मंत्रों का प्रयोग तो हम सदियों से करते आए हैं, लेकिन बिना जाने बूझे इन मंत्रों का उच्चारण फायदे की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। क्या हैं मंत्र, उनके पीछे कौन सा विज्ञान छिपा है, बता रहे हैं सद्‌गुरु...

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

सद्‌गुरु:

मंत्र का आशय ध्वनि से होता है। आजकल आधुनिक विज्ञान इस पूरी सृष्टि को एक कंपन मानता है। अब जहां कही भी कंपन होगा, वहां ध्वनि तो होगी ही। इसका मतलब है कि यह संपूर्ण सृष्टि एक प्रकार की ध्वनि या कई ध्वनियों का एक जटिल मिश्रण है। यह भी कह सकते हैं कि संपूर्ण सृष्टि विभिन्न प्रकार के मंत्रों का मेल है। इन में से कुछ मंत्रों या ध्वनियों की पहचान हो चुकी है, जो अपने आप में चाभी की तरह हैं। अगर हम उनका एक खास तरह से इस्तेमाल करें तो वे जीवन के अलग आयाम को खोलने में सक्षम हैं, जिनका अनुभव हम अपने भीतर कर सकते हैं।

मंत्र कई तरह के होते है। हर मंत्र शरीर के किसी निश्चित हिस्से में एक खास तरह की उर्जा जागृत करता है। बिना जागरुकता के किसी आवाज को केवल बार-बार दुहराने से दिमाग में सुस्ती छा जाती है। किसी भी ध्वनि के लगातार उच्चारण से मन सुस्त हो जाता है। जब आप पूरी जागरुकता के साथ उसकी सही समझ के साथ मंत्रोच्चारण करते हैं तो वह एक शक्तिशाली साधन बन सकता है। एक विज्ञान के रूप में, यह एक शक्तिशाली आयाम है। लेकिन आज जिस तरह से बिना किसी आधार या बिना आवश्यक तैयारी के लोगों को मंत्र दिए जा रहे हैं इससे बहुत नुकसान हो सकता है।

कुछ मंत्रों या ध्वनियों की पहचान हो चुकी है, जो अपने आप में चाभी की तरह हैं। अगर हम उनका एक खास तरह से इस्तेमाल करें तो वे जीवन के अलग आयाम को खोलने में सक्षम हैं, जिनका अनुभव हम अपने भीतर कर सकते हैं।

हर मंत्र शरीर के अलग-अलग हिस्से में एक खास तरह की उर्जा पैदा करता है। मंत्रों का आधार हमेशा से संस्कृत भाषा रही है। संस्कृत भाषा ध्वनि की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। लेकिन जब अलग-अलग लोग इसे बोलते हैं तो हर व्यक्ति अपने एक अलग अंदाज में बोलता है। अगर एक बंगाली कोई मंत्र बोल रहा है तो वह अपने अंदाज में बोलेगा। इसी तरह एक तमिल भाषी उसी चीज को दूसरे ढंग से कहेगा। अगर कोई अमेरिकी इनका उच्चारण करेगा तो वह बिल्कुल ही अलग होगा। इन मंत्रों के सटीक उच्चारण की अगर सही ट्रेनिंग न दी जाए तो अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोग, जब अपने अंदाज में मंत्रों को बोलेंगे तो उच्चारण के बिगडऩे का खतरा रहता है। हालांकि इस तरह की ट्रेनिंग बेहद थका देने वाली होती है। इसे सीखने के लिए जिस धैर्य, लगन और जितने समय की जरूरत होती है, वह आजकल लोगों के पास है ही नही। इसके लिए जबरदस्त लगन और काफी वक्त की जरूरत होती है।

दरअसल, अध्यात्म की दिशा में मंत्र एक बहुत अच्छी शुरुआत हो सकते है। सिर्फ एक मंत्र ही लोगों के जीवन में बहुत कुछ कर सकता है। मंत्र किसी चीज की रचना के लिए एक प्रभावशाली शक्ति बन सकते हैं, लेकिन ऐसा तभी हो सकता है कि जब वे ऐसे स्रोत से आएं, जहाँ यह समझ हो कि ध्वनि ही सबकुछ है। जब हम कहते हैं कि 'ध्वनि ही सबकुछ है’ तो हमारा मतलब इस सृष्टि से होता है। अगर मंत्र वैसे स्रोत और समझ के उस स्तर से आएं तथा उनका संचारण अगर पूरी तरह शुद्ध हो तो मंत्र एक प्रभावशाली शञ्चित बन सकते हैं।

फोटो: worldteamsports