कंवारे क्यों रह गए भीष्म...
शांतनु सत्यवती के पिता से जब उनका हाथ मांगने गए तो उन्होंने एक शर्त रखी कि शांतनु के बाद राजसत्ता सत्यवती की संतान को मिलनी चाहिए। फिर क्या हुआ – आगे पढ़िए...
अब तक आपने पढ़ा कि महाराज शांतनु ने गंगा से उनकी शर्तों पर विवाह कर लिया। गंगा एक - एक करके अपने सात नवजात बच्चे को गंगा नदी में डूबोती रहीं और अपने वचन से बंधे शांतनु कुछ नहीं कह पाए। आखिरकार जब गंगा अपने आठवें पुत्र को नदी में डूबोने लगीं तो शांतनु ने उन्हें टोक दिया। गंगा ने उस बच्चे को मारा नहीं लेकिन शर्त के अनुसार वो शांतनु को छोड़ कर चली गईं। साथ ही अपने आठवें बच्चे को यह कह कर अपने साथ लेती गईं कि कुछ समय बाद उसे वापस शांतनु को सौंप देंगी। 12 साल के उम्र में गांगेय को गंगा ने शांतनु को सौंप दिया जो हर विद्या में पारंगत था। गंगा के चले जाने के बाद उदास शांतनु की मुलाकात सत्यवती से हुई। सत्यवती महर्षि पाराशर की पत्नी मत्स्यगंधा का ही नाम था जिन्हें पाराशर छोड़ कर जा चुके थे। पाराशर और मत्स्यगंधा का एक बेटा भी था - कृष्ण द्वैपायन जो बाद में वेद ब्यास के नाम से जाने गए।
शांतनु सत्यवती के पिता से जब उनका हाथ मांगने गए तो उन्होंने एक शर्त रखी कि शांतनु के बाद राजसत्ता सत्यवती की संतान को मिलनी चाहिए। फिर क्या हुआ – आगे पढ़िए...
सत्यवती के पिता की शर्त सुनकर शांतनु परेशान हो गए, लेकिन वह सत्यवती के प्रेम की गिरफ्त में आ चुके थे। सत्यवती के प्रति उनका आकर्षण इतना बढ़ गया था कि वह उसके बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। वह महल लौट गए, लेकिन अपने पुत्र से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा सके कि वह उनकी खातिर राजगद्दी का अपना अधिकार त्याग दे। वह न ठीक से सो पा रहे थे, न ठीक से भोजन कर पा रहे थे। उन्होंने विचित्र सी हरकतें करनी शुरू कर दीं। आपको पता है, लोग अपनी बात मनवाने के लिए अक्सर ऐसा करते हैं? मैं रोज ऐसे नजारे देखता हूं। खैर, शांतनु का युवा पुत्र बड़ा विद्वान था। जब उसने देखा कि उसके पिता अजीब सी हरकतें कर रहे हैं तो प्रेमवश वह उनके पास गया और बोला, ‘पिताजी आपको कौन सी बात खाए जा रही है? आप न ठीक से सो रहे हैं, न ठीक से खा रहे हैं। किसी भी काम में आपका मन नहीं लगता। आखिर बात क्या है?’ राजकीय और सैन्य संबंधी राजा की तमाम जिम्मेदारियां पहले से ही गांगेय संभाल रहे थे। शांतनु एक सेवानिवृत्त राजा की तरह थे और बार-बार शादी करके जिंदगी के मजे ले रहे थे। उनके अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने बेटे को पूरी बात बता पाते, लेकिन किसी तरह गांगेय ने पिता के दुख का कारण जान लिया। गांगेय सीधे सत्यवती के पिता के पास गए और उनसे कहा, मैं आपको वचन देता हूं कि मैं राजा नहीं बनूंगा। मैं यह भी सुनिश्चित करूंगा कि आपकी बेटी की संतान ही इस राज्य की गद्दी संभाले। राजा बनने के अपने अधिकार का मैं त्याग करता हूं।’ सत्यवती का पिता अधम था। उसने कहा, ‘ठीक है, आपने मुझे यह वचन तो दे दिया, लेकिन आर्यावर्त के कानून के मुताबिक आपकी संतान अपने आप ही इस राज्य की उत्तराधिकारी बन जाएगी। मेरी बेटी की संतान एक पीढ़ी तक शासन करेगी और उसके बाद आपकी संतान ही राज्य की मालिक हो जाएगी। इसलिए आपके वचन के बाद भी मैं सहमत नहीं हूं।’गांगेय ने तुरंत प्रतिज्ञा ले डाली, ‘मैं कभी विवाह नहीं करूंगा और न ही किसी बच्चे को जन्म दूंगा, ताकि आपके बच्चे, उनके बच्चे और फिर उनके भी बच्चे इस राज्य पर शासन कर सकें।’
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इसी बीच ऋषि पाराशर से सत्यवती के पुत्र कृष्ण द्वैपायन ने महाथरवन की पुत्री वाटिका से विवाह कर लिया। ज्ञान और शासन प्रणाली के मामले में यह एक बड़ा गठबंधन था। हस्तिानापुर के राजा का विवाह एक मछुआरे की बेटी से हो चुका था, जिसका बेटा एक महान ऋषि था। कृष्ण द्वैपायन का विवाह महाथरवन की पुत्री के साथ हो गया। महाथरवन गुप्त विद्या पंरपरा के प्रभारी थे। इस तरह से गुप्त विद्या, आध्यात्मिक प्रक्रिया और शासन प्रणाली आपस में कहीं न कहीं जुड़ गए। इस साझेदारी के माध्यम से उन्होंने एक ऐसे समाज का निर्माण करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया, जिसमें इन तीनों पहलुओं के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके।
शुकदेव के बारे में एक बड़ी सुंदर कहानी है। एक बार वह जंगल में ऐसे ही बिना कपड़ों के घूम रहे थे। अचानक वह एक तालाब के पास जा पहुंचे। कुछ राजकुमारियां वहां घूमने फिरने के लिए आई थीं। चूंकि वे सभी लड़कियां थीं, इसलिए उन्होंने अपने कपड़े उतार दिए और तालाब में अठखेलियां करने लगीं। शुकदेव अचानक उधर से गुजरे। राजकुमारियों ने शुकदेव को देखा, लेकिन उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि शुकदेव वास्तव में वयस्क पुरुष थे ही नहीं। उन्होंने अपने शरीर से कोई पहचान ही नहीं बनाई थी। चूंकि वह बच्चे की तरह घूम रहे थे, इसलिए राजकुमारियों को कोई फर्क नहीं पड़ा। नग्न अवस्था में ही उन्होंने अपनी मौज मस्ती जारी रखी। तभी शुकदेव को ढूंढ़ते हुए ७२ वर्षीय व्यास उधर जा पहुंचे, जो पूरे वस्त्रों में थे। जैसे ही राजकुमारियों ने व्यास को देखा, वे तुरंत अपने वस्त्रों को लेने भागीं। व्यास ने कहा, ‘एक युवा पुरुष यहां नग्न अवस्था में घूम रहा है, लेकिन आप लोगों को अपने वस्त्रों की कोई फिक़्र नहीं है। मैं ७२ साल का वृद्ध हूं और पूरे वस्त्रों में हूं। फिर भी तुम वस्त्रों की ओर भाग रही हो। क्या है यह सब?’ राजकुमारियों ने जवाब दिया, ‘शुकदेव पुरुष नहीं है, लेकिन आप पुरुष हैं।’
तो कृष्ण द्वैपायन ने एक ऐसे पुत्र को जन्म दिया था जिसे जन्म से ही सिद्धि हासिल थी।
आगे जारी ...