अक्सर यह देखने को मिलता है कि प्रेम संबंध बनाकर साथ रहने वाले दो लोग समय बीतने के साथ दूर होते जाते हैं। ऐसा क्यों होता है?

सद्‌गुरु:

मान लीजिए आपने अपने बगीचे में एक नारियल और एक आम का पेड़ लगाया, जब वे छोटे पौधे थे, उनकी ऊंचाई बराबर थी। आपको लगा कि उनमें अच्छी निभेगी, आपस में खूब प्रेम होगा! अगर दोनों नहीं बढ़ते तो वे हमेशा एक बराबर ही रहते। लेकिन अगर दोनों अपनी पूरी क्षमता में बढ़ेंगे, तो वे अलग-अलग ऊंचाई, आकार और संभावनाओं में विकसित होंगे।

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अगर आप दो लोगों में समानता ढूंढ रहे हैं, तो वह रिश्ता हमेशा टूट जाएगा। आखिरकार एक पुरुष और एक स्त्री इसीलिए साथ आते हैं क्योंकि वे अलग हैं। यह फर्क ही आपको साथ ले कर आया है और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, यह फर्क अधिक स्पष्टता से उभर कर सामने आ सकता है। अगर आप इस अंतर का आनंद लेते हुए आगे बढ़ना नहीं सीखेंगे, तो स्वाभाविक रूप से रिश्ते में दूरी आएगी। अगर आप यह उम्मीद करते हैं कि दोनों एक ही दिशा में और एक ही तरीके से बढ़ें तो, यह दोनों के साथ ही नाइंसाफी होगी। इससे दोनों की ज़िंदगी ना केवल सिमट जाएगी, बल्कि उनका दम घुटता रहेगा। आपका रिश्ता कितने दिनों बाद टूटता है या यूं कहें कि दोनों के बीच दूरी कितने वक्त में बढ़ती है- बरसों में, महीनों में या दिनों में, यह सिर्फ इस बात पर निर्भर है कि आप कितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

अगर आप यह उम्मीद करते हैं कि दोनों एक ही दिशा में और एक ही तरीके से बढ़ें तो, यह दोनों के साथ ही नाइंसाफी होगी। इससे दोनों की ज़िंदगी ना केवल सिमट जाएगी, बल्कि उनका दम घुटता रहेगा।

यह उम्मीद करना कि जो व्यक्ति आपका साथी बना है, वह बिल्कुल आपकी तरह हो, किसी रिश्ते को बरबाद करने के लिए काफी है। यह बगीचे को निश्चित रूप से नष्ट कर देगा। अपने और अपने साथी के बीच की भिन्नताओं को स्वीकार करें, विकसित होने दें और उसका आनंद उठाएं। वरना ऐसी स्थिति उत्पन्‍न हो जाएगी कि एक व्यक्ति पूरी तरह दूसरे के ऊपर निर्भर होने के लिए बाध्य होगा या दोनों लोग एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होने के लिए बाध्य होंगे।

हमें समझना चाहिए कि रिश्ते कुछ जरूरतों की वजह से बनते हैं – शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों की वजह से। चाहे रिश्ता कैसा भी हो, बुनियादी पहलू यह है कि आपको अपनी कोई जरूरत पूरी करनी है। हमने कोई रिश्ता क्यों बनाया, इसकी बहुत सी वजहें हमारे पास हो सकती हैं, लेकिन अगर वे जरूरतें और उम्मीदें पूरी नहीं हुईं, तो रिश्ता बिगड़ जाएगा।

हमें समझना चाहिए कि रिश्ते कुछ जरूरतों की वजह से बनते हैं – शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों की वजह से। चाहे रिश्ता कैसा भी हो, बुनियादी पहलू यह है कि आपको अपनी कोई जरूरत पूरी करनी है।

जैसे-जैसे लोग आगे बढ़ते हैं और परिपक्व होते हैं, ये जरूरतें बदल जाती हैं। जब ये जरूरतें बदल जाती हैं, तो दो लोगों के बीच जो बात कभी सबसे महत्वपूर्ण लगता था, कुछ समय बाद वह ऐसा नहीं लगेगा। लेकिन हमें किसी रिश्ते को हमेशा के लिए उन्हीं जरूरतों पर आधारित मानने की आवश्यकता नहीं है और ना ही यह सोचने की आवश्यकता है कि रिश्ता अब खत्म हो गया। हम हमेशा किसी भी रिश्ते को किसी और रूप में विकसित कर सकते हैं।

जो जरूरतें लोगों को साथ लाती हैं, जरूरी नहीं है कि हमेशा वही रिश्ते की बुनियाद बनी रहे। जैसे जैसे समय बीतता है और व्यक्ति की उम्र बढ़ती है और वह अलग-अलग रूपों में परिपक्व होता है। इसलिए रिश्ते का आधार बदलने की जरूरत होती है। अगर यह बदलाव नहीं किया गया, तो दूरी बढ़ना या रिश्ता टूटना निश्चित हो जाएगा।