी है, सिर्फ तब ही प्रजातंत्र काम करेगा। अगर आप अपने पूरे परिवार को बता देते हैं कि इस शख्स को वोट देना तो यह प्रजातंत्र नहीं है। मुझे लगता है कि इसे अच्छी तरह से समझा ही नहीं गया है।