बाल्यकाल से जुड़ी कृष्ण की ऐसी कई लीलाएं सुनने और पढऩे को मिलती हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर कोई भी भावविभोर हो जाए। यह उनका जादू ही था कि उनकी शरारतों को देखने और फिर उन्हें क्षमा कर देने को लोग आतुर रहते थेः

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दरअसल, कुछ ही बहादुर बच्चे होते थे, जो इस काम को अंजाम देते थे। ऐसे में वे बचा हुआ दही या मक्खन बंदरों को खिला दिया करते थे।
अगर आप कृष्ण की बालभूमि गोकुल नगरी के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको अपने अंदर एक ख़ास स्थिति बनानी होगी। अद्भुत था कृष्ण का बाल्य जीवन - उनका मनमोहक चेहरा, अनुपम मुस्कान, बांसुरी और उनका नृत्य ऐसा था जिससे लोग आनंद में डूब जाते थे। यह एक ऐसा आनंद था, जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं जाना था। वह पूरी बिरादरी को इतने बेसुध कर देते थे, कि लोग उनके लिए पागल हो उठते थे। कृष्ण के बालपन के बारे में काफी कुछ कहा और लिखा गया है। उनके ऊपर असंख्य गीत भी लिखे गए हैं। यह कथा लगभग 3500 साल पुरानी है, जबकि ऐसा लगता है जैसे यह कल की ही बात हो।

बछड़े, गाय, चरवाहे और ऊपर टंगी मटकियां उनके बालपन से संबंधित हैं। ये सभी ग्रामीण संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। आज भी भारत के गांवों में दही और मक्खन ऊंची टंगी मटकियों में ही रखा जाता है, ताकि ये चीजें जानवरों और बच्चों से बची रहें।

कृष्ण यह बात बड़ी मस्ती में कहते थे कि मैंने माखन चुराया। अगर मैं माखन नहीं चुराता तो गांववालों को आनंद ही नहीं आता। कृष्ण और उनके मित्र दूसरे लोगों की छतों की खपरैल खोलकर उनके घर में घुस जाते थे। मटकी ऊंचाई पर टंगी होने के कारण वे एक दूसरे के कंधों पर पैर रखकर उस तक पहुंचते थे। अगर मटकी बहुत ऊंचाई पर होती थी तो वे पत्थर मारकर उसमें छेद कर देते थे। इससे उसमें रखा दही या मक्खन टपकने लगता था, और वे उसके नीचे मुंह खोलकर खड़े हो जाते थे। कभी मटकी पूरी फूट जाती थी, तो वे जमीन से उठाकर ही उसे जल्दी-जल्दी खाना शुरू कर देते थे। वे इस मक्खन या दही को मित्रों के बीच बांट लेते थे, लेकिन फिर भी दही और मक्खन बच जाता था। दरअसल, कुछ ही बहादुर बच्चे होते थे, जो इस काम को अंजाम देते थे। ऐसे में वे बचा हुआ दही या मक्खन बंदरों को खिला दिया करते थे।

 जब वे उनकी माता से शिकायत करने उनके घर पहुंचती थीं तो वे अपनी माता के पीछे छिप जाते थे, और उन गोपियों की तरफ  मासूम सी नजरों से देखने लगते थे, जिससे सब मुस्करा देती थीं।
यह बहुत ही अस्वाभाविक सा लगता है, क्योंकि यह ऐसा है जैसे आपके फ्रिज पर पड़ोस के बच्चों ने धावा बोल दिया हो। इस बात से कुछ महिलाएं नाराज होती थीं तो कुछ दुखी हो जाती थीं, परंतु वे आजकल के लोगों जैसी नहीं थीं। आज लोग ऐसी बातों से आपे से बाहर हो सकते हैं, लेकिन वे ऐसी नहीं थीं। वे नाराज होती थीं, क्योंकि दही और मक्खन उनकी आजीविका थी। वे लगातार कृष्ण की माता जी से शिकायत करती रहती थीं। जब वे उनकी माता से शिकायत करने उनके घर पहुंचती थीं तो वे अपनी माता के पीछे छिप जाते थे, और उन गोपियों की तरफ  मासूम सी नजरों से देखने लगते थे, जिससे सब मुस्करा देती थीं। मजे की बात यह है कि ये गोपियां गुस्से में तो और भी अच्छी लगती थीं। बस आप उन की तरफ प्यार भरी नजरों से देख लें, वे अपने आप ही खुश हो जाती थीं।
आगे जारी ...