सद्‌गुरुअमेरिका में आजकल स्ट्रेस मैनेजमेंट या तनाव प्रबंधन का बहुत चलन है। सद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि ऐसा विचार पालना कि तनाव जीवन का एक हिस्सा है, अपने आप में गलत चीज़ है। आइये जानते हैं...

जब भी आपकी इच्छा के अनुरूप काम नहीं होता, तब आपको गुस्सा आता है। जब भी आपकी उम्मीदों के अनुसार दूसरे लोग व्यवहार नहीं करते तब आपको गुस्सा आता है।

स्ट्रेस को मैनेज मत करें

शारीरिक स्वास्थ्य जितनी अहमियत रखता है, मन का स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इन दिनों अमेरिका में दो शब्द बहुत ही प्रचलित हैं - ‘स्ट्रेस मैनेजमेंट’ यानी मानसिक तनाव का प्रबंधन। जहां-जहां मैनेजमेंट के बारे में बोलना होता है, उन सभी स्थानों पर ‘तनाव को कैसे संभाला जाए’ इसके बारे में सिखाने के लिए मनोविज्ञान विशेषज्ञों का दल मुस्तैदी के साथ तैयार है। अपने उद्योग, परिवार या संपत्ति को कैसे मैनेज किया जाए, यदि कोई इस विषय को सीखने की इच्छा करे तो वह बात मायने रखती है। लेकिन मानसिक तनाव तो एक बार में छोड़ देने की चीज है। उसे अपने पास रखते हुए उसे मैनेज करने की कला किसलिए सीखनी चाहिए?

ऐसा विचार पालना एक भूल है

लोग यह विचार क्यों पाल रहे हैं कि आधुनिक जीवन में मानसिक तनाव कोई जरुरी चीज है? कौन बढिय़ा मैनेजर बन सकता है?

जब तक पदोन्नति नहीं मिलती उसके लिए संघर्ष जारी रहता है। तरक्की मिल गई तो अब यही शिकायत कर रहे हैं, अरे पल प्रति पल तनाव बढ़ता जा रहा है।
किसी वाहन को किस तरह चलाना है यह कला आपको आती हो, तभी तो आप उसे दूसरों को सिखा सकते हैं? यदि आप दूसरों को अपने वश में रखने की क्षमता पाना चाहते हैं तो पहले खुद को संभालना आपको आना चाहिए। अपने शरीर पर, मन पर और भावनाओं पर काबू पाने की कला सीखने के बाद ही तो आप दूसरों को नियंत्रित करने के बारे में सोच सकते हैं? जब आप आराम से रहते थे, मन में यही तड़प थी कि नौकरी कब मिलेगी? जब नौकरी मिल जाती है, अपनी सारी खुशियां गंवाकर आप ब्लडप्रेशर जैसी बीमारी को न्योता देते हैं। जब तक पदोन्नति नहीं मिलती उसके लिए संघर्ष जारी रहता है। तरक्की मिल गई तो अब यही शिकायत कर रहे हैं, अरे पल प्रति पल तनाव बढ़ता जा रहा है। और ऊंचे पदों पर पहुंचेंगे तो क्या कहेंगे? यही न कि पहले कितने आराम से रहता था अब जिंदगी का सारा सुख-चैन गायब हो गया है?

क्रोध ही मुख्य कारण है

जिंदगी को गंवाकर सुख-सुविधाएं बढ़ा लेना मरे हुए तोते के लिए सोने का पिंजड़ा बनवाने के बराबर है। मानसिक तनाव का एक प्रमुख कारण है क्रोध

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आपका मन आपकी इच्छा का उल्लंघन करते हुए कहां-कहां भाग रहा है, इस पर गौर कर रहे हैं न? जब आपका अपना मन आपकी इच्छानुसार काम नहीं करता, तो भला दूसरों का मन आपकी इच्छानुसार कैसे काम करेगा?
अपनी देखी प्राय: सभी फिल्मों में अपने हीरो को बात-बात पर चिढ़ते और गुस्सा करते देखकर आपने यही धारणा बना ली है कि क्रोध एक जबर्दस्त ताकत है, महान शक्ति है। आपने यही धारणा बना ली है कि हो-हल्ला करते हुए चार जनों को पीटकर दस लोगों को धराशायी करने वाला ही हीरो होता है। आप के अंदर यही डर बैठ गया है कि यह संसार सीधे-सरल लोगों का आदर नहीं करता। आपने अनजाने में ही यह गलत हिसाब लगा लिया कि क्रोध दिखाने पर आप भी हीरो बन सकते हैं। कभी आपने सोचा है कि आपको गुस्सा कब आता है? जब भी आपकी इच्छा के अनुरूप काम नहीं होता, तब आपको गुस्सा आता है। जब भी आपकी उम्मीदों के अनुसार दूसरे लोग व्यवहार नहीं करते तब आपको गुस्सा आता है। जैसे मैं चाहता हूं, वैसे दूसरे लोग काम नहीं करते-यों शिकायत करने से पहले थोड़ी देर के लिए आंखें बंद करके बैठ जाइए। जरा देखिए, अपने मन को चंद मिनटों तक किसी भी चीज पर टिका पाना संभव हो रहा है या नहीं। आपका मन आपकी इच्छा का उल्लंघन करते हुए कहां-कहां भाग रहा है, इस पर गौर कर रहे हैं न? जब आपका अपना मन आपकी इच्छानुसार काम नहीं करता, तो भला दूसरों का मन आपकी इच्छानुसार कैसे काम करेगा? और इसी बात पर अपने सहयोगियों पर गुस्सा करना कहां तक न्याय संगत है?

 

शंकरन पिल्लै ने किसी कंपनी के मैनेजमेंट का भार स्वीकार कर लिया। पहले ही दिन उन्होंने सभी कर्मचारियों को बुलाकर यह घुडक़ी पिला दी, ‘यहां कामचोर लोगों का कोई स्थान नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को बरखास्त कर दिया जाएगा।’

अपनी इस घुडक़ी को कार्यरूप में दिखाने की तड़प मन में उठ रही थी। कंपनी के अलग-अलग विभागों का मुआयना करते हुए एक कमरे में पहुंच गए। वहां सभी लोग बड़ी मुस्तैदी के साथ अपने-अपने काम में मशगूल थे। केवल एक आदमी दीवार से सटकर बेकार खड़ा था।

‘अरे, इधर आओ’ - गुस्से में भरकर उसे बुलाया। वह शख्स सकपकाकर उनके पास आया।

‘तुम्हारा वेतन कितना है?’

‘पांच हजार रुपए साहब!’

‘मेरे साथ चलो।’

हाथ पकडक़र खींचते हुए उसे लेखा अनुभाग में ले गए। दस हजार रुपए लेकर उसके हाथ में रख दिए। ‘लो, यह है तुम्हारा दो महीने का वेतन। अब इधर कभी मुंह मत दिखाना। इसी क्षण नौकरी से तुम्हारी छुट्टी हो गई।’

जब उसने कोई जवाब देने के लिए अपना मुंह खोला तो शंकरन पिल्लै तैश में आकर चिल्लाए, ‘भाग जा, यहां से।’ बेचारा डरकर बाहर निकल गया।

कंपनी के कार्यकर्ताओं के सामने अपने को सख्त प्रशासक साबित कर दिया, इस पर शंकरन पिल्लै को गर्व हो रहा था। उन्होंने एक कर्मचारी को अपने पास बुलाया।

‘बोलो, क्या समझे?’

‘मैंने यही जान लिया साहब कि अगर आप चाहें तो पिज्जा की डेलिवरी करने आने वाले लडक़े को भी आपके हाथों तगड़ा टिप मिल सकता है।’

गुस्से में रहते समय इसी तरह के अंट-संट निर्णय लेने पड़ सकते हैं।